पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२५१

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२४६ मृगमन्द-मृगवतो मृगमन्द (सं० पु०) हस्तिश्रेणीभेद, हाथियोंकी एक जाति । | मगरसा (सं० स्त्री०) म.गस्य म गमांसस्येव रसोऽस्या।। मृगमन्दा (सं० स्त्री० ) कश्यप ऋषिकी क्रोधवशा नाम्नी | सहदेइया नामक पौधा, महावला। पत्नीसे उत्पन्न दश कन्याओंमेसे एक । इससे ऋक्ष, समर | मृगराज (स० पु० ) राजते दोप्यतेऽसौ राज-किप, ततः और चमर जातिके मृग उत्पन्न हुए थे। मृगाणांराट् । सिंह। मृगमन्द्र (सं० पु०) हस्ति श्रेणीभेद, हाथियोंकी एक जाति। मृगराज ( स० पु०) मृगाणां राजा (राजाहसखिभ्यष्टच । मुगमय (संत्रि०) वन्य श्वापदविशिष्ट, जंगली हिंसक | पा ॥४१६१) इति टच । १ सिंह । २ व्याध । ३ एक प्राचीन जन्तुसे भरा हुआ। कविका नाम । मुगमरोचिका (सं० स्त्री० ) मृगतृष्णा देखो। मृगराजधारिन् ( स० पु०) १ चन्द्रमा ।२ सिंहराशि । मृगमातृक (सं० पु०) कस्तूरी मृग, लंबोदर मृग। मृगराजलक्ष्मन (सं० क्लो० ) सिंहचिह्न । मृगमातृका (सं० स्त्री० ) कस्तूरी मृगो। मृगराटिका (सं० स्त्रो०) मृग-रट-ण्वुल, स्त्रियां टाप, अत मृगमालारस (स० पु०) प्रमेहाधिकारमें रसौषध इत्वञ्च । जोवन्ती। विशेष । मृगरिपु (सं० पु० ) मृगाणां रिपुः ६-तत् । सिंह। मृगमित्र ( स० पु०) चन्द्रमा । मृगरोग (सं० पु०) मृगस्य रोगः। १ मृगज्वर । २ म गया (सं० स्त्री० ) मुग्यन्ते पशवोऽस्यां इति मग णिच, | घोड़े का घातकरोग। इसने वे जल्दी जल्दी सांस लेते (इच्छा । पा ३३१०१) इत्यत्र परिचर्यापरिसर्याम गया हैं और उनके नथुने सूज-से आते हैं। यह रोग बहुत टाट्यानामुपसख्यानम् । इति वार्तिकोक्त्या से यकिणि- कष्टसाध्य है। इसमें ६ मासके भीतर घोड़े की मृत्यु लोपः। राजाओंको वनमें मृगहनन क्रिया, शिकार, अहेर।। हो सकती है। जवसे उन्हें उसास आने लगे, तभीसे पर्याय-आच्छोदन, म गव्य, आखेट । यह कामज व्यसन- विशेष है, अतः शास्त्र में इसकी निन्दा की गई है। मृगरोचन (स'० पु०) कस्तूरी, मुश्क। "म गयानो दिव स्वप्नः परीवादो स्त्रियो मदः । मृगरोमज ( स०नि०) मृगाणां रोमभ्यो जायते इति तौर्यत्रिकं वृथाट्या च कामजो दशको गुणः ॥" जन ड। पशुलोमजात वस्त्रादि, पशुके रोओंसे तैयार (मलमासतत्त्व) किया हुआ कपड़ा। नैषधमें लिखा है, कि राजाओंके लिये मृगया दोषा मृगलण्डिका (सपु०) फलविशेष। वह नहीं है। मृगलाञ्छन ( स० पु०) मृगः लाञ्छनं चिह्नमस्य । "अवलम्बकुलाशिनोझसान्निजनीड्द्रमपीडिनः खगान् । चन्द्रमा। अनवद्यतृणादिनो म गान् म गयाघाय न भूम ता घ्नताम् ॥" मगलाच्छनज (सपु०) मृगलाञ्छनात् जायते जन-ड। (नौषध २१०) चन्द्रज, बुध । म गयारण्य (स' क्ली०) क्रीडाकानन, वह वन जिसमे मृगलेखा ( सं स्त्री०) मृगचिह्नित चन्द्रमाकी कलङ्क आखेट किया जाय । प्राचीनकालमें राजे महराजे रेखा, चन्द्रमाका धब्बा । शिकार करनेके लिये अरण्य लगवाते थे। मृगलोचना (स० स्त्रो०) मृग-इव लोचने यस्याः। मृग- __ "कारयेन्म गयारण्य क्रीड़ाहेतोम नोरमम् ॥" - नयना, हरिणके समान नेत्रवाली स्त्री (पु०)२ चन्द्रमा (कामन्दकी नीति० १४१२८) । (त्रि०) ३ हरिणके समान नेत्रवाली। मृगयावन (सं० क्ली०) शिकारोपयोगि-धन, आखेट मुगलोचनी (सं० स्त्री० ) म गलोचना देखो। करने लायक जगल। मृगव (सं० पु०) वौद्धशास्त्र के अनुसार एक बहुत बड़ी म गयु स० पु०) मृग' यातीति मग (म गय्वादयश्च ।। उया ११३८ ) इति कु, निपात्यते च। १ ब्रह्मा। २ मृगवती (स'० स्त्री०) समर और भल्लूकादिकी पुराण- कल्पित आदिमाता। शृगाल।३व्याधी