पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२९६ पेघ-मेघजीवन वाद वृष्टी नहीं जाती। जिन सव नक्षत्रों में अतिवृष्टि । आठ पुत्रोंकी भार्या ये हैं-करणाटो, कादवी, कदमनाट, होती है, वे सभी नक्षत्र वरसते हैं। परन्तु पूर्वाषाढ़से पहाड़ी, मांझ, परज, नटमञ्जरी, शुद्धनट । ( स० दामोदर) ले कर मूला तकके नक्षत्रों में यदि वृष्टि न हो, तो मेघकफ ( स० पु०) मेघानां कफ इव । करका, ओला। सभी नक्षत्रों में अनावृष्टि होती है। यदि निरुद्भव चन्द्र मेघकणी (स' स्त्री० ) स्कन्दानुचर मातृभेद । पूर्वाषाढ़ा, मृगशिरा, हस्ता, चित्रा, रेवती और धनिष्ठामें मेघकाल (सं० पु० ) मेघानां कालः समयः । वर्षाकाल, रहे, तो १६ द्रोण ; शतभिषा, ज्येष्ठा और स्वाती ४ वर्षाऋतु। द्रोण ; कृतिकागणमै १०, श्रवण, मघा, भरणी और मूला-1 "स्थलसलिल चराणां व्यत्ययो मेघकाले । में १४, फल्गुनीमें २५, पुनर्वासुमे २०, विशाखा और उत्तरा- प्रचुरमलिलवृष्ट ये शेषकाले भयाय ॥" (वृहत्सं० १५५८) पाढ़ा नक्षत्र में २०; अश्लेषा नक्षत्रमें १३, उत्तरफल्गुनी मेघकूटाभिगर्जित श्वर ( स० पु० ) वोधिसत्त्वभेद । और रोहिणीमें २५, पूर्वाभाद्रपद, पुष्या और अश्विनी (ललितवि०) नक्षत्र में १२ और आद्रामें १८ द्रोण जल बरसता है। मेघगम्भीर ( स० स्त्री) मेघकी तरह गम्भीर, बादलकी नक्षत्रगण यदि रवि, शनि और केतुसे पीडित तथा तरह शान्त । मङ्गलसे आहत हो, तो वृष्टि नहीं होतो । परन्तु निरु- मेघगर्जन (स० क्ली०) मेघस्य गर्जन । मेघध्वनि, वादल- पद्रव और शुभग्रहयुक्त होनेसे मङ्गल होता है। की गरज। जिस दिन बादल गरजे उस दिन वेदपाठ (वृ०सं० २३ अ०) नहीं करना चाहिये। उपनयनके दिन यदि वादल गरजे नहीं करना चाहिये। ५ सङ्गीतके छः रागोमेसे एक । हनुमतके मतसे इस तो उपनयन टाल देना चाहिये। क्योंकि, इस दिन वेद- रागको ब्रह्माके मस्तकसे और किसी किसीके मतसे पाठ हो नहीं सकता। 'उपनीय ददद्वेद' मनुके इस वचना आकाशले उत्पत्ति है। यह ओड़व जातिका राग है और | नुसार उपवीत प्रहणके वाद हो वेदारम्भ करना होता इसमें ध नि सा रे ग पे पांच स्वरसे लगते है। हनुमतके | है। जिस दिन वादल गरजता है उस दिन शास्त्रचिन्ता मतसे इसका सरगम इस प्रकार है-ध नि सा रे गम भी नहीं करनी चाहिये। यदि कोई करे, तो उसकी पध। वर्षाकालमें रातके पिछले पहर इसे गाना | आयु, विद्या, यश और वल घे चारों नष्ट होते हैं। चाहिये। "संध्यायां गजिते मेधे शास्त्रचिन्तां करोति यः । यह राग सुन्दर, सांवला और हाथमें तेज तलवार चत्वारि तस्य नश्यन्ति आयुर्विद्यायशो बलम् ।" लिये हुए है। हनुमत्के मतसे इसकी रागनियां पांच (स्म ति) है, जैसे-टङ्का, मल्लारी, गुर्जरी, भूपाली, देशकारी; | मेघगिरि ( स० पु० ) पर्वतभेद, एक पहाड़का नाम । ८ पुत्र हैं, जैसे-जालन्धर, सार नटनारायण, शङ्करा- मेधङ्कर (सं० त्रि०) मेधकारी, जिससे वादल बनता है। भरण, कल्याण, गजधर, गान्धार और साहाना। कला- मेधचन्द्र शिष्य-श्रुतवोधटीकाके रचयिता। नाथके मतसे इसकी रागिनी छः है, जैसे-बङ्गाली मधुरा, मेघचिन्तक (स० पु०) चिन्तयतोति चिन्ति पधुल कामोदा, धनाश्री, तीर्थकी, देवाली ; इस मतसे भी ८ मेघानां चिन्तकः तस्यैव जलपायित्वात् । १ चातक पुत्र हैं किन्तु नटनारायण, शङ्कराभरण और कल्याणको | पक्षी, चकवा । (त्रि०) २ मेघचिन्तन विशिष्ट, मेघको जगह केदार, मारुजल और भरत है। सोमेश्वरके मतसे चाहनेवाला। भी इसकी रागिणो ६ हैं-मल्लारो, सौरटी, सावेरी, | मेधज (स.नि.) मेघाजायते जन-ड। मेघभव वस्तु, कौशिकी, गान्धारी, हरङ्गारी, पुत्र पूर्ववत् हैं। भरतके वादलसे उत्पन्न होनेवाली वस्तु । मतसे इसकी पांच रागनियां ये हैं-मल्लार, मूलतानी, मेघजाल (सं० क्ली०) मेघानां जालं। अम्रिय, विजली। देशी, रतिवल्लभा, कावेरो; पुत्र ८-कलायर, वागेश्वरी, मेघजीवन (संपु०) मधो जीवन जीवनोपायो यस्य । सहाना, पुरीया, कानड़ा, तिलफस्तम्भ, शङ्कराभरण । इन | चातकपक्षी, चकवा। कहा जाता है, कि चकवा मेघका