पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२२४

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२२१ मृत्रातोत-मूर्ख । पर स्त्रीसंसर्गका त्याग तथा वृहणीय अर्थात् देहके पुष्टि- 1 सूत्रित (सं० त्रि०) मूत्रमस्य संजातं, मूत्र उतच, यद्वा • बार विधानका अवलम्वन करना चाहिये । अर्द्ध पात्र मूवयति स्म इति सूत्र क । कृतमूत्रोत्सर्ग, पेशाव किश मधु, एकपात्र क्षीर, घृत, अलकुसीका वीज, तिल्वक लोध हुआ। संस्कृत पर्याय-मीढ़।। । और पीपलका चूर्ण इन्हें चमचेसे अच्छी तरह मिला | मूत्रोत्सङ्ग (सं० पु०) मूत्राघातरोगभेद । जितना हथेलोमे आ सके उतना ले कर चाटे। इसके मूत्रोष्णता (सं० स्त्रो०) पित्तजन्य मूत्ररोगभेद । कुछ समय बाद हो दूधका सेवन करे। विजवंद, वेरको मूत्रा (सं० वि० ) मूत्रसम्बन्धीय । गुठली, मुलेठी, गोखरू, शतमूली, मृणाल, केशर, मून-एक विख्यात भाषाके कवि। ये जातिके ब्राह्मण फुलथी, कलाय, महाशतमूली, शालपर्णी, पढार, पिठ | थे और जिले गाजीपुर असोथरके रहनेवाले थे। सम्बत् वन, पोला विजवंद, भूमिकुष्माण्ड और कोकोल्यादिगण, १८६० ई०में इनका जन्म हुआ था। इन्होंने अनेक ग्रन्थ वरावर वरावर भाग ले कर उससे चौगुने दूध और गुड़ | वनाये हैं। रामरावणयुद्ध नामक इनका बनाया ग्रन्थ में पाक करे। जब ३२ सेर रह जाय, तव उसे कपड़े से | पाया जाता है। इनकी कविता आदरणीय है। उदाहर- छान कर आठ सेर घोके साथ पाक करे। पाकसिद्ध | णार्थ एक नोचे देते हैं। हो जाने पर उसमें २ सेर मधु मिला कर एक कलसीमें _ बिम्ब मैं प्रवाल मैं न नपा पुष्पमाल मैं रखे। प्रतिदिन उस घृतका परिमित मात्रामे सेवन न ईगुर गुलाल में न किंचित निहारे में । करनेसे सभी प्रकारके मूत्राघात, मूत्रदोष और मूत्रकृच्छ दाडिम प्रसून में न मून धरा सुन में आदि रोग नष्ट होते हैं। (सुश्रुत उ०) न इन्द्रकी वधून मैं न गुजा अँधियारे में। भावप्रकाश, चरक, वाभट आदि अन्धों में जहां मूत्रा है कुसुम रंग में न कुंकुम पतंग मैं धात रोगाधिकार आया है वहां इस रोगके निदान और न जावक मजीठ कंज पुंज वारि डारे मैं। चिकित्साका विशेष विवरण लिखा है। राधे जु तिहारी पदलालिमा की समताको मूवातीत (सं० पु. ) मूलाधातरोगभेद । ( सुश्रुत ) हेरि हारे कविता न आवत विचारे में। मूत्राधिक्य (सं० क्ली० ) मूत्रस्य आधिक्यं बाहुल्यं । मूना (हिं० पु०) १ पोतल वा लोहेकी अंकुसी जो टेकुए- श्लेष्मजन्यरोगभेद। पर जड़ो रहती है और जिसमे रस्सी या डोरा फंसा मूत्राशय (सं०३०) मत्स्य आधारः। नाभिका अधो. रहता है। २एक झाड़ी इसके फल वेरके समान सुन्दर देश, नाभिके नीचेका वह स्थान जिसमें मूत्र संचित रहता सुन्दर होते हैं। है। संस्कृत पर्याय-मूत्रपुट, वस्ति । मूर (सं० पु०) १ मूढजन. वेवकूफ आदमो। (नि.) "एकसम्बन्धिनोह्य ते गुदास्थि विवरस्थिताः। २मारक, मारनेवाला। मूत्राशयो मलाधारः प्राणायतनमुत्तम् ॥" मूरचा (फा० पु०) मोरचा देखो। (सुश्रुत नि० ३ ०) मूरदेव (सं० पु०) मारककोड़ राक्षस । मूत्राटक (सं० क्लो०) सूत्राणां अष्टकम् । गाय, बकरो, | मूरध (हिं० पु०) मूर्दा देखो। मेढ़ी, भैंस, घोड़ी, गदहो, ऊंटनी और हथनी इन आठ | मूरा (हिं० पु०) मूली। जानवरोंके मूनका समूह । .. | मूरि (हिं० स्त्री०) १ मूल, जड़। २ जड़ी, वूटो । ( गोऽजाविमहिषाश्वानां खरोष्ट्र करिणां तथा। मूरी (हि. स्त्रो०) मूली देखो। • - मूत्राष्टकमिति ख्यातं सर्वशास्त्रेषु सम्मतम् ॥" मूर्ख (सं० पु०) मुह् ( मुहेः खो मूर्च् । उण् ॥२२) ... -.. . (परिभाषाप्र० ३ ख०), इति ख, धातोः मूरादेशश्च । १ माष, उद । २ वनमुद्न, मूत्रासाद (सं० २०) मूत्रौकसाद नामक मूत्राघातरोग। वनमूग। (त्रि०) ३ गायनीरहित, जो गायनी नहीं मूलिका (सं०-स्त्री०) सल्लकी वृक्ष, सलईका पेड़। जानता हो। . . . Vol, XVIII. 56