पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२४५

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२४२ भूसाकानी-मृक्षिणों तथा सेभिलरेज और सेरिमा नगरको अधिकारमें ला। वढ़ी मूसाकानी और छोटी मूसाकानी। अलावा इसके टोलेडोको ओर बढ़ा। यहां भी नासिरने अपने उद्धत सेना और भी कितने भेद हैं। उनमें से एक भेदके पत्ते गोभी- पति तारिखको दण्ड दे उसे पदच्युत कर दिया। इस के पत्तोंकी तरह लंबे और किनारे पर कटावदार होते अत्याचार कथाको सुन कर खलीफा वालिदने दोनोंको | हैं। दूसरा भेद क्षुपजातिका होता है जो एकसे चार सिरिया लौटनेकी आज्ञा दो। तारिखने खलीफाकी ) फुट तक ऊंचा होता है। इसका डंठल पोला होता है आज्ञा मान ली और फलतः टोलेडोके सिंहासन पर फिर | जिसमें से बहुतसी शाखाएं निकलती हैं। इन सवका विराजमान हुआ था। लेकिन अभिमानी मूसाने उस समय व्यवहार पथरीके समान होता है। इसका दूसरा नाम खलीफाकी आज्ञा न मानी और विजयप्राप्तिमें मन चूहाकानी भी है । मूषाकर्णी देखो। लगाया। ७१५ ईमें वह स्पेनके ४ सौ प्रतिष्ठित लोगों, मूसाखां-मालवका एक मुसलमान शासनकर्ता | माण्डु- १० हजार अन्यान्य वन्दियों और कई सौ ऊटों तथा धन के सिंहासन पर बैठ कर यह अपना दलवल ले गुजरात- सम्पत्ति के साथ अपना देश लौट आया। के सुलतान मुजफ्फरके विरुद्ध खड़ा हुआ था। युवराज मुस्लिम गौरवकी इस प्रकार रक्षा करने और अतुल- अहमदने इसे राज्यच्युत करके पिताके आदेशसे आलम सम्पत्ति अधिकार करने पर भी खलीफा वालिद सन्तुष्ट न खांको सिंहासन पर विठाया था। हुए वरन् उन्होंने उसेका तिरस्कार ही किया। उनके मूसा खेल-पंजावको पश्चिमी सीमा पर एक पहाड़ी वंशधर सुलेमानने मूसाको जेल दे उससे २ लाख मुहरें। स्थान। यह कालावागके दक्षिण पूरव साल्टरेजके संग्रह को। इस प्रकार बहुत धन एकत्रित करने पर | पश्चिमांशमें अक्षा० ३२४६ उ० और देशा० १ ३६ भी सुलेमानको ईर्षाग्नि न बुझी। अन्तमें वे धीरे धीरे पू०के वोच अवस्थित है। यहां दुद्धर्ष पहाड़ी अफगान मूसाका सर्वनाश करनेमें लग गये। यहां तक कि मूसाके | रहते हैं। एक लड़केका शिर काट कर उस शिरको वे अपने हाथों | मूसाफाहा-(अरवी) अरबी मुसलमानोंको अभि- लिये मसाके कारावासमें उपस्थि हुए। इस प्रकार | नन्दन वा अभिवादनप्रथा विशेष । हिन्दुओंके नमस्कार सर्वस्वान्त और वन्दी हो वीर श्रेष्ठ मूसाने ७११ ई० में या यूरोपियनोंके सेकहैण्ड' के जैसा अरवो लोगोंका शरीरत्याग किया। तसमिना या मुसाफहा होता है। आपसमें भेंट होने मुसाकानी (हि. स्त्री०) एक प्रकारकी लता। यह प्रायः | पर वे दाहिनी तलहथी मिला कर फिर उसे हृदय या टोपी सारे भारतवर्षको गीलो भूमिमें चौमासेमें पाई जाती है। आदिसे लगा लेते है। इसके पत्ते आकारमें गोल और प्रायः आधसे डेढ़ इच मृकण्डक (सं० पु०) मुगस्य कण्डूरिव समासे पृपोदरादि- तकके होते हैं। ये पत्ते देखने में चूहेके कानके समान, त्वात् गलोपे मृकण्डः मृकण्ड इति केचित्तत्र पठन्ति चोचमें कमानदार और रोए'दार होते हैं। इसकी इत्युज्ज्वलदत्ता, ततः संज्ञायां कन् । मृकण्ड मुनि। शाखाएं बहुत धनी होती हैं और इसकी गांठों से जड़ | मृकण्डु (स' पु०). मृगस्य कण्डरिव समासे पृपो. 'निकल कर जमीनमें जम जाती है। इसमें बैंगनो या दरादित्वात् गलोगः । एक मुनि, मार्कण्डेय ऋषिके गुलाबी रंगके छोटे छोटे फूल और चनेके समान गोल। पिता। फल लगते हैं। ये फल पहले हरे अथवा बैंगनी रंगके मार्कण्डेयोऽपि मार्कपडो मृकयहुश्च मृफण्डकः ।' और पकने पर भूरे रंगके हो जाते हैं। चीरने पर वे दो मुक्तवाहस (स. क्ली० ) देवताओंके शुद्धविम्प्रापक, दलों में विभक्त हो जाते हैं। प्रत्येक दलमेंसे एक वीज हवनकी वस्तु पानेवाला । निकलता है । इसके प्रायः सभी अंग दवामें काम आते मृक्ष (सं० पु०) १ दबीविशेष, चमचा। (त्रि०)२ है। खास कर चूहेके विषको दूर करनेके लिये इसे लगाया शोधक, परिचरणीय। और इसका काढ़ा पीया जाता है। इसके दो भेद हैं, I मुक्षिणी (सं० स्त्री० ) मुष्टवती, परिममा ।