पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२५

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मुद्रातत्त्व (पाश्चात्य) सार्वभौमिक मुद्राशिल्प ग्रीसमें प्रचलित हुआ, तब ] किया जाता है। लोनियन और मेसेनियन लोगोंने स्थानीय शिल्पकी स्वतन्त्रता और विचित्रता लुप्त हो | आगे चल कर इसीका अनुसरण किया था। कर एकाकार हो गई। अलेकसन्दरके कुछ पहले तक आइयोनियाके शिल्पविद्यालयमें पहले पारस्यशिल्प- स्थानीय ग्रीकशिल्प परस्पर प्रतिद्वन्द्वितामें उन्नति का प्रभाव दिखाई देता था। पीछे प्राक्सिटेलिसका पथसे बढ़ रहा था। इसी समय भारतीय आदर्शने उनकी अनुकरण करके उसने ऊंचा स्थान प्राप्त किया। आइ. जड़ काट डालो। . योनिया और हेल्लस ( Hellas) की मुद्राङ्कित पासि- पूर्वोक्त ग्रीक मुद्राशिल्पकी पर्यालोचना द्वारा ऐसा फोन-मूर्ति देखनेसे आइयोनियाकी श्रेष्ठताको अवश्य अनुमान किया जाता है, कि प्रसिद्ध चित्रकारों अथवा स्वीकार करना पड़ेगा। हेलसकी मुद्रामें भी मनो- भास्करोंका आदर्श पहले सर्वत्र ग्रहण नहीं किया जाता | मोहनेवाले शिल्पोंका अभाव नहीं है। कहनेका तात्पर्य था। मुद्राशिल्पके साथ साथ लोग उसका अनुकरण यह कि ग्रीक-शिल्पका इतिहास प्रीक-मुद्राको विविध करने लगे थे। आरिष्टटलके मतसे सबसे पहले प्रसिद्ध ग्रीक ग्रीक चिचिलताओंसे भरा हुआ है। चित्रकार पालिगनोटस केवल आकृतिके मुद्रणमें पारदशी हेलसके भास्करगण संसारमें अद्वितीय हैं। किन्तु थे। पीछे पालिक्लिटसकी शिल्प-आदर्शमें प्रसिद्धि हुई। एशियामाइनरके चित्रकरगण भास्कर और चित्रकला- .' पूर्वोक्त दोनों चित्रकारोंने उस समय मुद्राशिल्पमें ऐसी | को मानो परिणयसूत्र में बद्ध कर संसारमें चित्रविद्याका प्रसिद्धि पाई थी कि भुवनविख्यात चित्रकार फिडियस | गलौकिक निदर्शन रख गये हैं। एशियामाइनरके मुद्रा .अथवा माइरनको भी वैसी प्रसिद्धि नहीं मिली थी। शिल्पमें शिल्पविद्याका चरमोत्कर्ष दिखलाया गया है। मध्यग्रीसके शिल्प-आदर्शमें आटिका ही प्रधान यह स्थान ज्युकसिस (Zeuxis), पारहासयम और केन्द्र था। यही आदर्श धीरे धीरे माकिदनीय, आस्फि- एपेलिस आदि भुवनविख्यात चित्रकारोंकी जन्मभूमि है। वोलिस और कालसाइडिसमें फैल गया। ये सव शिल्प- | आइयोनियाके शिल्पियोंने शारीर-विद्या ( Anatomy).. आदर्श फिडियसकी अतुल कीर्तिका मुकावला करते | शास्त्रको अच्छी तरह पढ़ कर चित्रकलामें थे। पालिक्लिटस आटिकाके शिल्पविद्यालयके प्रतिष्ठाता | उसका अपूर्व समावेश किया है। ये चित्र- थे। परवत्तीकालमें प्राक्सिटेलिस और स्कोपसने अच्छा | शिल्पिगण जिन सव प्रसिद्ध आदीसे मान- नाम कमाया था। इस युगका मुद्राशिल्प बड़ा ही विचित्र वीय चित्रविद्याके अपरूप विकाशका सम्पादन कर गये था। किन्तु फिड़ियसके समयका मुद्राशिल्प हर हालतमें } हैं उसकी आज भी अच्छी तरह समालोचना करने- . - प्रकृतिका अनुकरण करता था। निसर्गकी इस प्रकारकी को शक्ति मानवजातिमें नहीं है। इन सब शिल्पियोंने अविकल अनुकृति पृथ्वीमें और कहीं भी नहीं थी। मनोविज्ञान ( Psychology ) और शारोर-विज्ञानका यहां तक कि जीवजन्तु आदिको प्रतिमूर्ति सजीव-सी ऐसा धनिष्ठ सम्बन्ध स्थापन किया था, कि उसका मालूम होती है। ख्याल करनेसे मानुषोशक्तिको मुक्तकण्ठसे धन्यवाद देना . प्राक्सिटेलिस और स्कोपसके समयमें भास्कर- होगा। इन लोगोंने मनोवृत्तिके सामान्य परिवर्तनको विद्याकी अपेक्षा चित्रशिल्पको प्रधानता दिखाई देने ममर-पत्थर और धातुको वनी मुद्रामें इस प्रकार दिख. लगी । इस समय चित्र-कलाने शारीर-सौन्दर्यके | लाया है, कि वक्ता और कवि सैकड़ों कण्ठोंसे उसे यदि आकृतिसौष्ठवका परित्याग कर हृदयकी वृत्तियोंकी | प्रकाश करना चाहें, तो नहीं कर सकते । स्नेहके असंख्य विचित्रता दिखलाना आरम्भ किया। उस साथ प्रेमका पार्थक्य, लजाके साथ विनयका तारतम्य, समयकी मुद्राएं इसका जाज्वल्यमान. प्रमाण हैं। इस औद्धत्यके साथ अहङ्कारका विभेद और क्रोधके साथ मुद्राशिल्पका उच्चतम विकाश सिसली और साइराफ्युज असूयाका विश्लेषण अच्छी तरह दिखलाया गया है। के मुद्राडित पासिफोनका मस्तक देख कर अनुमान | सिजिकस ( Cyzicus ) नगरीकी हेका-मुद्रा भास्कर