पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२८७

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२६४ सञ्चित हो दो पहरके समय काली घटासे आकाशको | . ढक लेती है। ऐसी मेघराशि सभी समय संध्याकालमें गर्भधारण। आकोशसे अदृश्य नहीं होती। वह क्रमशः घनीभूत हो | दिन तक मेघ वायुसे गर्भ धारण करता है। उन कई कहा जाता है, कि जेठ महीनेको शुक्लाष्टमीसे चार कर यदि Cumulo stratus मेघमें रूपान्तरित हो, तो दिनों यदि मन्द वायु बहे तथा आकाशमें सरस मेघ भारी त्फानके साथ वृष्टि होनेको सम्भावना रहती है। दोख पड़े तो शुभ जानना चाहिये और उन दिनों यदि जव घनघटासे आकाशमण्डल छा जाता है, तव वृष्टि- स्वाती आदि चार नक्षत्रों में क्रमानुसार वृष्टि हो तो पातके.पहले अथवा ठीक वाद ही वज्राघात होते देखा | सावन आदि महीनोंमें वैसी हो वृष्टि होगी और उससे जाता है। जिन सब मेघोंसे वज्रसमन्वित वृष्टिपात | शुभफल होगा। यदि ऐसा न हो तो नाना प्रकार के अमं- होता तथा तूफान (Thunder storm ) उठता है, वे | गल और चोर आदिका भय रहता है। इस सम्बन्ध में प्रायः भूपृष्ठले ३०००से ५००० फुट तक आकाशगर्भमें वशिष्ठने यों कहा है-विद्युत्, जलकण और धूल निमजित रहते हैं। कभी कभी ये मेघ इससे भी आदिसे मलिन वायुयक्त और सूर्य तथा चन्द्रमासे परि- बहुत.ऊचे स्थानमें उड़ते दिखाई देते हैं। हाम्बोल्टने छिन्न धारणा ही शुभ धारणा है। जब विद्य त् श्रेष्ठ समुद्रपृष्ठसे १५ हजार फुट ऊ'चे होलुकट पर्वत-शृङ्ग पर | शुभाशाके प्रति उपस्थित होती है तब सर्वनाशकी वृद्धि तथा आरोगाने २६६५० फुटकी ऊंचाई पर ऐसे तूफानी होती है। वालकोंके क्रोडास्थलमें पांशु और जलका मेघमें (storm cloud ) विद्युत् ( Lightening ) का बरसना, पक्षियोंका पांशु तथा जलादिखें कोड़ा करना रहना देखा है। मेधको विद्युत् तथा वायुगर्भके ताड़ित | और मीठा बोलना, चांद और सूर्यक मण्डलको स्निग्ध प्रवाहको ले कर Lame, Becquerel, Peltier आदि और अत्यन्त दूषित होना, धारणकालमें इन सब नक्षत्रों- प्रसिद्ध वैज्ञानिक विभिन्न सिद्धान्त पर पहुंचे है,-वाप के दीख पड़ने पर वृष्टि हो तो उससे सर्वनाश होता है। कणाके घनत्व निबन्धन तथा उसके मध्य जो गोलक मेघ स्निग्ध, एकत्र और मन्दगामी हो तो सभी फसल ( Globules ) हैं उनके परस्पर संघर्षणके कारण ही और सम्पत्ति देनेवाली वृष्टि होती है। विजली चमका करती है। किसी किसोका कहना है कि कार्तिक मासके शुक्ल- विस्तृत विवरण ताड़ित और विद्यु त शब्दमें देखो। । पक्षके बाद गर्भदिवस होता है, लेकिन यह सत्य नहीं है। भारतीय पुराणादि शास्त्रीय प्रलयकालान मघाक कि अषिके मतसे अगहन के शुक्लपक्षको पड़िवांके बाद विभिन्न वर्णका जो उल्लेख है, उसका कारण नहीं दिखलाये | जिस दिन चन्द्रमा और पूर्वाषाढ़का संयोग होता है उसी जाने पर भी सौर जगतके व्यक्तिकम और प्रहादि रश्मिको | दिनसे गर्भका लक्षण जानना चाहिये । चन्द्रमाके जिस पृथक्ताले ही वे सब मेघ विभिन्न वर्णके हो गये हैं, ऐसा नक्षत्रको प्राप्त होने पर मेघके गर्भ रहता है, चन्द्रवशसे अनुमान किया जा सकता है। जिस प्रकार सूर्यकिरण- १६५ दिनोंमें उस गर्भका प्रसवकाल आता है। शुक्ल- की पृथक्ताके अनुसार ब्राह्ममुहूर्त, मध्याह्नकाल तथा पक्षका गर्भ कृष्णपक्षमें, कृष्णपक्षका शुक्लपक्षमें, दिवस- सूर्यास्तकालमें मेघमाला विभिन्न वर्णको दिखाई देती है। जात गर्भ रातमें, रातका गर्भ दिन तथा संध्या समयका उसी प्रकार अन्यान्य ज्योतिष्कके प्रभावसे भी मेघका गर्भ विपरीत संध्या में प्रसव करता है । मृगशिरा तथा रंग पीला, लाल, आदि होना सम्भव-सा है । पाश्चात्य पूस शुक्लपक्षके गर्भ मन्द फलवाले होते हैं । वैज्ञानिकोंने वाष्पकणा ( Vesicles ) के प्रकृतिगत पूस कृष्णपक्षके गर्भका प्रसवकाल सावनका शुक्लपक्ष है, तारतम्यके साथ विभिन्न प्रकारके आलोकरश्मिपातको माघ शुक्लपक्षका मेघ सावन कृष्णपक्षमें, माघ कृष्णपक्षका हो मेघवर्णको विचित्रताका कारण वतलाया है। संध्या. मेघ शुक्लपक्षमें, फागुन शुक्लपक्षका मेघ भादो कृष्णपक्षमें, कालमें सूर्यको किरण सिन्दुर सी दिखाई देती है, इस फागुन कृष्णपक्षका मेघ आश्विन शुक्लपक्षमें, चैत शुक्लपक्ष- कारण उस समयके मेधको हम लोग सिंदुरिया मेघ का मेघ आश्विन कृष्णपक्षमें तथा चैत कृष्णपक्षका मेघ कहते हैं।