पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२८६

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२८३ "त्रिय ते शाकवर्षे तु चतुर्भिः शोधिते क्रमात् । उक्त Cirri श्रेणीरों Halos और Parhelia नामक आवर्त विद्धि सम्वर्त पुष्करं द्रोणमम्वुदम् ॥ मेघकणा रहती है। वह कणा तुपारपरिणत वाष्पकणाके आवतो निर्जलो मेघोः सम्बर्दाश्च वहूदकः ॥ ऊपर रोशनी पड़नेसे हो चमकीली दिखाई देती है। ये पुष्करो दुष्करजलो द्रोणः शस्यप्रपूरकः । उज्ज्वल तुपारखण्ड (Suow flakes) नभमण्डलके पाश्चात्य विज्ञानशास्त्रोंमे भी मेघके विभिन्न नाम, | बहुत ऊंचे स्थानमें चलते हैं। इस प्रकारके मेघ दिखाई उनको वर्षणशक्ति तथा वर्णादिका विषय लिखा है। देनेसे ऋतुका परिवर्तन समझा जाता है। प्रीष्मकालमें वायुतत्त्वविद् हौयार्डने मे मेघोंको सिरस ( Cirrus), | वर्षापात और शीतऋतुम तुपारपात इसका अवश्यम्भावी फ्युमिलस ( cumulus ) और प्लेटस (Stratus) | फल है। नामक तीन भागोंमें बाँटा है। उनमें फिर उन्होंने Cirra- पताका आदिके सञ्चालनसे वायुको गति उत्तराभि- cumulus, Cirra-Stratus. Cunulo-Stratus और मुखी दिखाई देने पर भी Cirri मेघोंको हम लोग स्वभा. Nimbus नामक कई थीकोंकी कल्पना की है। ये सव | वतः दक्षिण वा दक्षिण-पश्चिम वायुस्रोतसे सन्ताड़ित हम लोगोंके देशके कृपक-सम्प्रदायके कुदाल, कुठार और | होते देशाते हैं। वे सव मेघ नीचे उतरते समय आपस- वकर आदि मेघोंके जैसे हैं। में मिल कर धने हो जाते हैं तथा उस स्थानके वायु- Girras मेघको नाविकको भाषामें Cat's tail वा स्तरके जलसे भारी रहनेके कारण वे सव मेघकणा विहालपुच्छ कहते हैं। ये सव मेघ आकाशमें बहुत | सहजमें ही जलाकार धारण करती हैं। इस प्रकार पतले बुने हुए जालके जैसे दिखाई देते हैं। आकाशमें cirro-stratus मेघस्तरमें परिणत होनेसे ही जल वर- Cirra मेघोंकी तुपारछटाको देख कर बहुतोंने Mackerel | सते देखा जाता है। Sky नामसे आकाशकी शोभाका वर्णन किया है। । ____उपरोक्त कारणोंसे Cirro- Cumulus मेधके वाष्प- ग्रीष्मकालीन cumulus नामक मेघको नाविकभापा- कोप जब जलसे भारी हो जाते हैं तव चन्द्रमा वा में ball of cotton कहते हैं। ये सव मेघ सुदूर दिग-1 सूर्यकी रोशनी पड़नेसे वे एक नई रोशनीकी सृष्टि करते लयमें अर्द्ध गोलाकारमें विलम्बित रहते हैं। पीछे के हैं। जब वे मेघ सूर्य वा चन्द्रमाके सामने आते हैं, तव आपसमें मिल कर एक ऊंचे पर्वतकी तरह घोर काले | उनकी ज्योतिके चारों ओर एक आलोकछटा (coronae) मेधोंमें परिणत हो कर दिग्वलयमें ही टिके रहते हैं। दिखाई देती है। इन मेघोंके उदय होनेसे दारुण ग्रीष्म- उस समय उनके शीर्ष भाग समुज्ज्वल सूर्यके आलोकसे | का आगमन समझा जाता है। सूर्योदयके साथ साथ आलोकित हो कर तुपार-धवल हिमानी शिखरको तरह | जब वे मेघ उदय होते हैं, तव आकाश समूचा दिन मालूम होते हैं। ढका रहता है और वर्षा होनेकी विलकुल सम्भावना नहीं, सूर्यास्तके समय दिग्वलयमें वन्धनोको तरह जो शामको उन मेघोंके अदृश्य हो जानेसे आकाश और भी प्रलम्ब Stratus नामक मेघमाला-स्तर दिखाई देता है, साफ दिखाई देता है। दोपहर दिनको गरमी जितनी वह सूर्योदय होनेसे अदृश्य हो जाता है। Cumulus-1 ही बढ़ती है उतनी ही मेघकी संख्या बढ़ती देखी Stratus नामक मेघ काला और नीला होता है | Nim- 1 जाती है। ऊपर कहे गये नियमानुसार ये सब मेघ bus नामक मेघ प्रायः धूसरवर्णका और किनारेमें झालर | दिनके समय ऊर्ध्वगामो वाष्पस्रोतको सहायतासे (Fringed edges )-सा कटावदार होता है। cirrus) आकाशमें बहुत ऊंचे चले जाते हैं। यहां वे और cumulus का कुदालिया मेघ दक्षिण-पश्चिम वा शीतल वायुप्रवाहित स्तरमै आ कर जलसिक्त ( Satu- उत्तरपूर्व वायुगतिके समानान्तर भावमें आकाशको ढके | rated ) होते हैं। मेध और वाष्पस्रोतकी गतिके वला- रहते हैं। ये मेध सभी मेघोंसे ऊपर उठते और नोचे | वलके अनुसार मेघ और वापराशि उससे अधिक ऊद्ध. उतरते समय वायुस्तरमें मिल जाते हैं। स्तरमें सन्निहित होती हैं और वहां शीतल वायुस्तरमें