पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२९६

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पेध-मेचक २६३ वासभूमिकी खोजमें उत्तरकी ओर चले । एश्चात् ये ब्रह्मपुत्र पन भी किया जाता है । धनवान् लोग हिन्दुओंका अनु. और कोलो नदीके बीच खचर नामक स्थानमें उपस्थित करण करते हैं। हुए। कनिष्ठ भ्राता उस स्थानको वसनेके योग्य समझ वर और कन्यापक्षके उपस्थित कुटुम्वोंके सामने वहीं रह गया। इनके वंशधर हो कोच, ढिमाल और मेच वांसके चोंगेके जलसे कन्याके पैर धुला देनेसे हो विवाह जातिके आदि पुरुप हैं । शेष दोनों भाई नेपालके दूसरे समाप्त होता है। पश्चात् कन्या और वर एक कमरे में स्थानमें जा बसे । इन लोगोंसे लिम्वु और खाम्बु जाति- सोते हैं और कन्या वाहर होने पर शिवपूजा करती है। को उत्पत्ति हुई। एक दूसरे उपाख्यानके अनुसार मेच जातिमेच लोगोंमें पैर धुलानेकी पद्धति नहीं है, वर और लोग आसामके आदिम निवासी हैं और गारो जातिके | कन्याके आपसमें सुपारो पान वदला कर लेने हीसे संस्रवसे उत्पन्न हैं। एक तोसरो किम्वन्दतोके अनुसार विवाह हो जाता है। एक जातिच्युत नेपाली और खचर स्थानको रहनेवाली इन लोगोंमें विधवा विवाह प्रचलित है, लेकिन पुत्र- एक पहाड़ी स्त्रोसे मेच जातिको उत्पत्ति हुई । इनका | वतो विधवाको प्रायः ब्रह्मचर्य हो अवलम्बन करना मंगोलीय आकार प्रकार देख कर अनुमान होता, है कि | पड़ता है। ऐसी विधवा यदि विवाह करना चाहे तो इन लोगोंमें आस पासको पहाड़ो जातियोंका रक्तसंस्रव ! अपने देवर होले विवाह कर सकती है। हुआ है । ये लाग प्रायः शैव हैं ओर वाथो नामक शिव तथा ____ दार्जिलिंग और जलपाइगुड़ी जिलेके मेच लोग वलिखुडी नामक काली हो इन लोगोंके प्रधान उपास्य अग्निया और जाति नामके दो थोकोंमें विभक्त हैं। पूर्व देवता हैं । जातिमेच लोगोंकी गृहदेवी ही कुलदेवता होती या आसाम प्रान्तके मेच लोग अग्निया, आसामो, हैं जो शिवको मां कहो जाता हैं। इसके अतिरिक्त ये काछड़ा या काछाड़ो और खानपाइ नामक चार विभागों लोग सिमिशि, तिस्तावुड़ी, महेश्वर ठाकुर, संन्यासी मे बटे हुए हैं। अपने अपने थोकोंको छोड़ दूसरे थोक और महाकाल मूर्तिको उपासना करते हैं। वालोंके साथ इनका विवाह-सम्बन्ध नहीं होता । अग्निया मेच लोग एक मात्र राजवंशी लोगोंको और जाति मेच. ये लोग अपने मुर्दोको जलाते हैं और ४ या ८ दिनमें लोग ढिमाल, ढेकरा और अग्निया में चलोगोंको अपने श्राद्ध करते हैं। बहुतेरे वार्षिक श्राद्ध भी करते हैं। साथ मिला हुआ समझते हैं। यदि भिन्न श्रेणोका कोई ये लोग सभी प्रकारके मद्य मांस खाते पीते हैं। व्यक्ति किसी में वस्त्रोके प्रणयमें पड़ मच जातिमें मिलना सूअर, गो, साँप, छुछुन्दर आदि भी खाते हैं। राजवंशी चाहे तो जाति प्रवेशके मूल्य स्वरूप उसे एक भोज देना और ढिमाल आद् जोति इन लोगोंसे कहीं अधिक पड़ता है। उन्नत हैं । नेपाली लोग इनका छुआ जल पोते हैं। - दार्जिलिंग-वासो अग्निया और जाति मेचों और मेचक (सं० लो०) मचति वर्णान्तरेण मिश्रोभवति मच आसामके चार थोकोके मध्य धमोड़ा, वोशमाठा, छोङ्ग (कृनादिभ्यः संज्ञायां बुन्। उण् १३५ ) इति वुन् ततः फांग, चोंग फ्रांग इशारे, कुकताया, मोछारे, नजे ना। (पचिमच्योरिच्च उण ५५३७) इति इत्वे लघपधगुणः यद्वा फदाम, सवाइयारे और शिविनागरे आदि १२ श्रेणियां मच मचि कल्कने अकन्, 'मचि परिमुचं नाम्नि' इति पाइ जाती हैं। वे लोग अपनी अपनी श्रेणी हीमें विवा एत्वं । १ नोलाजन, सुरमा। २ अन्धकार, अंधेरा। हादि करते हैं। ३ मोरकी चन्द्रिका । ४ धूम, धूआं । ५ शोभाञ्जन, सहि- ___ अग्निया मेच जातिमें लड़कीके वारहवें वर्ष और | जन। ६ मेच। मेघ, बादल । ७ पीतशाल, पियासाल लड़केके सोलहवें वर्षमें ही विवाह होता है । जाति- सौवट्रल लवण । विलवण | १० विचित्रवर्ण । मेचोंमें हो १६ वर्षसे २० वर्ष तक विवाह होते देखा । ११ कृष्णपोतरक्त वर्ण । १२ मन्दविप वृश्चिक जाति, जाता है। अनेक स्थानों में विवाहके पहले सद्भावस्था- विच्छूको एक छोटी जाति । १३ मुष्क वृक्ष - Vol, xv111 74