पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२३०

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२२७ मूचिमय-मूर्वा १ शरीर, देह। (त्रि०) २ जो रूप धारण किये हो, | होता है। मूर्धन्य वर्ण ये हैं-ऋ, म, ट, ठ, ड, ढ, ग, स-शरीर । २ साक्षात् गोचर। (पु.) ३ कुशपुत्र ।। र और सा स्त्रियां डोप । मूतिमती। मूर्धन्वान् (सं० पु० ) १ गन्धर्वका नाम । २ वामदेव "दर्शयामास तं गङ्गा तदा मतिमती स्वयम् ।" ऋषि जो ऋग्वेदके दशम मण्डलके अपम सूत्रके ( महाभारत ३२१०८।१४) । द्रष्टा थे। मूर्तिमय (सं० वि० ) मूर्ति स्वरूपे मयट् । मूर्तिस्वरूप। मूर्द्ध'पात ( सं० पु० ) मस्तकविदारण, शिर फाड़ना। मूर्तिमान (सं० त्रि०) मूर्तिमत् देखो। मूपिण्ड (सं० पु०) करिकुम्भ, हाथोका मस्तक । मूर्तिलिङ्ग (सं० क्लो० ) प्राग्ज्योतिष पुरस्थित शिवलिङ्ग-मूर्द्ध'पुष्प ( सं० पु० ) मूनि पुष्पमस्य। शिरीषपुष्प । भेद। मूर्द्धरस (सं० पु० ) मूर्द्ध स्थस्तदुपरिस्थो रसः। भक्त- मूर्तिविद्या (सं० स्त्रो० ) १ प्रतिमा गढ़नेकी कला। २ फेन, भातका फेन । चित्रकारी। मूवेष्टन (सं० क्ली० ) मूर्दिनः वेटनं । उणीप, पगड़ी। मूद्ध' (हिं० पु० ) मस्तक, शिर। मूर्धाभिषिक्त (सं० पु०) १ क्षत्रिय। २रामा। मूद्धक (सं० पु०) मूर्धन्यभिषिक्त इति मूर्द्धन संज्ञायां "राज्ञो मूर्दाभिषिक्तस्य वधो ब्रह्मवधाद्गुरुः। कन् । क्षत्रिय। तीर्थसंसेवया चांहो जह्याङ्गान्युतचेतनः ॥" मूद्धकर्णी (सं० स्त्री० ) छाता या और कोई वस्तु (भागवत ६१५४१) जो धूप, पानी आदिसे बचनेके लिये सिर पर रखा ३ मिश्रजातिविशेष । इसकी उत्पत्ति ब्राह्मणसे विवा- जाय। हिता क्षत्रिय स्त्रोके गभसे कही गई है। मूद्ध कपरी ( सं० स्त्री० ) जलयान, टोकरा । "स्त्रीष्वनन्तरजातासु द्विजैरुत्पादितान सुतान् । मूर्द्ध'खोल (सं० क्लो०) मूर्खः खोल इव । छन। सदृशानेव तानाहुर्मातृदोषविगर्हितान् ॥" ( मनु १०६) मूद्ध की देखो। ____ इस जातिको वृत्ति हाथी, घोड़े और रथकी शिक्षा मूद्धज (सं० पु०) मूनि जायते जन-ड । १ केश, पाल।। तथा शस्त्र-धारण है। (त्रि०) मूर्द्धात मान, शिरसे उत्पन्न होनेवाला। महाभारतमें लिखा है, कि परशुरामने जब पृथ्वीको मूद्ध ज्योतिस् (सं० क्लो० ) ब्रह्मरन्ध्र । निःक्षत्रिय कर दिया, तव क्षत्रिय-रमणियोंने नियोगकमसे मूद्ध तस् (सं० अध्य० ) मूद्ध सप्तम्यर्थे पञ्चम्यर्थे वा ब्राह्मण ऋषि द्वारा सन्तान उत्पादन किया था वही तसिल, मस्तक परवा मस्तकसे। सन्तान मुर्दाभिषिक्त है। मूर्द्ध तैलिक (सं० त्रि०) नासतैलभेद। यह तेल सूधनेसे मूर्धाभिषेक (सं० पु० ) शिर पर अभिषेक या अलसिञ्चन कफ निकल जाता है और दिमाग साफ रहता है। होना। .

मूर्द्धन (सं० पु०) मूर्वति बध्नाति यति मूर्व (भ्वन् मूर्द्धश्वर-बम्बई प्रदेशके उत्तर कनाड़ा जिलान्तर्गत होन-

उतन् पूषन् । उण १३१५८) इति कनिन कारस्य, दोधः, | वार उपविभागका एक नगर और वन्दर। यह अक्षा० वकारस्य धकारश्च । मस्तक, शिर । १४६३० तथा देशा० ७४ ३६ पृ०के मध्य अवस्थित मूर्धन्य (सं० वि०) मूद्धन्-यत् । १ मू से सम्बन्ध है। यहांके समुद्रगर्भ में विस्तृत एक पार्वतीय भूखण्ड- रखनेवाला, मूर्द्धासम्बन्धी । २ मस्तक या शिरमें स्थित । के ऊपर एक प्राचीन ध्वंसावशिष्ट दुर्ग और शिवमन्दिर "अर्जुनः सहसाशाय हरेहाद मथासिना । देखा जाता है। मणिं जहार गर्द्धन्यं द्विजस्य सह मई जम् ॥" मूर्वा (सं० स्त्रो०) मूर्वति इति मूर्व-अच-टाप। मरोड. (भागवत १४१५५)/ फली नामको लता। संस्कृत पर्याय-देवी, मधुरसा, मूर्धन्यावर्ण (सं० पु०) वे वर्ण जिनका उच्चारण मूख्से । मोरटा, तेजनी, लवा, मधुलिका, धनुश्रेणो, गोकणी