पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२९१

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२१८ पेघना-पेघनादरस धसना गिरने पर स्थानविशेष में वृक्षादि नदीगर्भ में ऐसा सव नष्ट हुआ। उस प्रलयरात्रिमें केवल नोआखाली- मजबूतोसे अटक जाते हैं, कि भाटेके समय उस हो कर नाव के हथिया और शन्द्वीपमें गौ आदि पशुओंको छोड़ चलाना वड़ा कठिन हो जाता है। क्योंकि, नादको पेंदी एक लाखसे अधिक मनुष्य जलगर्भमें समाधिस्थ हुए। आघात लगने पर फट जाती है और सम्भवतः नाव डूब इसके बाद उस स्थानको जलवायुके विगड़ जाने और भी जा सकती है। इसके अतिरिक्त नदी गर्भस्थ चोरा अन्नादिके अमावसे उससे अधिक लोग महामारी आदि वालू बड़ा भयानक है। ज्वार भाटेके समय नदीकी वाढ़। रोगोंसे आक्रान्त हो काल कवलित हुए। देखने योग्य होती है। अमावास्या और पूर्णिमा तथा मेघनार (संपु०) एक राग जो मेघरागका पुन माना अन्यान्य दिनोंमें ज्वारके समय जल प्रायः १०से १८ जाता है। फीट तक ऊपर उठता है। बाढ़ गरजनेके पहले | मेघनाथ (सपु० ) इन्द्र । बादलकी-सी गरज सुनाई देती है। उसके कुछ ही देर मेघनाद (सं. पु०) मेघ नादयतीति नद-णिच् अण । १ बाद तुलाराशिको जैसी वाढकी तरंगे ( Borc ) द्रुत- गतिसे आगे बढ़ती हैं। यह वाढ़ नाविकोंके लिये वड़ा वरुण । २ लङ्क श्वर रावणका पुन । देवराज इन्द्रको युद्ध में परास्त करनेके कारण इसकी इन्द्रजित् नामसे भी भयावह होती है। १०वीं या ११वीं चैतको जब सूर्यदेव | प्रसिद्धि थी। इसने लङ्काके युद्धमें दो बार राम लक्ष्मण- विषुवत् रेखाके ऊपर आते है तो उन दिनों में बाढ़की लहर को हराया था, अनन्तर भयङ्कर युद्ध होने पर लक्ष्मणके बहुत ऊपर उठती हैं। इस समय और दक्षिण वायुके हाथ मारा गया। यह मेघमें छिप कर युद्ध किया करता प्रवल वेगसे बहने पर कई दिन बाद भी नावोंके द्वारा था, इसीसे इसका नाम मेघनाद हुआ। इन्द्रजित् देखो। व्यापार वन्द रहता है। मेघनस्य नादः । ३ मेघका शब्द, वादलकी गरज । ४ बाढ़की लहर मानो २० फोट ऊंचो रूईकी ढेर ले प्रति पलाश । ५ तण्ड लोयशाक। ६ दानवभेद। ( हरिवंश घंट. १५ मील के हिसाबसे आगे बढ़ती है । इस समय जो ३३२।६० ) ७ मयूर, मोर । ८ विहाल, विल्ली। ६ छाग, कुछ सामने आता है वह सभी विपय्यस्त, ध्वस्त बकरा । १० वरुण वृक्ष । ११ मृतसञ्जीवनी । १२ सह्याद्रि- और नदीगर्भ में निमजित हो जाता है। कई मिनटके वर्णित दो राजोंका नाम । ( सह्या० ३३।८३,३३।१०४) बाद जलके समतल होने पर नदी पूर्वरूप धारण करती (नि.) १३ मेघ सद्दश शब्दविशिष्ट, वादलके समान है। फिर लबालव नदी ज्वार और भाटेको क्रीड़ा करने गरजनेवाला। लगती है। मेघनादजित् (सं० पु०) मेघनादं जयति जि-क्किए । साइक्लोन अर्थात् गोल आंधीके प्रवल झकोरोंके साथ लक्ष्मण। साथ मई और अक्टोवर महीनों में मौनसूनके परिवर्तन मेघनादमूल (स० क्लो०) चौलाईकी जड़। समय इस नदीमें बड़ी ऊंची तरङ्ग (Sform waves) | मेघनादरस (सं० क्ली०) ज्वरनाशक औषधविशेष । प्रस्तुत दिखाई देती हैं। १८६१ ई०के मई महीनेके तूफानमें ४० प्रणाली-एक एक तोला रूपा, कांसा और तावा तित फीट ऊंची उ8 कर तरङ्गने समूचे हथिया द्वीपको यो | राजके काढ़े में डाल कर छः वार गजपुट में पाक करे । दिया था। १८७६ ई०के ३१वीं अक्टोबरके तूफानमें ऐसी | . ही विपद् आई थी। संध्या समय तूफान उठी और आधी इसको मात्रा पानके साथ दो रत्ती है। इससे विषम रातमें कई स्थानों में वाढका गर्जन सुन पडा जिससे वृष्टि- ज्वर नष्ट होता है । पथ्य दुग्धान्न वतलाया गया है । ज्वरातिसार रोगमें सोंठ, अतीक्ष, मोथा, चिरायता, की सनसनाहट स्तम्भित-सी हो गई। वश, इस प्रकार विष, कुटकी छाल, कुल मिला कर २ तोला, इसे आध तीन-तरंगके उठते उठते समूचा देश क्षणमें जलमग्न हो सेर जलमें सिद्ध करे। जव माध पाव जल वच रहे, तव गया। वहांके लोग असावधान रहने के कारण कहीं भाग भी न सके । वादके आगे जो कुछ पड़ा वह सबका | नीचे उतारे । उसी काथके साथ इस औषधका सेवन