पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२५६

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मृणालक-मृतवत्सा । मृणाली, मृणालिनो, पद्मतन्तु, विसिनी नलिनीरुह । मल् श्रीवंशगाः स्त्रियश्च चपला नीचा जना उन्नता। : हा कष्टं खलु जीवितं कलियुगे धन्या नरा ये मृताः ॥" गुण-शीतल, तिक्त, कषाय, पित्तदाह, मूत्रकृच्छ, विकार (गरुड़पु० ११५ २०) और रक्तवमननाशक । ( राजनि.)२ उशीर खस । ३ | वीरण मूल, खसकी जड़। ४ कमलको जड़, मुरार। मृतक (सं० क्ली०) मत-स्वार्थे कन् । १ शव, मुर्दा। २ मरणाशौचन मृणालक (सं. पु०) मृणाल-खार्थे कग । मृणाल, "यदि स्यात् सूतके सतिम त के च म तिस्तथा। 'कमलनाल। शेषेणैव भवेच्छुद्धिरह शेषेद्विरात्रकम् ॥” (शुद्धितत्व ) मृणालकण्ठ (सं० पु०) जलचर पक्षिविशेष । मृतककर्म (सं० पु० ) वह कृत्य जो मृतक पुरुषको शुद्धि- मृणालमूल (सं० क्ली०) पद्मकन्द । गतिके लिये किया जाता है, प्रेतकर्म । मृणालवत् (सं०नि०) भृणाल-मतुप मस्य व। मृणाल- मृतकधूम (सं० पु०) भस्म, राख । विशिष्ट, जिसमें कमलनाल लगा हो। मृतकल्प (सं० त्रि०) मृत (ईषदसमासौ कल्ववदेश्यदेशीयरः । मृणालाद्यतैल (सं० क्लो०) वातरक्ताधिकारमें तैलौषध- । पा ५३६७ ) इति कल्पम् । मृतप्राय, रोग, शोक, दारिद्र विशेष । प्रस्तुत प्रणाली-तिलतैल ४ सेर, चूर्णके लिये आदि कष्टसे मृतके समान जीवनधारणकारी। . पद्मनाल, नीलोत्पल, शालूक, अनन्तसूल, सुगंधवला, मृतकान्तक (सं० पु०) मृतकस्य अन्तकः भक्षकत्वात् । नागकेशर, रक्तचन्दन, श्वेतचन्दन, चिरायता, पझवीज, | शृगाल, गीदड़। केशर, पढ़ार, कटकी, अनन्तमूल, प्रियंगु, पित्तपापड़ मृतगृह (सं० क्लो०) १ मुमूर्षु गङ्गायात्रोके रहनेके लिये और अडूस कुल मिला कर १ सेर ; गन्धतृण मूलका गृह ( Moribund house )। २ समाधिस्थान, कत्र । रस ४ सेर, दूध २ सेर। पीछे यथाविधान तेलपाक | मृतजीव (सं० पु. ) मृतश्चासौं जीवश्चेति नीललोहिता- करना होगा। इस तेलका वस्तिक्रिया, नस्य, अभ्यङ्गभार दिवविशेषणसमासः। १ तिलकवृक्ष। २मरा.हुआ पीनेमें प्रयोग करनेसे पित्तजन्यरोग नष्ट होता है। प्राणो। (भावप्र० वातरक्ताधिकार) मृतजीवनी (सं० स्त्री० ) १ दुग्धिका, दुधिया घास। २ मृणालिन (सं० पु०) मृणालमस्तीतित्यर्थे इनि । पद्म, वह विधा जिससे मुर्देको जिलाया जाता है। कमल। मृतजीविन (सं० पु०) दुग्धिका, दुधिया घास । मृणालिनी (सं० स्त्री०) मृणालानि अस्याः सन्तीति मृतण्ड (सं० पु०) मृतः अण्डः कारणत्वेन यस्य - शक- मृणाल-( पुष्करादिभ्यो देशे । पा ५।२।१३५) इति इनि, ङोष स्वादित्वात् पररूपं । सूर्यपिता। . च।१ पभिनी, कमलिनी ।२ पद्मयुक्तदेश, वह स्थान जह। मृतधर्मा (सं०नि०) नष्ट हो जानेवाला, नश्वर ।. कमल हों। ३ पद्मसमूह । ४ पद्मलता। मृतप (सं० पु०) मृतरक्षक, शवदेहकी रक्षा करनेवाला। मृणाली (सं० स्त्री०) मृणाल-गौरादित्वात् ङीष् । मृणाल मृतपा (सं० पु०) १शवरक्षक । २ शव-वस्त्रशय्यादिनाही, कमलका डंठल । नदीके किनारे श्मशान पर लाश ले जानेवाले नीन श्रेणी- मृत (सं० क्ली०) मृत। १ मृत्यु, मरण। २ याचित के लोग। वस्तु, मांगी हुई वस्तु। (त्रि०) ३ याचित, मांगा .मृतभ्रज (सं० वि०) नष्टवीर्य । हुआ। ४ गतप्राण, मरा हुआ। पर्याय-परासु, प्राप्त-मृतमत्त (सं० पु०) मृतेन शदेन मत्तः भक्ष्यलाभात् । गाल पञ्चत्व, परेत, प्रेत, संस्थित, प्रमीत । कलियुगमें मृत गीदड़। व्यकि ही धन्य है। मृतमनस् (सं० त्रि०) हतचैतन्य, उदास। . "धर्मः प्रबजितस्तपः प्रवसित सत्यञ्च दूरे गतं । मृतवत्सा (सं० स्त्री०) मृता वत्स्या यस्याः । १ मृतापत्या, पृथ्वी मन्दफला जनाः कपटिनो लौल्ये स्थिता बाहयाः॥ वह स्त्री जिसकी सन्तति मर भर जाती हो। योनि- Vol, AVIII 64