पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२५५

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२१२ मृगेन्द्रचंटक-मुणाल मृगेन्द्रचटक (सं० पु०) मृगेन्द्र इव विक्रमी चटकः । श्येन- , मृच्छिलामय (स' त्रि०) मृच्छिला-विकारे मयष्ट् । मंत्रिका पक्षी, बाज चिड़िया। वा शिलाविकार। मृगेन्द्रता (सं० स्त्री०) मृगेन्द्रस्य भावः तल् टाप् । मृगेंद्र- मृज (स० पु०) मृज्यते ऽसौ इति मृज कृत्य ल्यूटोबहुलं का भाव या धर्म, सिंहत्व। मिति कर्मणि क । वाद्यविशेष, मुरज नामका वाजा। 'मृगेन्द्रमुख (सै० क्ली०) छन्दोंभेद। इस छन्दके प्रति मजा (सं० स्त्री० ) मृज्यते इति मृज् ( षिद्भिदादिभ्योऽङ् । चरणमें तेरह अक्षर रहते हैं जिनमेंसे १, २, ३, ४, ६ पा ३३१०४ ) इति अङ, टोप च । माजन। ६ और ११ अक्षर लघु और शेष गुरु होते हैं। | मुजानगर (सं० क्ली० ) नगरभेद। मृगेन्द्राणी (स' स्त्री०) १ वकवृक्ष । २ सिंहनी। | मृजापुर-युक्तप्रदेशके अन्तर्गत एक जिला और नगर । मृगेन्द्राशी ( स० स्त्री० ) मृगेन्द्रेण अश्यते इति अश् धम्, | (म० ब्रह्मखण्ड० ४७११७२-७४ ) मीर्जापुर देखो। गौरादित्वात् ङीष् । वासक, अड़स। राजनि०) मृजावत् ( स० त्रि०) मजा-मतुप मस्य च । पवित्रा- मृगेन्द्रासन (स क्ली०) सिंहासन। न्वित। मृगेन्द्रास्य (सं० त्रि०) १ सिंहमुख। (पु०) २ शिव । । मृजाहुसेन अली-त्रिपुरावासी एक मुसलमान जमींदार । मृगेल (हिं० स्त्री०) एक प्रकारको मछली । यह युक्तप्रांत, इष्ट इण्डिया:कम्पनीके दशसाला वन्दोवस्तके कागजमें बंगाल, पंजाब तथा दक्षिणकी नदियों में पाई इसका नाम पाया जाता है। अतएव वह उससे एक "जाती है। इसकी आखें सुनहरी होती हैं। यह डेढ़ हाथ सदी पहले विद्यमान था । त्रिपुराके अन्तर्गत वरदाखातमें के लगभग लंबी और तौलमें नौ या दस सेर इसकी जमीदारी थी। कवित्वशक्तिके लिये यह बहुत होती है। कुछ प्रसिद्ध था। सैयद जाफर खाँ नामक एक सुकवि मृगेश (संपु०) सिंह । इसीके समयमें विद्यमान थे । कहते हैं, हुसेन अली मृगेष्ट (संपु०) मुद्रपुष्पवृक्ष, गन्धराज फूलका पेड़।। कालीपूजा बड़ी धूमधामसे करता था। मृगैर्वारु (सं० स्त्री० ) मृगस्य प्रिया इव वारुः। श्वेत मृज्य (स' त्रि०) मृज्यते यत् इति मृज् (मृनेविभाषा । पा इन्द्रवारुणी, सफेद इन्द्रायन । पर्याय-मृगांक्षी, श्वेतपुष्पा'] ३१११३ ) इति क्यप् । मा, माजन करने योग्य । मृगादनी, चित्रवल्ली, बहुफली, कपिलाक्षी, मृगेक्षणा, चित मृड (स.पु०) मृति हृष्यतीति मृड इगुपधत्वात् कतरि चित्रफला, पथ्या, विचित्रा मृगनिर्मिटा, कुस्भिनी, देवा, क। १ शिव, महादेव । कटफला, लघुचिभिटा। गुण-दुर्जर, गुरु, मन्दानल- मृड्कण (स' पु०) मृङनति सुखयतीति मृड़ (मूडः कीकन कारक और रक्तपित्तहारक । ( राजनि० ) कंकर्णी। उण ४।२४ ) इति कङ्कण । बालक । मंगेश्वर ( स० पु०) मृगाणामोश्वरः । मृगेन्द्र, सिंह। मृडन (स० क्ली०) सुखीकरण, आनन्दित करना। मृगेष्ट (सं० पु०) मृगाणामिष्टः । मुद्गर पुष्पवृक्ष, गंधराज | मृड़य (स० त्रि०) सदय, दयालु। फूलका पेड़। मृड़ा (स० स्त्री०) मृड़-टॉप, डीप च । दुर्गा । भृगोत्तम (सं० पु०) मृगश्रेष्ठ, सिंह । २ मृगशिरानक्षत्र । मृडाकु (सं० पु०) एक ऋषि । भृगोत्तमाङ्ग (सं.क्ली०) मृगशिरानक्षत्र । मृडानी (स. स्त्री०) दुर्गाका एक नाम । . मृग्य ( स० त्रि०) मृग्यते अन्विष्यतेऽसौ ‘मृग-कमणि मृडोक (सं. पु० ) मुड़तीति मृड़ (मृड: कीकन् कङ्क । यत् । अन्वेषणीयखोजने लायक। उण ४१२४) इति कोकन् । हरिण, हिरन । मृचय (संपु०)१ मरणशील, क्षणस्थायी। मृणाल (संपु० क्ली०) मृण्यते हिंस्यते भक्षणाद्यर्थ' यत् मृञ्चय (सं० पु०) मृत्तिकाराशि, मिट्टीकी ढेर। मृण (तिमिविशिविड़ि मृणिकुमित्रपिपलिपञ्चिभ्यः कालन् । उण. मृच्छकटिक (सं० क्लो०) रोजा शूद्रकका बनाया हुआ ११११७) इति कालन् । पङ्कजादिका नाल, कमलका डंठल एक प्रसिद्ध संस्कृत नाटक । शूदक देखो। जिसमें फूल लगा रहता है। संस्कृत पर्याय-पद्मनाल,