पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२४३

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२४० मूषिकतैल-मूषिकायतैल मूषिका, फञ्जिपत्रिका, मूपिपर्णिका सञ्जिना, मूषोकणीं । मूषिकस्थल (सं० त्रो०) स्थानभेद। . . सुकर्णिका। (शब्दरत्ना०) मार्कण्डेयपु० ३४।६५) मूषिकतैल (सं० क्लो०) तैलोपविशेष । योनिकन्दरोगमें | मूपिका (स'० स्त्रो०) १ मूषिकपणी, मूसाकानो । २ यह तेल बहुत उपकारी है। प्रस्तुत प्रणाली:-तिलतैल | उन्दुरु, चूहा। ४ सेर और चूहे का मांस १ सेर ; इस मांसको टुकड़े मूषिकाङ्क (स पु० ) मूषिका उन्दुरुर्वाहनत्वेन अङ्कः टुकड़े करके तेल में पकाना होता है । जव मांस विलकुल | चिह्नमस्य । गणेश। गल जाय, तब जानना चाहिये, कि पाक सिद्ध हो गया। मूषिकाञ्चन ( सं० पु०) मूषिक अञ्चति स्वाहाहन तया (सारको०) प्राप्नोतीति अञ्च ल्यु। गणेश । मूषिकरथ (सं० पु०) मूषिकरथो यस्य । गणेश । गणेशका मूषिकाद (सं० पु. ) मूषिकभक्षक, विलो। वाहन मूसा है। मूपिकाद्यतैल ( सं क्ली० ) तैलौषधविशेष । गुदभ्रंश मूषिकरुहा (सं० स्त्रो०) मूषिकलोम, मूसेको रोआं। रोगमें इस तेलका व्यवहार करनेसे बहुत उपकार होता मूषिकसाधन ( सं० क्ली०) मूपिकस्य साधनम् । साधना है। इसकी प्रस्तुत प्रणाली-मूषिकमांसका काढ़ा ८ पल, विशेष। यह साधना यदि सिद्ध हो जाय तो मनुष्य | दशमूल प्रत्येक १ पल, चितामूल २ पल, जीवनीयगणका चूहेकी वोली समझ कर उससे शुभ अशुभ फल कह कलकतैल चवन्नी भर, धीमी आंचमें इस तेलका पाक सकता है। इसकी साधनप्रणालीका विषय कलाश करना होगा। दीपिका इस प्रकार लिखा है,- "मूषिकमांस कुड़व दशमूलं पलोत्थितम् । जिस दिन यह साधना करनी होगी, उसके पूर्व दिन चित्रिक द्विपलञ्चार क्वाथश्चाष्ट गुणेऽम्भसि । उपवास करे। सिद्धि के दिन सवेरे शुद्धचित्त और पवित्र पादावशेष कर्त्तव्यं तैलं पाक्यं पयःसमम् । हो नदोके किनारे जा भक्तिपूर्वक 'ओं मूल्यै नमः' यथा- जीवनीयन्तु तत्पादैः पचेत् मृद्रग्निना भिषक् ।। शक्ति इस मन्त्रका जप करे। भगवतीको कृपासे यदि अभ्यनान्नाशयत्याशु गुदम्रश' सुदाक्यांम् ।" मन्त्र सिद्ध हो जाय, तो चूहेको वोली सहजमें समझ दुसरा तरीका-वृहत् पञ्चमूल और, आंत निकाले सकेंगे। हुए चूहेको दूधमें पाक करे।. पोछे उस दूधको तथा दूसरा तरीका-निम्नोक्त प्रकारसे भी चूहेको वोली | वातघ्न औषधके साथ सिद्ध तैलको एकत्र मिलानेसे यह समझ में आसकती है। जैसे,-"श्री श्री मुष्यै स्वाहा' इस तैल प्रस्तुत होता है। इसे गुह्यदेशमें मालिश करने तथा मन्त्रको अत्यन्त पवित्र भावसे यदि रात्रिके शेप भागमें पीनेसे गुभ्रंश रोग शान्त होता है। (भैषन्यर० क्षुद्ररोगाधि०) हजार बार जप करे, तो चूहेको वोली समझमें आ सकती है। फिर ऐं श्री हो ओ हो ओ मूषिक विचिके खाहा' इस मन्त्रसे अपनी स्त्री अथवा परस्त्रीके साथ | अन्यच्च-किंवा रमायुग्मम पिञ्चडेन्तां द्विठावधिप्रीक्तमवीतिमन्धत् । शय्या पर बैठ कर यथाशक्ति जप करनेसे मूषिकशब्द जपेत् सहस्रञ्च शतं निशान्ते ततो महेशानि भवेत्तदेव ॥ जाना जाता है। शब्दके मालूम हो जानेसे देशकी दुर्भि- अन्यञ्च-वाणी रमाञ्चपददासि विद्या लजाञ्च तारञ्च पुनश्च लज्जाम् । तारं पुनम षिकशब्दपूर्व विचचिके वहिवधूसमेतम् ॥ . क्षादि शुभाशुभ घटना जानी जा सकती है।* शय्यामुपेत्याशु जपेच विद्यां स्वकान्तया वा परकान्तया वा। अथ वक्ष्ये महेशानि ! मूषिकाशब्दसाधनम् । ततो महेशानि सराजगोष्ठी व तेरहो म षिकशब्दवन्दम् ॥ दुर्भिक्ष वा सुभिकं वा बन्धञ्चापि शुभाशुभम् । उपोष्य पूर्वेऽहनि शुद्धमानसा प्रातः शुचिः सुन्दरवेशधारी ॥ देशानाञ्च महेशानि शीघ्र व्रते शुभाशुभम् ॥" गत्वा नदीतीरमुषीं सतारां डेंन्तां नमोऽन्ता प्रजपेच्च यत्नात् । सिद्धावधिः श्रीगिरिराजकन्या प्रसादतो मूषिकशब्दविद् भवेत् ॥ / .( कृकलाशदीपिका)