पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२९४

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मंघस्वन-मेघेश्वर २६१ उत्पत्तिरस्य नवमेघशब्देनास्य कुरोत्पत्तेस्तथात्वं ।, मेघवतत (सं० वि०) मेघ द्वारा समाच्छादित, वादलोंसे विकडूत वृक्ष । । ढका हुआ। मेघखन (सं० पु० ) मेघस्य खनः। १ मे घशब्द, मेघका | मेघावली (सं० स्त्री० ) राजकन्याभेद । (राजतर० ४६८८) गर्जन। (नि० ) मेघस्य स्वनः शब्द इव शब्दो यस्य । मेघोस्थि (सं० फ्लो०) मेघानां अस्तीव । करका, ओला । २ मेघके सदृश शब्दविशिष्ट, वादलको तरह गरजने मेघास्पद (सं० क्ली० ) मेघानां आस्पटं स्थानम् । वाला। आकाश। मेघखनाङ्कुर (सं० पु० ) वैदूर्यमणि, विल्लौर । प्रवाद | मेघाह (स' पु०) १ अभ्रक, अवरक । २ उशीर, खरू । है, कि बादलके गरजने पर वैदूर्य मणिको उत्पत्ति | मेघेश्वर-उड़ीसाके प्रसिद्ध भुवनेश्वरक्षेत्र के अन्तर्गत एक होती है। प्राचीन शिवलिङ्ग। भुवनेश्वरके उत्तरी भागमें भास्करे- मेघखर (सं० पु०) एक वुद्धका नाम । श्वरसे १०० गज पूरब मेघेश्वरका सुप्रसिद्ध मन्दिर और मेघस्वाति (सं० पु०) एक राजाका नाम। उसके पास ही मेघकुण्ड अवस्थित है। मन्दिर मेघहाद (सं० पु०) मे घस्य हादः। मेघस्वन, वादलकी पत्थरका बना हुआ है। वहुत प्राचीन होने पर भी ग़रज। इसका शिल्पसौन्दर्य ज्योंका त्यों है । परन्तु अभी मेघा (हिं० पु० ) मण्डूक, मेढ़क । पहलेकी तरह यात्री नहीं आते, इस कारण इसकी मेघाख्य (सं० क्लो०) मेघस्य आख्या नामास्य । मुस्तक, प्रसिद्धि दिनों-दिन घटती जा रही है। और तो क्या, मोथा। उत्कलके इतिहासके साथ इस मेघेश्वर मन्दिरका संस्रव मेघागम (सं० पु० ) मेघल्य आगमः। १ मेघका आग- रहने तथा एकाम्रपुराण, एकाम्रचन्द्रिका, स्वर्णाद्रिमहोदय मन । २ धाराकदम्ब, केलिकदम्ब । मेघानां आगमोऽन । आदि क्षेत्रमाहात्म्यमें वर्णित होने पर भी. राजा राजेन्द्र- ३ वर्षाकाल। लाल आदि पुराविदोंमेंसे किसीने भी इस मन्दिरका मेघाच्छन्न (सं० वि०) मेघेन आच्छन्नः । मेघ द्वारा आच्छा- नाम तक भी उल्लेख नहीं किया है। एकाम्रपुराणमें दित, वादलोंसे ढका हुआ। लिखा है,- मेघाच्छादित (सं० वि० ) वादलोंसे ढका हुआ, वादलोंसे ____ अत्यन्त पराक्रमी मेघोंने सिद्धिकी कामना करते हुए छाया हुआ। मेघाटोप (सं० पु० ) मेघस्य आटोपः शब्दः । मेघशब्द, | देवराज इन्द्रसे कहा, 'देवराज! यदि आज्ञा मिले, तो वादलोंका गर्जन। हम लोग एकानमें जा कर विन्दुतीर्थमें स्नान करनेके मेघाडम्बर (सं० पु० ) मेघस्य आडम्बरः। १ मेघडम्वर, वाद महेश्वरको पूजा करें। क्योंकि वहां जो कुछ पुण्य वादलोंकी गरज । २ मेघकी विस्तृति, वादलका फैलाव । कार्य किया जाता है, वह सभी अक्षय होता है। फिर मेघानन्द (सं० पु०) मयूर, मोर । हम लोग यह भी चाहते हैं, कि वहां प्रासाद और मेघानन्दा (सं० स्त्री०) वलका, बगुला। शिवालयका निर्माण करें। इसलिये हे प्रभो! हमें मेघानन्दी (सं० पु० ) मेघेन आनन्दतीति आनन्द-णिनि । इच्छित वर प्रदान कीजिये। इन्द्रने तथास्तु' कह कर मयूर, मोर। उन्हें वे सव कार्य करनेका हुकुम दे दिया। अनन्तर मेधान्त (सं० पु०) मेघानां अन्तोऽवसानमन । शरत्- उन्होंने कल्पवृक्षके समीप ईशानकोनमें निर्मल शिलाके काल। नीचे एक सुन्दर स्थान चुन कर विश्वकर्माको बुलाया मेघाभा (सं० पु०) भूजम्बु वृक्ष, वनजामुनका पेड़। । और उनसे अपना अभिप्राय प्रकट किया। इस पर मेघारि (सं० पु० ) मेघस्य अरिः । वायु । वायुके वइनेसे विश्वकर्माने स्वयं पत्थर आदि ला कर एक बहुत ऊंचा मेघ एक जगह स्थिर नहीं रह सकता इसीसे वायुको | मनोहर प्रासाद बनाया । पर्जन्य, प्लावन, अञ्जन, मेघारि कहते हैं। . वामन, सम्पत्ति, द्रोण, जीमूत और अतिवर्षण इन सव