पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२३४

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२३६ मूलतान अवस्थित है। इसके उत्तरमें झग, पूर्वमें मोण्ट- वासस्थान था । यवनराज सिकन्दरके साथ युद्धमें गोमरी, दक्षिणमें वह्वलपुर वा भावलपुर राज्य और | मल्लि राजे हार गये। पश्चिममें मुजफ्फरगढ़ जिला है । चन्द्रभागा और शतद्र सिकन्दर इस नगर पर अधिकार कर फिलिप नामक नदीके मध्यवती बड़ी दोभाव नामक अन्तर्चेदी भूभाग अपने एक सेनापतिको यहांका क्षत्रप (Satrap) नियुक्त लेकर यह जिला संगठित है । बीच वीचमें इरावती नदी कर गये थे। अनन्तर गुप्तराजवंशके अभ्युत्थानसे शीघ्र वह जानेसे रेकना दोभावका कुछ अंश भी इसमें आ गया ही यह यवनराज्य नष्ट हो गया। इसके कुछ दिन बाद है। उक्त तीनों नदियोंके दोनों किनारे विस्तीर्ण शस्यपूर्ण वक्त्रीय राजाओंकी घोरतासे फिर दूसरी बार मूलतानमें समतल क्षेत्र देखे जाते हैं। इसके सिवा प्रायः सभी यवनशासन स्थापित हुआ। उन राजाओंको प्रचलित भूभाग पहाड़ी उपत्यकासे भरे पड़े हैं। मोण्टगोमरी | मुद्रा माज तक उक्त बातोंका प्रमाण दे रही है। जिलेके समीप दोनों नदियों के मध्य भागमें वाड़ नामक प्राचीन अरवी भौगोलिकोने मूलतानराज्यको सिन्धु अनुर्वर प्रदेश है। यहां पिपासा और इरावतो नदीका प्रदेशमें शामिल कर लिया है। उन लोगोंके लेखानु- पुराना गड्डा देखा जाता है । जव मूलतान प्रदेश इन चारों सार यह नगर चवराजके अधिकार में था। इस प्रसिद्ध नदियोंके जलसे परिप्लावित होता था, उस समय यह जगह राजाके राज्यकालमें चीनपरिव्राजक यूएनचुवंग मूलतान वहुत हरी भरी दिखाई देती थी, अनाज काफो उपजता था। देखने आये थे। उन्होंने वहां सूर्यदेवको एक सुवर्णमयी १०वीं सदीमें अलमसुदि नामक मुसलमान ऐतिहासिक मूर्ति देखी थो। उन्होंने इस स्थानका "मूलसाम्बपुर" के वर्णनानुसार मालूम होता है, कि यह मूलतान प्रदेश नामसे उल्लेख किया है। भविष्यपुराणमें यह स्थान १ लाख २० हजार प्रामोंमें विभक्त था। उस समय "मित्रवन" नामसे वर्णित हुआ है। साम्दने इस स्थानमें मूलतानराज्य जनसाधारणसे पूर्ण तथा शस्यसम्भारमें सूर्यमूर्ति स्थापित की; तवसे यह "साम्वपुर" कहलाने अतुलनीय था। पिपासा नदीको गति बदलनेके कारण लगा। विस्तृत विवरणके लिये भोजक ब्राह्मण शब्द देखो। यहां जलका अभाव रहता है जिससे स्थानीय समृद्धिका डाक्टर कनिहमका अनुमान है, कि इस स्थानके हास हो गया है। यहां झोल और नहरके द्वारा खेती बारी- मूलतान नामकी उत्पत्ति सूर्योपासकोंके इस प्रसिद्ध का काम चलता है। मन्दिरसे ही हुई है; परन्तु डाक्टर अपार्ट आदि ऐति- मूलतान नगरका प्राचीन नाम कश्यपपुर और मूल- हासिक मल्लिजातिको वासभूमि अर्थात् मल्लस्थानसे मूल- शाम्यपुर है । प्रवाद है, कि आदित्य और दैत्योंके पिता तान शब्दकी उत्पत्ति बतलाते हैं। महर्षि कश्यपके नामानुसार ही इस नगरका नाम पड़ा हैं। हिकाटियस, हिरोदोतस, टलेमो आदि भौगोलिकों मुसलमान जातिके अभ्युत्थानके कुछ ही दिन बाद ने इस स्थानका कश्यपपुर नामसे हो उल्लेख किया है। सिन्धुराज्यके साथ मूलतान जिलेको भी महम्मद विन् टलेमीको एक पुस्तकमें काश्मीरसे मथुरापुरी तकका देश, कासिमने खलीफा साम्राज्यमें मिला लिया । खलीफा कास्पिरियाइ ( Kaspeiraei ) तथा उसकी राजधानी वंशके अवसान होने पर सिन्धुप्रदेश में मुसलमान शक्ति- कास्पिरिया (Kaspeiraea) नामसे उल्लिखित है। पुरातत्त्व का भी हास हुआ। ई०सन्की स्वीं शताब्दीके अन्त में मन्- वेत्ता कनिहम पंजावके अन्तर्गत जो कश्यपपुर है उसीको सुरा और मूलतान नगरमें दो खाधीन राजाओंने अपनी कास्पिरिया बतलाते हैं। ई० सन्की श्री शताब्दीमे विजय पताका फहराई | चन्द्रभागा और शतद्र के यह कास्पिरिया नगर पंजावकी राजधानी तथा बड़ा संगम-स्थानमें अरबके अमोरवंशीय शासकोंने अपना समृद्धिशाली था, ऐसा इतिहासमे पाया जाता है । इसके | प्रभाव फैलाया था। गजनी-साम्राज्यके अभ्युदय तक इस प्रायः पांच सौ वर्ष पहले अर्थात् मकदूनियाके सिकन्दर अमीरवंशने सिन्धुपदेशमें अरवी शक्ति अक्षण्ण रखी थी। महान्के आक्रमणके समय यह नगर दुद्धर्ष मल्लि जातिका १००५ ई०में गज़नीके सुलतान महमूदने मुलतान