पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२८

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मुद्रातत्त्व (पाश्चात्य)

है। रोमक-साम्राज्यकी पहलेकी मुद्रा हो वहुतायतसे मिलती है। इटलोकी मुद्राए दो श्रेणीमें विभक्त हैं, पहली इटलीकी और दूसरी ग्रीक मुद्राके आकार की। किन्तु विभिन्न आदर्शकी अनेक मुद्वाएं स्थानविशेषमें पाई जाती हैं। प्रकृत इटलीकी मुद्रा सोने, चांदी और पीतलकी बनी है। इनमें सोनेकी मुद्राका कम प्रचार है। चांदीकी मुद्रा ही सर्वत्र प्रचलित है। अधिकांश इटली मुद्रा ग्रीफ आदर्श पर बनी है, फिर कितनी मुद्रा-में पौराणिक चित्र भी देखे जाते हैं। उत्कीर्ण लिपि-की भाषा लाटिन, अस्कान और एट्रस्कान है। इटलीमें समुद्रतीरवत्ती इद्ररियाकी बहुत-सी देशी मुद्रा पाई जाती है। उनसे सहजमें अनुमान किया जाता है, कि उस समय यह स्थान वाणिज्यका प्रधान केन्द्र था । ईसा-जन्मके ३०० वर्ष पहले इद्ररिया नगरी वाणिज्यके लिये बहुत मशहूर हो गई थी। इटलीको मुद्रामें बहुत दिन तक 'इसग्रोम'का चिह देखा गया। पहले यह रोमक-पौंड वा लाइब्राकी जैसी थी। रोमककी मुद्राका वजन १० औंस तक था। प्रकृत इटलोकी मुद्रा उत्तर और मध्य इटलीमें अधिक संख्यामें देखी जाती है। किन्तु समुद्रोप-कूलवर्त्ती कास्पिनिया, कालेव्रिया; लुफानिया और त्रुटियाई आदि समृद्धिशाली नगरोमें, प्रोक-मुद्रा ही बहुतायतसे पाई गई है।

इटलीकी मुद्रामें द्ररियाके पपुलोनिया नामक नगर-की मुद्रा ही विशेष चित्ताकर्षक है। पिरहासके युद्धके यादकी मुद्रामें हाथीकी प्रतिमूर्ति देखी जाती है। लाटि-यमकी मुद्रा भी अत्यन्त सुन्दर है। सामनियम प्रदेश की मुद्रा बहुत दिनों तक जातीय आदर्श पर बनती रही थी। खृ॰पू॰ ९० ई॰ में सामाजिक मार्सिक-युद्धमें विभिन्न प्रदेशके शासनकर्ताओंने साधारणतन्त्रके शासनको अग्राह्य कर नई मुद्रा चलाई थी। इन सब मुद्राओंके एक पार्श्वमें इटलीवासीकी और दूसरे पार्श्वमें योद्धाओंकी मूर्ति हैं। ये सब योद्धा वधके लिये यूप-काष्ठमें बंधे हुए सूअर और बैलके सामने शपथ खा रहे हैं।

ग्रीक-शासनाधीन इटलीके कुछ प्रदेश मुद्राशिल्पकी चमत्कारिताके लिये बहुत प्रसिद्ध हैं। क्युमिया और न्युपालिसको मुद्रा द्वारा उस समयकी बहुतसी बातें जानी जा सकती हैं।

इटलीवासी ग्रीकोंने मुद्राशिल्पमें विशेष उन्नति की थी। म्युपालिसमें बहुतसी रौप्यमुद्रा पाई गई हैं। उसके एक पृष्ठ पर 'साइरेन' पार्थिनोप अङ्कित है। कहीं कहीं इटलीके श्रीकोंके प्रिय देवता होरा और पल्लास (Hera of Pallas) की मूर्ति अङ्कित देखी जाती है। कास्पेनियाकी मुद्रा इसी ढंग पर बनाई गई है। उस समयकी पीतलकी मुद्राएं आज भी ज्योंकी त्यों बनी हैं । कालेत्रियाकी ग्रीकमुद्रा शिल्प-सौन्दर्य में अतुलनीय है। समृद्धशाली टरेण्टमका मुद्रागौरव पृथ्वीमें अद्वितीय है। वैसा मनोमोहन शिल्पनैपुण्यसे भरा चित्र पृथिवीके किसी स्थानमें दिखाई नहीं देता। साइराक्युजके सिवा इसका उपमास्थल ढूढ़नेसे भी नहीं मिलता। टरेण्टमकी स्वर्णमुद्रा देखनेसे आखें तृप्त हो जाती हैं। उसमें जो लिपिमाला उत्कीर्ण है वह मरकत पंक्तिकी तरह शोभती है। किसी किसी वर्णमुद्राको अक्षरमाला असली मणि-मालासे अलंकृत है। उसके शिल्पी शत कण्ठसे धन्यवाद देनेके योग्य हैं। वर्ण-विचित्रता करनेमें भी शिल्पीने अद्भुत कौशल दिखलाया है । मुद्रातलमें अलौकिक लावण्यशालिनी देवाङ्गनाएं दिव्य सोन्दर्यमें मनुष्यके वैहारिफ शिल्पकी पराकाष्ठा स्वरूप विराजमान हैं। दूसरे तलमें तावा पौराणिक चित्रोंका प्रतिरूप है । किसी मुद्रामें पोसिदोन (Poseidon) के लड़के टारस उद्दाम यौवनके वलसे दूप्त हो रथरश्मि संयत कर रहा है। कहीं वह तिमि नामकी मछली पर चढ़ कर बड़ी तेजीसे घूम रहा है। किसी मुद्रामें आसन पर बैठे हुए पिता पोसिदनकी गोदमें जानेके लिपे हाथ बढ़ा रहा है। जो चांदीकी मुद्रा है उसमें तिमिङ्गिल पर बैठी हुई तरासमूर्ति शोभा दे रही है। किसीमें एक नवीन युवक टेकुआ (Spindle) हाथमें लिये खड़ा है। कुछ मुद्राओंमें घोड़े पर सवार व्यक्ति नाना रंगोंमें चिह्नित है। उसे देख कर निर्माताको शत-कण्ठसे धन्यवाद देना चाहिये। घोड़े पर चढ़े व्यक्तियों-की विविध गतिको देखनेसे सहजमें अनुमान किया जाता है, कि टारेण्टके अधिवासी घोड़े पर चढ़नेमें बड़े पटु थे और प्रकाश्य क्रीड़ाक्षेत्रमें वे सभी जगह जयलाभ करते थे।

लुकानियाको मुद्रामें एक तरफ हिराक्लिस और दुसरी

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