पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२३८

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मूलप्रणिहित-मूलराज २३५ प्रकृतिका स्वरूपपरिणाम होता है, तंव इस जगत्का | सेना किले पर आक्रयण करने लगी और यादवसेना ध्वंस होता है। यही अवस्था प्रकृतिकी मूल अवस्था . किलेकी रक्षामें नियुक्त हुई। इस घनघोर लड़ाई में नौ कहलाती है। हजार मुसलमानी सेना मारी गई। अधिक सेनाका मूलप्रणिहित (सं० वि०) मूले प्रणिहितः। मूलविषयमें क्षय देख महबूब खाँ वची खुची सेनाको ले कर भाग सावधान। चला। कुछ दिन बाद उसने फिरसे सैन्यसंग्रह कर किले "ये तत्र नोपसयुम लमणिरिताच ये। पर धावा बोल दिया। एक वर्ष तक मुसलमानी सेना तान् प्रसह्य नृपो हन्यात् समित्रशातिवान्धवान ॥" किलेको धेरै रहो। इतने समय तक अन्नके अभावसे (मनु हा२६९) यादवसेनाको भारी कष्ट पहुंचने लगा। इस मूलराजने अपने मूलफलद (सं० पु०) मूले च फलं ददातीति दा-क । पनस सरदारोंको बुलाया और कहा, 'अव तक 'हम लोग अपनी वृक्ष, कटहल। खाधीनताकी रक्षा अच्छी तरह करते रहे, परन्तु अव भोजन- मूलवन्ध (सं० पु० ) १ हठयोगकी एक क्रिया । इसमें |. के लिये कुछ भी नहीं है और कोई उपाय भी नहीं' सिद्धासन वा वज्रासन द्वारा शिश्न और गुदाके मध्य- सूझता जिससे हमलोग अपनी रक्षा कर सकें। इसलिये हम वाले भागको दवा कर अपान वायुको ऊपरकी ओर लोगोंको इस समय क्या करना चाहिये, इसका निर्णय चढ़ाते हैं । २ तन्त्रोपचार पूजनमें एक प्रकारका अंगुलि आप लोग करें। सरदारने उत्तर दिया, 'स्त्रियोंको जुहार न्यास। व्रतका अवलम्वन करना चाहिये और हम लोगोंको रणमें मूलवहण (सं० क्ली० ) १ मूलोच्छेदन । २ मूलानक्षत्र । अपनी वीरता दिखा कर खर्गपुर चलनेको तैयार हो मूलभद्र (सं० पु०) मूलश्चासौ भद्रश्चेति । कंसराज । जाना चाहिये। किलेमें इस प्रकारका विचार हो रहा था, मूलभव (सं० वि०) मूलाद्भवतीति भू-अप् । जो मूलसे | उधर मुसलमानोंने समझा कि किले पर अधिकार होना उत्पन्न हो। बड़ा कठिन है, क्योंकि इतने दिन हो गये और हमारी मूलभार (सं० पु०) कन्दसमूह । सेना भी दिनोंदिन घट रही है, अतः किलेको घेर कर मूलभृत्य (सं० पु० ) १ पुरातन भृत्य, पुराना नौकर । २) पड़ा रहना व्यर्थ है। यह सोच कर मुसलमानी सेना पुश्तैनी नौकर। |. वापस चली गई। इसी समय रत्नसीने सेनापतिके मूलमण्डल (सं० क्ली०) पूर्ण मण्डल। छोटे भाईको किलेके भीतर बुलाया और उसका आदर मूलमन्त्र (सं० पु०) मूलश्चासौ मन्तश्चेति । वीजमन्त्र । सत्कार कर बातें करने लगे। उसे किलेमें आनेसे मालूम . महाविद्या आदि देवताओंके जो सब वोजमन्त्र हैं उन्हें हुआ, कि किलेमें सेनाके लिये रसद विलकुल नहीं है। • मूलमन्त्र कहते हैं। . वह वहांसे भाग कर दौड़ा दौड़ा सेनापतिके पास पहुंचा मलमाधव (सं० क्ली०) तीर्थभेद। यहां स्नान करनेसे और किलेकी सव वातें कह सुनाई। बस फिर क्या था, सभी पाप नष्ट होते हैं। सेनापति फूले न समाया और तुरत लौट कर किलेको मूलमिति (सं० पु०.) गोभिलका एक नाम । फिरस घेर लिया। उस समयका कर्तव्य तो पहले मूलरस (सं० पु०.) मूलेरसोऽस्याः । मोरट लता, मूर्वा । निश्चित ही हो चुका,था, स्त्रियोंने जुहार व्रतका अव. 'मूलराज-जयसलमेरके एक रावल । इनके पिताका नाम लम्वन किया और पुरुषोंने अगणित यवनसेनाका विनाश . रावल जैतसी था। पिताके मरने पर.ये .१२६४ ईमें करके खग प्राप्त किया। राजसिंहासन पर अधिरूढ़ हुए। वातकी वातमें सुरपुर सदृश जयसलमेरका राज- • जिस समय मूलराजका अभिषेक हुआ, उस समय भवन श्मशानतुल्य हो गया। रत्नसीके दो लड़के सेना- पति महबूबके द्वारा रक्षित थे। उन्होने मूलराज तथा . जयसलमेरका किला मुसलमान सैनिकोंसे घिरा था।| रत्नसी आदिका अन्तिम संस्कार किया। किले में ताली उनका सेनापति नवाव महबूब खां था। मुसलमानी | भर कर नवाव चला गया।