पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२६५

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२६२ मृत्तिका कृषक लोग खेतोंको जोत कर मिट्टी उखाड़ते हैं।| नाशक है । जव अनेक प्रकारको औषध खाने पर भी शरीर पोछे चौकी दे कर उसे समतल बना देते हैं। आवश्य का रक्त विशुद्ध हुआ न दिखाई दे, तव भक्तिपूर्वक सारे कतानुसार वा शस्यवीजके तारतम्यानुसार उस जमीनमें ! शरीरमें गङ्गाकी मिट्टी लगानेले भारी उपकार होता है। खाद दी जाती है। धान्यादि फसलोंके लिये नदी. दारुण ग्रीष्मके समय शरीरमें फुसियोंके निकल आने तटकी पंकी मिट्टी दी बहुत उपयोगी है। कड़ी यो। अथवा तीच सुरापान द्वारा शरीरका रक्त उत्तप्त हो जाने. चलई मिट्टी में धान उतना नहीं लगता, पर तरबूज आदि के कारण खुजली आदि होनेसे दिनमें दो बार गला- खुव लगता है। ईट आदि बनानेगे भी इस प्रकारको) को मट्टो लेपे, बहुत उपकार होगा। हिन्दू लोग हरि मिट्टी उपयोगी है। मिट्टी (तुलसी वृक्षकी निम्नास्थ मिट्टी)-को रोगारोग्यका काली मिट्टी (Black collon soil)-मैं कपास अधिक ' निदान समझ कर भक्तिपूर्वक उसे खाते हैं। लगती हैं। तिलक मिट्टी धा गोपीचन्दनका वैष्णव लोग अगर हमेशा मट्टो खाई जाय, तो पाण्डुरोग होता है। तिलक लगाते हैं। प्रासादादिको रंगनेमें हल्दो रंगको एला। (निदान) मिट्टी ( Yellow carth ) और लोहित वर्णको गेरूमिट्टी . शौचार्थ अर्थान् मलमूत्र त्याग करके विशुद्धिताके साधारणतः व्यवहत होतो है। इससे साधु पुरुष और . लिये मिट्टीका व्यवहार करना होता है। यह मिट्टी अवधूतोंका गैरिक वस्त्र रंगाया जाता है । गिरिव्रजपुर । पांशुल स्थान, कर्दम मार्ग, उपरदेश, दूसरेके शौचावशेष, (राजगृह) में लोहित वर्णकी मिट्टी देनी जाती है। वहांके देवायतन, कृप, गृह और जलसे ग्रहण नहीं करनो अधिवासियोंका विश्वास है, कि भीम द्वारा जरासन्ध चाहिये। जलाशयादिके किनारेसे मिट टी ले कर शौच. मारे जाने पर उसीसे रक्त मिलनेले मिट्टी लोहितयणको कार्य करना उचित है। हो गई है। वर्द्धमानको 'रांगा मिट्टी का हाल हम ! "आइत्य मृत्तिका कूलाटलेपगंधापकर्पणम् । लोग बचपनसे हो सुनते आये हैं। वैज्ञानिक परीक्षा | कुर्यादतन्द्रितः शौचं विशुद्ध रूद्ध तोदकैः ॥ द्वारा साबित हुआ है, कि लोहेका अंश रहने के कारण नाहरेत् मृत्तिको विप्रः पाशुलान च कर्दमात् । इसका ऐसा वर्ण हो गया है। क्रिटेसस ( Crelace. न मान्नपराद्देशान्छौचशिष्टां परस्य च ॥ ous) पहाड़ी युगस्तर पर खड़ी मिट्टी पाई गई है। कोट- न देवायतनात् कूपात् गेहान्न च जलात्त था। द्वीपमें पहले पहल इस कोटन मिट्टोका उद्भव देख कर उपस्पृशेत्ततो नित्यं पूर्वोक्तेन विधानतः ।" पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने इसका ऐसा नाम रखा है। यह (कूर्मपु० उपवि० १२ अ०) गोपधार्थ तथा प्रासाद रंगनेके फाममें आती है। हल्दी स्नान करनेके समय शरीर में मर टी लगा कर स्नान रंगको पेउड़ो मिट्टी हाइडास सेसकुइ अक्साइड (Zyrtaras करना चाहिये। इसका विधान इस प्रकार लिखा है- sesguioxide ) योगसे उत्पन्न है । हरिताल मिट्टी खनिज लिइन्देशमें तथा नाभिके अधोभागमें दो बार, अधोभागमें मिट्टीका विकारमान है । भोपधके लिये इसका अधिक | तीन वार, शरीरमें छः वार, दोनों पैरमें छः वार, कटिदेश- प्रयोजन होता है। हरतालको भस्म शदीको एक मही में तीन वार, दोनो हाथमें दो बार मट्टो लगा कर पीछे पध कही गई है। सजो मिट्टी {fuiler's earth) वा रजक शरीरप्रक्षालनके घाद, दो वार आचमन कर अनन्तर मिट्टी वस्त्रादिको सफेद करने में काम आती है । राज- प्रतानेसे इस सजी मिट्टीकी अधिक आमदनी होतो देखी * मृदा प्रक्षाल्य लिङ्गन्तु द्वाभ्यां नामेस्तथोपरि । अधश्च विस्टभिः कार्य पड़ मिः पादौ तव च ॥ जाती है। इससे मैले कपड़े साफ किये जाते हैं। काटश्च तिसभिश्चापि हस्तयोद्धिश्च मलिकाः। अपर गङ्गामृत्तिकाका माहात्म्य कहा जा चुका है। प्रनाल्य कार्य हस्तौ च द्विराचम्य यथाविधि । गङ्गातट परको वलुई मिट्टीमें भी खेतीवारोका अभाव ) नहीं है। इसका प्रधान गुण कुठादि दुरूह चर्म रोग-1 ततः सम्मार्जनं कृत्वा म दमेवाभिमन्त्रयेत् ॥" (अग्निपु०)