पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२४६

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१४३ मृग-मृगचेटक मृग (सं० पु०) मृगयते अन्वेषयति तृणादिकं मुग्यते वा आदिका विषय युक्तिकल्पतरुमें विस्तृतरूपसे लिखा है। .इति मृगइगुपधत्वात् कर्तरि च क । १ पशुमार, विशे- मृगनाभि और हरिण शब्दमें विशेष विवरण देखो। स. पता वन्य पशु, जंगली जानवर। ११ पुरुषों के चार भेदोंमेसे.एक। इसका लक्षण- "आरएयानाञ्च सर्वेषां मृगानां माहिएं बिना।" . . "वदति मधुरवाणी दीर्घनेत्रोऽतिभीरु- ., (मनु ५ चपलमतिसुदेहः शीघ्रवेगौ मृगोऽयम् । . 'मृग शब्दोऽत्र महिषपर्घ्यदासात् पशुमात्रपरः' (कुल्लुक ) शशके पधिनी तुष्टा मुगे तुष्टा च चित्रिणी। २ हस्तिविशेष, हाथियोंकी एक जाति जिसको आंखें वृषभे शङ्खिनी तुष्टा हये तुष्टा च हस्तिनी। , .कुछ बड़ी होती हैं और गण्डस्थल पर सफेद चिह्न होता पनिनीशशयोोंनिभेदको चतुरंगुलौ। है। ३ नक्षत्रभेद, मृगशिरा नक्षत्र । ४ अन्वेषण, खोज । चित्रिणीमृगयोर्योनिमेढ़कौ च तथाविधौ ॥” (रतिमञ्जरी.) • "जनस्थाने भ्रान्तं कनकमृगतृष्णान्धितधिया अत्यन्त मधुरभाषी, बड़ी आंखोंवाले, भीरु, चपल, वचो वैदेहोति प्रतिपदमुद प्रलपितम् । सुन्दर और तेज चलनेवाले पुरुषको मृग-कहते हैं। यह कृतालङ्काभर्तर्वदनपरिपाटीषु घटना मृग जातीय पुरुषकी चित्रिणी स्त्रीके लिये उपयुक्त कहा मयाप्तं रामत्वं कुशलवसुता न त्वधिगता ॥" गया है। (साहित्यद० ११७) ___ १२ अन्वेष्टा, तलाश करनेवाला। ३. वैष्माके ५ यात्रा, प्रार्थना। ६ मार्गशीर्षमास, अगहनका तिलकका एक भेद । १४ ज्योतिपमें शुक्रकी नौ वीथियों- महोना। मृग शब्दसे मृगशिरा नक्षत्र होता है। इसी | मेंसे आठवीं वीथी। यह अनुराधा, ज्येष्ठा और मूलामें नक्षत्र में इस मासको पूर्णिमा होती है इसीसे अगहनके पड़ता है। महीनेको मृग कहते हैं। ७ यज्ञविशेष । मृगनाभि, मृगकानन (स'० क्ली० ) मृगयाका उपयुक्त वन, वह कस्तुरीका नाफा। ६ मकर राशि । उपवन जो शिकार खेलनेके लिये रख छोड़ा गया हो। मृगकर्कटसंक्रान्ती द्वेतूदग्दक्षिणायने। | मुगकायन (स'. पु०) गोत्रप्रवर्तक एक ऋपिका नाम । विषुवती तुला मेपे गोलमध्ये तथा पराः ॥" (तिथितत्त्व) मृगलोर (सं० क्ली०) मृग्याः क्षीरं मृग्याः पदं इत्यादिष्व. १० खनामख्यात पशुविशेप, हिरन । पर्याय-कुरङ्ग, पिभावः । मृगोदुग्ध, हिरनीका दूध । वातायु, हरिण, अजिनयोनि, शारङ्ग, चारुलोचन, जिन भृगगामिनी (सं० स्त्री०) मृग इव गच्छतीति गम-णिनि योनि, कुरङ्गम, ऋष्य, ऋश्य, रिष्य, रिश्य, त्रण, एणक । डोप । १ विडङ्गा, वायविडंग। (नि०) २ मृगके जैसा "मसूरू रोहितो न्यङ्गु सम्बरो वभू णो कः। । चलनेवाला। शशैणाहरिणाश्चेति मृगा नवविधा मताः ॥" | मृगधर्मज (सं० क्ली०) मृगधर्मात् मृगनाभिधर्मातू मृगधर्म- ( कालिकापु० ६७ अ०) | वत् जायते जन-ड। १ जवादि नामक गन्धद्रष्य! २ मृग- मृग नौ प्रकारके कहे गए हैं-मसूरू, रोहित, न्यकु, | नाभि, कस्तूरीका नाफरा । (त्रि०). ३.मृगधर्मजात, मृग. सम्बर, वभ्रूण, रुरु, शश, एण और हरिण। ये सव | नाभिसे निकला हुआ। . . . ... मृग देवीपूजामें चढ़ाये जाते और पूजादिकार्यमें इनका मृगचर्म (सं० पु०) हिरनका चमड़ा।. यह पवित्र माना चर्मासन वड़ा प्रशस्त है । भावप्रकाशके मतसे इनका मांस जाता है। इसका व्यवहार उपनयन संस्कारमें होता है पित्तश्लेष्महर, किंचित् वातवर्द्धक, लघु और वलवर्द्धक और इसे साधु संन्यासी विछाते हैं। माना गया है। मृगचर्या (सं०स्त्री०) मृग जैसा आचरण । __ मृगको नाभिसे नाफा या कस्तूरी निकलती है। मृगचारिन् (सं० वि०) मृगके समान आचारवान् साधु । किस हिरनकी नाभिसे नाफा निकलता है इसके लक्षण. मृगचेटक (सं० पु०) मृगान् पशून चेटयति प्रेरयति व