पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२५०

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मगनाभिजा-अंगमदास २४७ प्रतिपापक होती है। परन्तु छळू'दरकी अंतड़ीसे | मृगपति (सं० पु० ) मृगाणां पतिः। १ सिंह । २ काम- उत्पन्न कस्तूरी जैसी गन्ध किसी काममें नहीं आती। प्रद, श्रेष्ठ। सावुन, सैचेट पाउडर और तरल एसेन्समें इसको "यल्लीला मृगपतिराददेऽनवद्या- मूलगन्ध दी जाती है। सावुनकी क्षारज प्रतिकिया- मादातु स्वजनमनांस्युदारवीर्यः।" (भाग० ॥२५॥१०) की वृद्धि के साथ गन्धकी भी अधिकता दीख पड़ती है। मृगपद (सं० क्लो०) १ मृगका पैर। २ मृगके खुरका कपूर, आर्ग, मलेरिया आदि मिलानेसे इसकी तीखी चिह्न या गड्ढा जो जमीन पर पड़ गया हो। गन्ध दूर हो जाती है। मृगपालिका (सं० स्त्रो०) कस्तूरी मृग। ___ जीवज कस्तूरी गन्धसारको छोड़ उद्भिद् जगत्में मृगपिप्लु (सं० पु० ) अपिप्लवते भासते इति अपिप्लु. कई लताओंमें इस प्रकारको गन्ध पाई जा सकती है। बाहुलकात् संज्ञायां ड, अपेरल्लोपश्च, मगः हरिणः पिप्लु. कस्तूरो नामक वृक्षकी गन्ध प्रायः वैसी ही होती है। रत। चन्द्रमा। Mimulus, Moschatus. Ferula Sumbul और मृगप्रभु (सं० पु०) मृगाणां प्रभुः ६-तत् । सिंह। Hibiscus Abelmoschus प्रभृति कस्तूरीसी गन्धयुक्त मृगप्रिय (सं० क्लो०) मृगाणां प्रियम् । १ पर्वततृण, लताओंको गन्ध कितने ही कामोंमें आती है। इन द्रव्यों भूतृण । गुण-बलकर, रुचिकर, पुष्टिकर और पशु- का अनेक स्थानसे चलान होता है। इसका वीज सुग- हितकारक । स्त्रियां टाप । २ जलकदली। . न्धित तेल और सुगन्धित द्रव्य (Perfumery) बनानेके | मृगवन्धनी (सं० स्रो०) मृगः वध्यते अनयेति बंध- काममें आता है। ल्युट्, स्त्रियां ङो। मृगवन्धनार्थ जाल, हरिण पक- मृगनाभिजा (सं० स्त्री० ) मृगनाभिर्जायते जन-ड स्त्रियां। डनेका फंदा । टाप् । कस्तूरी। मृगभक्षा (सं० स्त्री० ) मृगैर्भक्ष्यतेऽसौ भक्ष-क्रर्मणि अप्- मृगनाभ्याचवलेह (सं० पु०) अवलेहभेद। यह अवलेह टाप् । १ जटामांसी। २ इन्द्रवारुणी, इन्द्रायन । स्वरभङ्ग रोगमें विशेष उपकारी है। प्रस्तुत प्रणाली-मृग- मृगभद्र (सं० पु० ) हाथियोंकी जाति । नाभि, छोटी इलायची, लवङ्ग, वंशलोचन, इन्हें समान मृगमोजनी (सं० स्त्री०) विशाला, ग्वालककड़ी। भाग घृत और मधुके साथ मिला कर अवलेह करना मृगमद (सं० पु०) मृगाः माद्यन्ति अनेनेति मद-अप । होगा। (भावप्र.) कस्तूरी। मृगनेता (सं० स्त्री०) मृगनेत ( नेतृनक्षत्र उपसंख्यानां । पा "मृगमदकृतचर्या पीतकोषेयवासा। ५॥४१११६ ) इत्यत्र काशिकोक्त अप । मृगशिरा नक्षत्रसे रुचिरशिखि-शिखण्डावधम्मिल्लपाशा" (छन्दोम०) युक्त राति। अगहन महीनेके वीसवें दिन २० दण्डके २ हरिणकेसे नयन होनेका गर्व या अभिमान । वादसे ले कर संक्रान्ति तकके कालको मृगनेत्रा कहते मृगमदवासा (सं० स्त्री०) मृगमदस्येव वासः सौरभो- हैं। इसमें श्राद्ध, नवान्न आदि वर्जित हैं। ऽस्याः । कस्तूरी मल्लिका। "सा अग्रहायणस्य विंशतिदण्डाधिकत्रयोविंशदिनावधि मृगमदा (सं० स्त्री०) मृगमदा-स्त्रियां टाए । कस्तूरो । संक्रान्तिपरन्तं प्रायः सम्भवति, तत्र नवान्नश्राद्धनिषेधो यथा मृगमदासव (सं० क्लो०) मृतसञ्जीवनी ५० पल, जल २ "वृश्चिके शुक्लपक्षे तु नवान्नं शस्यते बुधैः । पल, मृगनाभि ४ पल, मिर्च, लवङ्ग, जायफल, पीपल, अपरे क्रियमाणं हि धनुष्येव कृते भवेत् ।। दारचीनी, प्रत्येक २ पल, इन्हें एक बरतन में रख कर उस. धनुषि यत् कृतं श्राद्ध मृगनेत्रासु रात्रिषु । का मुंह बंद कर दे और एक मास तक उसी तरह रख पितरस्तन्न गृहन्ति नवान्नामिषकाहिणः ॥" छोड़े। पीछे जलको छान ले, जलका यथायोग्य मात्रामें (मलमासतत्व) सेवन करनेसे विसूचिका, हिक्का और सान्निपातिक ज्वर (त्रि०) मृगस्य नेत्रे इव नेत्रे यस्य । ३ भूगतुल्यनेन, नष्ट होता है।