पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२२३

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२२० मूत्राघात वायु वस्तिका मुख रोक देती है जिससे वस्ति और । इस रोगमें सचल लवणके साथ शराव या मधुयुक्त मांस 'कुक्षिदेशमें दर्द होता है। को चरनीके साथ गुड़की बनी हुई शराब पीनेसे बहुत मूवातीत-इसमें बार बार पेशाव लगता और बहुत | उपकार होता है। प्रति दिन सवेरे२ तोला कुकुमके कष्टसे थोड़ा थोड़ा होता है। साथ वासी मीठा पानी पीनेसे मूत्राधात रोग अति शीत्र मूत्रजठर-इसमें मूत्रका प्रवाह रुकनेसे अधोवायु नष्ट होता है। अनारके रस, सैन्धव कुपित हो कर नाभिके नीचे पीड़ा उत्पन्न करती है। और काफी इलायची, जीरे और सोंठके साथ शराब पीनेसे भी यह मूत्रोत्सङ्ग-इसमें उतरा हुआ पेशाव वायुकी अधि- | रोग आरोग्य होता है। कतासे मूत्रनाल वा वस्तिमें एक बार रुक जाता है और पृथकपर्णादिवर्ग और गोखरूके मूलको आधप्रस्थ फिर बड़े चेगके साथ कभी कभी रक्त लिये हुए निक/ जल तथा मूलके चौगुने दूधमें पाक करे। जब जल लता है। इसमें कभी तो पोड़ा होती और कभी विल-1 . विलकुल जल जाय केवल दूध वच रहे, तव ठंढा होने कुल होती ही नहीं। पर चीनी और मधुके साथ उसे पान करे। इससे वायु . .मूवक्षय-इसमें खुशकोके कारण वायु-पित्तके और पित्तजन्य मूत्राघातरोग विनष्ट होता है। गदहे योगसे दाह होता है और मूत्र सूख सा जाता है। यह और घोडे की विष्ठाको कपड़े में अच्छी तरह निचोड़ कर वहुत कष्टसाध्य है। . . उसका रस पोनेसे मूत्ररोगको शान्ति होती है। कण्ट- . मूत्रग्रन्थि-इसमें वस्तिमुखके भीतर पथरीको तरह | कारी (कटरंगनो)के रस अथवा मधुके साथ उसका कल्क गांठ सी हो जाती है और पेशाब करनेमें वहुत कष्ट आँवलेके रस, चावलके जल अथवा आँवलेके साथ छोटी होता है। छोटो इलायचीका चूर्ण डाल कर उपयुक्तमात्रा सेवन मूत्रशुक्र-इसमें मैथुन करनेके समय उतरा हुआ करनेसे यह रोग अति शीघ्र आरोग्य हो सकता है। पेशाव शुक्रके साथ निकलता है अथवा पेशाव आनेके | ताड़के नये मूल तथा खीरे और ककड़ोके रसको दूधके पहले और पीछे भस्मोदकको तरह शुक्र निकलता है। साथ सवेरे पान करे। मधुर द्रष्यके साथ दूध पाक कर ___उण्णवात-इसमें ध्यायाम या अधिक परिश्रम करने | उसमें घी मिला कर पान करनेसे भी बहुत उपकार और गरमी या धूप सहनेसे पित्त कुपित हो- कर वस्ति- होता है। विजबंद, गोखरू, कुलथी, कलाय, वंशमूल, देशमें वायुसे आवृत्त हो जाता है। इसमें दाह होता| देवदारु, चितामूल और आँचलेका वीज इन सवका है और मूत्र हल्दीकी तरह पीला और कभी कभी रक्त चूर्ण, अश्मरी और त्रिदोपशान्तिके लिये मदिराके साध मिला आता है। इसका दूसरा नाम कड़क भी है। सेवन करे। · पित्तज मूत्रौकसाद-इसमें पेशाव कुछ जलनके ____पाटलवृक्षके क्षारको सात बार परिस् त करके तेल- साथ गाढ़ा गाढ़ा हो कर निकलता है और सूखने पर के साथ पान ; नल, ईख, कुश, ककड़ीके वीज, खीरेके गोरोचनके चूर्णकी तरह हो जाता है। , वीजको दूधमें परिनु त करके घृतके साथ पान, पाटली, • कफज मूत्रोकसाद-इसमें सफेद, पिच्छिल और यवशूक, तिल इन सब दयोंको क्षीरोदकके.साथ, दार- गाढा पेशाव कष्टसे निकलता है। . . चीनी, इलायचो और त्रिकटु चूर्ण उसमें डाल कर पान करनेसे सभी. प्रकारका मूत्राघात दूर होता है । अथवा .. . चिकित्सा-1 • कषाय, कल्क, घृत, भक्ष्य, लेह, पेय, मधु, आसव, प्रत्येकके.चूर्णको गुड़के साथ मिला कर. चाटे, तो रोग . . . खेद और उत्तरवस्ति ये सब विधान विशेष उपकारक | बहुत जल्द नष्ट होता है। . . हैं। अश्मरोनाशक तथा मूत्र जन्य उदावर्शका योग भी प्रयोज्य है 1. २ तोले पारु वीजके चूर्णको सैन्धव | करे । वादमें देहके संशोधित होनेसे उत्तरवस्तिका प्रयोग और धान्याम्लके साथ खानेले. मूत्रकृच्छ दूर होता है। करना आवश्यक है। अधिक स्रोप्रसङ्गसे रक्त निकलने ___ इस रोगमें स्नेह-स्वेदका प्रयोग करके पीछे विरेवन