पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२४९

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मृगनानि साथ भर दिया जाता है। प्राचीन पुत्तंगीज थापारियोंके | प्रसूतिकी नाड़ो शुष्क करनेके लिये पानके साथ कस्तूरी वृत्तान्तसे मालूम होता है, कि चीनवाले बहुत पहले होसे | खानेको दी जाती है। यह शरीरको दुर्वलता दूर कर कृत्रिम मृगनाभि प्रस्तुत कर व्यवसाय करते थे, वे मृग उत्तेजना शकि (Stimulative action.) बढ़ाती है। चर्मके कृत्रिम गोलाकार कोष प्रस्तुत कर उसमें बैल या | पीठको पोहामें कस्तूरोका मर्दन विशेष उपकार करता गायके यकृतको चूर कर कस्तूरोके साथ मिला कर | है। इसको गन्ध कड़ी होने पर भी इससे एक प्रकारको बेवते थे। सुगन्धि तैयार होती है। साइविरियाके मृगनाभि ( The cabardien or ___ इंगलैण्डमें मस्कसे जो जो औषध प्रस्तुत होती है Russian Musk) की गन्ध उतनी अच्छी नहीं होती। वे आक्षेपनिवारक, कामोडीपक और उष्णवीयकर आसामको कस्तूरीको कड़ो गन्ध होती है और इसका हैं । मोहकज्वर (Typhus) आन्त्रिक ज्वर ( Typho- मूल्य भी अधिक होता है। टोकिन् ( The Tonquin id ) और क्षयकर ज्वरों में ( Asthenic type:), भाक्षेपके or Chinese Musk ) कस्तूरो सबसे अच्छो गन्धको साथ हांपना, कण्ठनालीके द्वारा 'आक्षेप ( Laryn- और मूल्यवान होती है। इसका एक एक कोष २६ से | gismus stridulus ), खांसी (Whooting congh), ३२ शिलिंगमें विकता है। इङ्गलैण्ड होमें इसका अपस्मार ( Epilepsy) और ताण्डव (Chorca) आदि विशेष मान है। इससे टिंचर मस्क आदि | रोगों में इससे विशेष उपकार होता है। एलोपैथिक औषधि प्रस्तुत होती है। भावप्रकाशकी भारतसे प्रतिवर्ष वुसाहर, चाङ्ग थान, यारकन्द कथित कामरूपो, नेपाली और कश्मीरी कस्तूरीमेंसे काम आदि स्थानों में कस्तूरीको रफ्तनी होती है। दस्त इ. रूपो हो का अधिक गुण बतलाया गया है। अनुमान खत्तान या प्रेतातार मरुदेशको कस्तूरीका मूल्य प्रति किया जाता है कि यह चीन या तिव्वतके हरिणोंको नाभि औन्स ४२। रु० है। भारतीय कस्तुरीका मूल्य प्रति होतीथी और सम्भवतः उन देशोंसे प्रसिद्ध कामरूप औन्स २०) रु०से अधिक नहीं होता। राज्य में आसाम हो कर वाणिज्यके लिये आती थी। ___व्यापारमें नकली कस्तूरीका प्रचार हो रहा है। शिकारी लोग जो कस्तूरी बेचनेके लिये वाजार | गन्धके लिये असली कस्तूरीके स्थानमें वैसी ही गन्ध- लाते हैं वह प्रायः रोमोंसे ढकी रहती है । शिकारके | वाले दूसरे पदार्थसे भी कस्तूरीको गन्ध प्रस्तुत की वाद वे पेटके चमड़े के साथ नाभि काट लेते हैं। पीछे जाती है। आगसे तपाये पत्थरके टुकड़े पर उसके मांसको सुखा दूसरे जीव और उभिजमें भी कस्तूरीकी-सी गन्ध लेते हैं। इस विधिसे ऊपरके रोए नष्ट नहीं होते। मिलती है। इन सर्वोम भारतके छछ्दर ( musk-rats ) नाभिकोष काट कर उसे धूप में सुखाना सबसे अच्छा है। उल्लेखनीय है। डरने पर इसके शरीरसे कस्तूरी जैसी आज कल एशिया और भारतसे यूरोप और अमेरिका | कड़ी गन्ध निकलती है। इसके, मलमूत्रसे भी तमाम कस्तूरीका व्यवसाय चलता है। इसी प्रकारकी दुर्गन्ध निकलती है। प्रसिद्ध सौगन्ध- उपदंश, प्रमेह आदि शृङ्गारजनित रोगोमें दो या तीन कार मि० पिसे अपने वनाये Art of Perfumery दिन एक शाम सरसोंके दरावर कस्तूरी सेवन करनेसे | नामक ग्रन्थमें लिखते हैं कि यद्यपि आजकलका शौकीन उपकार दीख पड़ता है। क्षतभागमें प्रलेप देनेसे मांस | सभ्य समाज कस्तूरीकी कड़ी गन्धको पसन्द नहीं करते तो भी इतना जरूर है कि वढ़ता है । घोके साथ मिला कर घरमें रखनेसे गंदी यूरोपवासी हवा दूर हो जाती है। शौकीन लोग इसे तम्बाकूके जनसाधारण इसकी गन्धसे प्रतिदिन मोहित होते हैं। साथ पीते हैं। मृत्युकालमें नाड़ी क्षीण होने पर टिंचर यूरोपके अधिकांश गन्धद्रव्य कस्तुरीके संयोगसे प्रस्तुत मस्क या थोड़ी-सी कस्तूरी मधुके साथ पीस कर सेवन होते हैं। इससे गन्धद्रष्यकी शक्ति बढ़ती है और यह उसके करानेसे नाडीको गति पलट आती है । सूतिका घरमें | स्थायित्व और कोमलत्व ( Snbtility of odour ) को