पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२४८

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मृगनामि २४५ नाथ, राज आदि शब्द लगनेसे सिंहवाचक शब्द | Graine D'Ambertte , जर्मनमें Moschus, Bizam ; बनता है। इटालियनमें Nfuschio और स्पेनमें Almigele कहते हैं। मुंगनाभि (सं० पु०) मृगस्य नाभिः तदभ्यन्तरे जातत्वात् प्राणितत्त्ववेत्ताओंने मृगनाभिका अवस्थान और वथात्वं । कस्तुरी। पर्याय-मृगमद, सहस्त्रभित्, कस्तु- उत्पत्ति निर्णय कर जो विचार प्रकाशित किया है वे रिका, बोधमुख्या। कस्तूरी तीन प्रकारको होती है-काम नीचे लिखे जाते हैं। रूपोद्भवा, नेपाली और कश्मीरी। इनमें कामरूपोद्भवा इस जातिके मृगोंकी नाभिमें पिण्ड जैसे कोपके मध्य श्रेष्ठ, नेपाली मध्यम और कश्मीरी निकृष्ट होती है । काम- कड़ी गंधवाला मृगनाभि नामक पदार्थविशेष एकत्रित होत रूपको कस्तूरी कृष्णवर्ण, नेपालो नीलवर्ण और कश्मीरी है। मेढ़त्वक अर्थात् पुरुषलिङ्गके अगले चमड़े के पास कपिलवर्णको होती है। इसके गुण-कटु, तिक्त, क्षार, | उत्पन्न होनेके कारण इसको Proeputial bag या लिङ्गान उष्ण, शुक्रवर्द्धक, गुरु, कफ, वात विष, छईि, शोत, स्थली कहते हैं। यह ॥ इत्र व्यासका एक पिण्डकोष दौर्गन्ध और दोषनाशक * कस्तूरी शब्द देखो। होता है । इसका चमड़ा रोओं से ढका रहता है। इसमें कस्तूरीका नामक मृगजाति ( Moschus moche- एक गोल छिद्र रहता है जिसे दवानेसे भोतरसे एक ferous) के नाभिमूलमें यह उत्पन्न होती है इसीलिये रसवत् पदार्थ निकलता है। यह कोप प्रायः गोल होता है इसको भारतमें मृगनाभि कहते हैं। इस जातिके मृग नाभि मूलमें उक्त गन्धद्रध्य सञ्चित होने के पहले दो साधारणतः हिमालयके पहाड़ी प्रदेश, मध्य और एशिया वर्ष तक दूध जैसा तरल रहता है। तब क्रमशः दाने तथा साइविरिया राज्यके जंगलों में छिप कर चलते फिरते, वनने लगते हैं। ताजा रहने पर वह अदरककी रोटो जैता है। ये बड़े डरपोक होते हैं। जंगलमें शिकारीके प्रवेश | (Ginger-bread) कोमल होता है लेकिन धोरे धीरे सूख करने पर ये बड़े वेगसे धने जंगल में जा छिपते हैं। कभी जाता है। जिस समय नाभिमें कस्तूरी उत्पन्न होती है कभी पहाड़ों पर ६० फोटकी छलांग मारते देखे गये हैं। उस समय पुरुपमृगके मल मूत्र में भी मृगनामिको गन्ध दिनमें ये शायद ही बाहर निकलते हैं । रातमें चर कर | पायी जाती है और उस समय इनके मूत्र, गुह्यसे निकले ये पेट भरते हैं। कदमें ये ग्रेहाउण्ड कुत्तेसे बड़े नहीं हुए रस और पूंछके अगले भागसे एक प्रकारको खराव होते। अखास्थ्यकर गन्ध निकलती है । हरिणियों के शरीरसे उक्त मृगजातिके नामानुसार कभी कभी इसको | कोई गन्ध नहीं निकलती । कस्तूरी भी कहते हैं। उत्तर भारतमें इसे कस्तुरी, मशक, सुगन्ध और गुण मालूम होने पर लोगोंको कस्तूरी- वंगालमें कस्तूरी, मृगनाभि ; मराठो, तामिल, तेलगु, की आवश्यकता सूझ पड़ी है। शिकारी लोग दल वांध मलयालम् आदि दाक्षिणात्यको भाषामों में कस्तूरी, अरवी- वांध इन हरिणोंको दृढ़ने निकलते हैं। एक एक असली में मिस्क, मिशख, मुस्क, फारसीमें मास्क, पंजावमें मस्क मृगनाभिका दाम १०६५ रु० होता है।। नाफा, वाम कोदो, अंगरेजी में Musk, फ्रेंचमें Musc कस्तूरीके व्यवसायमें लाभ देख वहुतसे लोग कृत्रिम उपायसे कस्तूरी तैयार करने लगे हैं। वे तुरतके मरे

  • "कामरूपोद्भवा कृष्णा नेपाली नीलवर्णयुक् । मृगशावकके पेटके चमड़ेसे कृत्रिम नाभिकोष प्रस्तुत

काश्मीरी कपिलच्छाया कस्तूरी त्रिविधा स्मृता ।। कर उसमें रक्त, यकृत् आदि भर देते हैं। वादमें भीतर कामरूपोद्भवा श्रेष्ठा नेपाली मध्यमा भवेत् । और वाहर असली कस्तो मर्दन कर उसे सुगन्धित कर काश्मीरदेशसम्भूता कस्तूरी हयधमा स्मृता । देते हैं। असली मृगनाभिसे इसमें एक अन्तर यह है कस्तूरिका कटुस्तिका क्षारोष्णा शुक्रला गुरुः । कि इसमें नाभिमूल (Navel ) नहीं पाया जाता। कफवातविषपछदि शीतदौर्गन्धदोषहृत् ।।" कभी कभी नाभिकोषसे असली कस्तुरी निकाल कर - ( भावप्रकाश ) । उसमें मृगनाभिके जैसा कोई दूसरा पदार्थ कस्तूरीके NI, Avin 62