पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२५९

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५६ मृताधान-मृत्तिका मृताधान (स.पु. ) चिताके ऊपर शव रखना। क पा ३११११३५ ) इति क, (अंत इद्धातोपा 'मृतामद (स. क्ली०) मृतः नष्टः आमदः अस्मात् । तुत्थ, १००) इति इत् । धुंधरू। तूतिया। . मृत्खलिनी (सं० स्त्री०) चर्मकषा वृक्ष, चमरखा। मृतालक (सं० लो०) मृतमालयति इति अल-णिन् । मृत्ताल (सं० क्लो० ) मृदं तालयति प्रतिष्टापयतोति तल- वुल । १ आढ़की, अरहर । २ गोपीचन्दन। णिच् , (कर्मययणा । पा २२।१) इति अण्। आढ़की, मृताशन (सं०नि०) शवदेह-भक्षणकारी, मुरदा खाने) अरहर । 'वाला। मृत्तालक (सं० क्लो०) मृत्ताल संज्ञायां कन् । १ आढ़की, मुंताशौच (सं० क्लो०) वह अशौच जो किसो आत्मीय, अरहर । २ सौराष्टमृत्तिका, गोपीचन्दन । सबंधी, गुरु, पड़ोसी आदिके मरने पर लगता है मृत्तिका (सं० स्त्री०) मृदेव इति मृइ- (म दस्तिकन पा ५।४। और जिसमें शुद्ध होने तक ब्रह्मचर्यके साथ देवकर्म । ३६) खार्थ तिकन्, स्त्रियां राप्। १ तुबरो, अरहर । तथा गृहकर्मसे अलग रहना पड़ता है। (राजनि०)२ मृदु, मिट्टी। पर्याय-मृदा, मृति । ( मरत) मतान् (स'• क्लो०) मृतस्य अहः। मृताहदिन, मृत्यु ___ मृत्तिकाविज्ञानको उत्पत्ति विशेषतया वास्तुविद्या और कृषिविद्याकी उन्नतिके लिये हुई है। कैसी दिन वा तिथि । मृताहदिनमें पितृ भादिका श्राद्ध मिट्टीमे कौन कौन उद्भिद अच्छी तरह लग सकता है करना होता है। और उस मिझोके गुण तथा उत्पादिका-शकि कैसी मृति (सस्त्री०) मुक्ति। मरण, मृत्यु। है, इत्यादि विषयोंकी कृषिवेत्ताओने पालोचना की है। मृतिमन (सं० पु.) हैजा। वास्तुशास्त्रज्ञ स्थपति (Engineer )-गण अट्टालिका, मृतोत्थापनरस ( स० क्ली०) आयुर्वेदोक्त औषधविशेष ।। प्रासाद और देवमन्दिरादि निर्माण करनेके समय प्रस्तुत प्रणालीपारा १ भाग, गंधक २ भाग, मैनसिल मिट्टीको स्थिरताका पर्यवेक्षण कर उनको नीव डालते १ भाग, विष १ भाग, हिंगुल १ भाग, अवरक १ भाग, हैं। मिट्टी यदि वलुई अथवा हल्की हो तो दीवार बैठ तांबा १ भाग, लोहा १ भाग, हरिताल १ भाग और जानेका बहुत डर रहता है, इसी कारण वे लोग मिट्टीकी सोनामक्खी १ भाग इन्हें एक साथ चूर कर बिजौरा, तहोंके गुणागुण जान कर गृह-निर्माण किया करते हैं। जामुन, सम्हालू, बलात्मिकाको पत्तियां, प्रत्येकके रसमें हिन्दुओंके प्राचीन वेदादि शास्त्रों में मिट्टोकी पवित्रता ३ दिन मर्दन कर भूधरयन्त्रमें पाक करे । एक दिन पाक आदि गुणोंका वर्णन है। वाजसनेय-संहिताके "यत्पुरुष करके पीछे चीतामूलके क्वाथमें २ पहर तक घोटते रहे। ध्यदधुः" मन्त्रका पाठ कर वेश्याके द्वारकी मिट्टो ले कर माना आध रत्ती तथा अनुपान कपूर, हींग और त्रिकटु- भगवतीका स्नान कराना दुर्गोत्सव पद्धतिमें पाया जाता के साथ अदरकका रस है। इसका सेवन करानेसे | है। यागादिमें मिट्टीसे वेदी बनानेका आदेश है। गंगा- मृतप्राय व्यक्ति भी जी जाता है। पथ्य दूध बताया गया की मुत्तिकाको तो हिन्दूमात्र पवित्र समझते हैं। मिट्टी- है। ( मैषज्यरत्ना० ज्वराधिकार ) के शिवलिङ्गकी पूजा हिन्दुओंके घर घर होती है। इनके मृतोद्भव (सं० पु०) समुद्र, महासागर।। अतिरिक्त नदी, नहर और बड़े बड़े तालावके किनारे- मृत्कण (सं०. क्ली०) मृत्तिकाखण्ड, मिट्टीका टुकड़ा। की पवित्र मिट्टीले देवदेवीकी मूर्तियाँ बनाई और पूजी मुत्कपाल (सं० क्ली०) सृष्ट खर्पर, जली हुई मिट्टी। जाती हैं। प्राचीन समयमें मिट्टीकी प्रतिमूर्ति (Terra मृत्कर (सं०. पु०) करोतीति क-अच, मृदा करः, घटादि cotta figure) और मृत्फलक (Terra-cotta tablets) बनाये जाते थे, इससे प्राचीन सभ्यजातिके मिट्टी के निर्मातृत्वादस्य तथात्वं । कुम्भकार, कुम्हार। उत्तम व्यवहारका पता चलता है। बच्चोंके खेलनेकी मृतकांस्य (सं० क्ली०) शराव, ढक्कन । मेरिक़रा (सं० स्त्री०.), मृद, किरतीति क ( इगुपधज्ञाप्रीकिरः । पुतली तथा रसोईके वरतन आदि विभिन्न मिट्टीसे