पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२५८

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मृतसञ्जीवनीसुरा-मृताण्ड २५५ भाग, इनका काजल बना कर · अवरक, लोहा, तांवा, । पहले गुड़को धाल कर पीछे यथाक्रम अदरक, वावलेकी विष, हरताल, कौड़ी, मैनशिला, हिंगुल, चिता, वला- छाल और बेरकी छाल उसमें डाले और अच्छी तरह मिलावे त्मिका, अतोस, सोंठ, पोपल, मिर्च, सोनामक्खी, प्रत्येक अनन्तर सुपारी और लोध डाल कर ढक्कनसे वरतनका एक भाग, अदरकका रस, सिद्धिको पत्तियोंका रस और मुह बंद कर दे और २० दिन उसी अवस्थामें रख छोड़े! सम्हालुको पत्तियोंका रस, इन तीनों प्रकारके रसमें तीन | अनन्तर मिट्टीके मोहिका यन्त्रमें और मयूराक्षेपित मंत्रमें तीन दिन भावना देकर शीशीमें बंद रखे । पीछे | धीमी आंचसे गरम करे। पीछे उस वरतनमें सुपारी, वालुकायलमें दो पहर तक पाक करके अदरकके रसमें | एलवालुक, देवदारु, लवङ्ग, पद्मकाष्ठ, खसकी जड़, मले। सान्निपातिक विकारसे रोगी यदि मृतप्राय हो रक्तचन्दन, दारचीनी, इलायची, जायफल, मोथा, गठि जाय, तो यह औषधं उसे अच्छा कर देती है। भगवान् | वन, सोंठ, सोयां, यमानी, मिर्च, जोरा, मंगरेला, कपूर, शङ्करने स्वयं यह औषध प्रस्तुत की है। जटामांसी, मेथी, मेढासिंगो, रक्त चन्दन प्रत्येक ४ तोला, .. . (रसेन्द्रसारसंग्रह ज्वराधि०) अच्छी तरह कूट कर डाल दे। इसके बाद सुरा प्रस्तुत - तीसरा तरीका-पीपल १ भाग, वत्सनाभ विष १ । करनेको प्रणालोके अनुसार चुआवे । उपयुक्त मात्रामें भाग, हिङ्गल २ भाग इन्हें जबोरी नीबूके रसमें घाट | सेवन करनेसे वल, अग्नि, पुष्टि, स्मृति और रतिशक्ति कर मूली-वोजके समान गोली वनावे । अनुपान शीतल आदि बढ़ती है। यह सबसे उमदा वाजीकरण है। जल है। इसका सेवन करनेसे ज्वरातिसार, विसूचिका मृतसञ्जीविन् ! सं० त्रि०) मृतको जिलानेवाला। . और सन्निपात ज्वर आरोग्य होता है। इसे मृतसञ्जी- मृतसूत (सं० पु०) रससिन्दूर । वनी गोली भी कहते हैं। मृतसूतक (सं० क्लो० ) १ मृतवत्सा, मृत सन्तान उत्पन्न ___ चौथा तरीका-पारा और गन्धक समभाग, विप करनेवाली स्त्री। २ जारित पारद, भस्म किया हुभा चतुर्थाश, अवरक सबोंके समान, इन्हें धतूरे के रसमें | पारा। पीस कर रस्नाके रसमें एक पहर तक घोटे । पीछे मृतस्नात (सं० त्रि०) ज्ञातिवन्ध्वादीनामन्यतमस्मिन् मृते धवफूल, अतीस, मोथा, सोंठ, जीरा, सुगंधवाला, यमानी, सति मृतमुद्दिश्य विधिना स्नातः ।मृतोद्द शसे स्नात, जिस- धनिया, वेलसोंठ, अकवन, हरीतको, पीपल, कूटज- ने किसी सजाति या वंधुके मरने पर उसके उद्देश्यले वल्कल, इन्द्रजौ, कपित्थ, अनार और सुगंधवाला प्रत्येक स्नान किया हो । पर्याय-अपस्नात।२ संस्कारार्थ स्नापित दो तोला, इन्हें चौगुने जलमें पाक फर चतुर्थ भागाव- मृत, वह मुरदा जिसे दाहके पूर्व स्नान कराया गया हो। 'शेप क्वाथमें तोन दिन भावना दे कर वालुकायन्त्रमें | ३ जिसे मरनेके कुछ समय पहले स्नान कराया गया हो। धीमी आंचसे पकावे। इसकी मात्रा ४ रत्तो और अनु- मृतस्नान (सं० क्ली० ) मृत मुद्धिश्य स्नानं । मृतोद्देशसे पान सोंठ, अतीस, मोथा, देवदारु, पोपल, वच, यमानी, | स्नान, किसी भाई बंधुके मरने पर किया जानेवाला सुगंधवाला, धनिया, कूटज-वल्कल, हरीतकी, धवकूल, स्नान | २ मृतकका स्नान। . इन्द्रजौ, वेलसोंठ, अकवन और मोचरस, . समान भाग | मृतस्वमोक्तृ ( स० पु०) मृतवत् खराज्याधनादिकं मुश्च- ले कर चूर्ण करे । पीछे मधुके साथ इसका सेवन और तीति मुच ( वासरूपोऽस्त्रियां । पा ३१४) इति 'लेपन करनेसे असाध्य वरातिसार रोग नष्ट होता है। पक्षे तृच् । १ राजर्षि २ राजा कुमारपालका एक नाम । . . (रसेन्द्रसारस०) मृतहार (सं० पु०) मृतवहनकारी, मुरदा ढोनेवाला। मृतसञ्जीवनीसुरा ( स० स्त्री० ) एक वाजीकरण औषध । मृतहारिन् (सं०.पु०.) शववाही, मुरदा ढोनेवाला। .. प्रस्तुत प्रणालो-नया गुड़ १२॥० सेर, वावलेकी छालं, मृताङ्ग ( स० पु०) शवदेह, लाश । वेरकी छाल और सुपारी प्रत्येक २ लेर, अदरक एक मृताङ्गार ( स० पु०.) मुरदेकी भस्म । पाव, कुल मिला कर जितना हो उससे आठ गुनां जल । . मृताण्ड (सं० पुं० ) पक्षियोंका दृश्यमान प्राणहीन अण्ड