पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२६

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मुद्रातत्त्व (पाश्चात्य) और चित्रकलाका अद्भुत निदर्शन है, जगत्में उसकी को उपविष्ट आपलोकी मूर्ति चित्रित होतो थी। एक उपमा नहीं। मूर्तिशिल्पमें आइयोनिया अतुल कीर्ति, ही समयमें किस प्रकार दोनों काम होता था उसका छोड़ गई है।

आज भी निरूपण नहीं हो सको है। रोमकी मुद्रा भी

___पाश्चात्य रोक शिल्पशालाके आदर्श पर इटली और | उसी प्रणालीसे प्रस्तुत होतो थी। प्रसिद्ध मुद्रातत्वज्ञ- सिसलीका मुदाशिल्प विशेष उल्लेखनीय है । इस के एखेल (Ekhel) की मुद्राके श्रेणीविभागकी पालोचना विद्यालयके आदर्शों ने केवल कमनीय सौन्दर्यका विश्ले- करनेसे अनेक रहस्य मालूम हो सकते हैं। उन्होंने स्पेनसे पन करनेमें कोशिश की थी। साइराफ्युसका पार्सिफोन : विभाग आरम्भ किया है। पोछे गल वा फ्रान्स और केवल विलासविह्वला सुन्दरी वालिकामात्र है। उनके उसके वाद ब्रिटेन है। ये सव मुद्राएं प्रोक-प्रणालीकी सुन्दर नेत्र किसी मानसिक भावके प्रकाशक नहीं। अपकृष्ट अनुकरणमान हैं। माकिदनके श्य फिलिपकी कृत्रिम सौन्दमें इस स्थानका मुद्राशिल्प अद्वितीय है। मुद्रा ही इसका दृष्टान्त है। उसके बाद रोम-साम्राज्यकी इटलीका मुदाशिल्प बहुत कुछ मध्य ग्रीसके जैसा है। रौप्य मुद्रा उन सब प्रदेशोंमें प्रचलित हुई थी। पीछे स्पेन- सिसलीका मुद्रासौन्दर्य उस देशके विशाल वैभवका को ताम्रमुद्राका सर्वत्र प्रचार हुआ। जिस समय आइ- परिचय देता है । सिसलीकी यह ऐश्वर्या-सम्पद ही! योनिया और फोसियाका समुद्र-वाणिज्य चारों ओर उसकी पराधीनताका प्रधान कारण है। कार्थोजियसों-, फैला हुआ था उस समय हिम्पानियावासी प्रोक-आदर्श के आक्रमणसे सिसलीने थोड़े हो दिनोंके अन्दर पर मुद्रा प्रस्तुत करते थे। पीछे रोम और कार्थेजका स्वाधीनता-रत्न खो दिया था। ज्येष्ठ दियोनिसियसने मुद्राशिल्प पुर्तगालमें प्रचारित हुआ। ईसा जन्मसे पहले भी सिसलीके मुद्रासौन्दर्य पर मोहित हो उस पर आक्र ४थी सदीमें स्पेनमुद्रा पर पनिक प्रभाव दिखाई दिया। मण कर घोर अत्याचार किये थे। परवत्तीकालमें रेजियम । उसके बाद वारकिद् राजाओं (sercide) के आज्ञानुसार नगरके पिथागोरसने शिल्पविद्यामें विशेष ख्याति पाई । खु० पू० २३४ से २१० तक स्पेनमें कार्थेजोय मुदाका थी। साइराफ्युज और सिजियसकी मुदा ही पाश्चात्य । प्रचार रहा। अनन्तर स्पेनकी मुद्रामें फिनिकीयगणका शिल्पविभागमें श्रेष्ठ आसनको अधिकार किये हुए हैं। प्रभाव दिखाई देता है । वह मुद्रा फिनिकीय मुद्राके समान श्रीक-मुदाशिल्पके वाद कोट द्वीपका मुद्राशिल्प भारी थी, किन्तु उसका आकार कार्थेजीय मुद्रानुयायी उल्लेखनीय है। यहां हेल्लसका ही प्रभाव फैला हुआ था। प्रत्नतत्ववित् सिनेर जोचेल ( Senor Zobel ) का था। क्रोटवासो दूसरोंका अनुकरण करके ही मुद्राङ्कित कहना है, कि ये सव मुद्राएं पहले स्पेनमें ही प्रस्तुत किया करते थे। किन्तु प्राकृतिक पदार्थ चित्रणमें इस हुई, पीछे दूसरी जगह इसका अनुकरण हुभा । ईसा- स्थानके मुद्रशिल्पने अच्छी उन्नति को थी । इन्होंने मुद्रा- जन्मके २०६ वर्ष पहलेसे लाटिन अक्षरकी रोमक मुद्राका खण्ड पर देवदेवियोंके चित्रोंके साथ पुष्पपलवसे | स्पेनमें प्रचार था । इन सव मुद्राओंमें जिस जातिसे मुद्रा आच्छादित पादपकी अवतारणा की है। इनके शिल्पमें | वनाई जाती थी उसका नाम अडित है। परवत्तींकालको कृत्रिमता बहुत थोड़ी देखी जाती है। अनेक विपर्यो | स्पेन-मुद्रामें दो बैल हल चलाते हुए अङ्कित देखे जाते क्रीटका मुद्राशिल्प मौलिक है। हैं। किसो मुद्रामें राजकीय ‘अट्टालिका अङ्कित है। - प्रीक लोग किस प्रकार ढांचेमें मुद्रा प्रस्तुत करते थे। किसी किसीमें । देशका उत्पन्न द्रष्य खोदा हुआ है। उसे डाकर वार्गनने बहुत खोज कर निकाला है। उनका | जैसे,—मछली वा अनाजको सो'क, दाखको लताका कहना है, कि वह ढाचा ३॥. इश्च ऊ'चे तान या कांसेका | समूह आदि। .. . . . . . . . ... . वना था। उसका आकार ठीक डमरूके जैसा था। गालको वर्णमुद्राएं प्रोकप्रणालीसे बनी हुई हैं। उसको एक पीठ पर सलौकीय (seleucid) राजा की - किन्तु सभी रौप्यमुद्राएं स्थानीय मुद्राशिल्पसे अङ्कित मुद्रा और दूसरी पीठ पर ओम्फालस (Omphalos)- | हैं। किसी किसीमें स्पेनका प्रभाव दिखाई देता है।