पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२६७

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२६४ शिजल वाजकोंके भ्रमणवृत्तान्तमें कास्पियन सागरके किनारेके स्थान, नामरूप नदीके किनारे नामरूप और नामचिक समीप भूभागमें और बकुके अग्निमन्दिरके पास प्रचुर नदीके किनारे नामचिक नामक मैदानमें मिट्टीके तेलका तैलस्रवणका वर्णन पाया जाता है। प्रस्रवण पाया जाता है। उनका तेल तरल, कृष्णवर्ण और उत्तर-अमेरिकाका पेट्रोलियम-तेल संसारके प्रायः सभी कड़ी गंधवाला होता है। उनका आपेक्षिक गुरुत्व ७१ देशोंको प्रकाश देनेके काममें आता है। आजकलकी है। वैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा उसे परिष्कार कर लाल- वत्तीवाली तरह तरहकी लालटेनोंमें प्रायः पेट्रोलियम ही टेनोंमें जलनेयोग्य ( Lamp oil ) वनायो जाता है। जलाया जाता है। भारतीय नारियल या अंडीतेलके किसी किसी पार्वत्य निर्यासको चुआ फर उसके दीपक प्रायः लोप हो गये हैं। पाराफिन्स् नामक कठिन भागको निकाल कर उससे १६२६ ई०में अमेरिकाके फ्रान्सिस्कन् मिसन सम्प्रदायने मोमबत्तियां बनाई जा सकती हैं । चुआनेके समय यहांके पहाडी तेलका अस्तित्व उल्लेख किया । भारत-, जो गाद रह जाती है उससे Lubricating oil (जो तेल वासी इस तेलका व्यवहार बहुत पहलेसे जानते थे। वर्मा इंजिन या फलपुरजोंमें दिया जाता है) तैयार होता है। के रहनेवालोंको अपने देशके तैलकूप और उस तेलका व्यव तैलकूपमें सल्फ्यू गेटेड हाइड्रोजन वाष्प अथवा तेलमें हार ईसामसीहके जन्मके बहुत पहले होसे मालूम था। । गन्धकका अस्तित्व पा कर इस देशके लोग इसे कभी पक्षावप्रदेशके शाहपुर जिलेके दुमा, चिन्नूर और कभी 'गन्धकका तेल' कहा करते हैं। हंगुच गांव , मोलम जिलेके सदियाली और सुलगी: हिमालयके नीचे तियोक नदीके किनारे (अक्षा० २७ गांव ; वन्नु जिलेको वड़कटा नदीके किनारे अलगद । उ० तथा देशा० १५५ पू०के वीच ) मिट्टोके तेल गांव ; कोहाट जिलेके पनोवा प्रस्रवण ; रावलपिण्डी मिलनेवालो पत्थरको तह दिखाई देती है। इसके अलावे जिलेके दुल्ला, जाफर, वोयारो, चारहुत, गुडा, लुडिगढ़, तिरु, सफाइ, दिखु, और हिलजान नामक पहाड़ी झरनों वसला, चिरपाड़ और राटा श्रोतर नामक स्थानमें नाना की रेतीली जमीनमें भुरमुरा पत्थर ( Sand-Stone ), प्रकारके पार्वतीय निःस्राव पाये जाते हैं। कहीं तो वह कोयला (Coal , पोइरिटस् ( Pyritous) और अलकतरा या असफल्टके जैसा कोला और गाढ़ा। कार्याने सस् ( Carbonaceus shales ) एवं लखिमपुर और कहीं कुछ पोला होता है। वहांके रहनेवाले उस जिलेके दिग्रोइ नामक स्थानमें तैल भाण्डार आविष्कृत तेलको जलाने तथा ओपधरूपमें मालिश करनेके काममे हुए हैं। लाते हैं। हजारा जिलेके सेरा पर्वत पर तीन प्रस्रवण ___ अलवरप्रदेशके तिजारा नामक स्थानमें शिलाजतु हैं, उनसे नारंगीके रेशे जैसा एक प्रकारका सफेद पदार्थ सम्बन्धी जो तेल निकलता है उसमें परीक्षा करनेसे निकलता है जिसकी गंध किरोसिन या पेट्रोजियमको | २५. ५६ भाग बिटुमेन और ३-७२ भाग कार्वन पाया जैसी कड़ी नहीं होती, वरन् मीठी होती है। वह गोंदके गया है। नि स्रावविशेपमें ३०से ले कर ६० भाग तक जैसा ( fucilaginous ) दिखाई देती है। किसी किसी जलनेवाले पदार्थ (Combustible matter ) पाये निःस्रावमें सल्फेट आव आयरन पाया जाता है। जाते हैं। कुमायुन जिलेकी रामगंगा और सरयूनदीके बीच | कच्छप्रदेशके मोहुर, जुलेराइ और लुकपत् नामक चूना पहाड़के छिद्रोंसे शिलाजतु निकलते देखा जाता स्थानके सव म्युमालिटिक और उसके नीचे भूस्तरमें है। वह औषध हीके काममें आता है। ( Sub-numulitic and next succeeiding beds) आसाम-विभागके डिहिंग नदीके उत्तर तिपन पहाड़, रजग और शिलाजतु मिश्रित पदार्थ पाया जाता है। तथा डिहिंग और डिसंग नदियोंके वीचकी पर्वतमाला, | इस देशके लोग उसे धूनेकी तरह देवमन्दिरादिमें दिराक और तिराप नदीके बीच कोयलेको खान, तिरापके जलाते हैं। बेलुचिस्तानके मोरि पहाड़के खट्टान नामक स्थानमें पूर्ववत्ती भूभाग तथा वडिडिहिंगके किनारे सुकोङ्ग नामक