पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२९९

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२ मेदक- मेदिनीपुर स्मृतिमें वैदेहिक पुरुष और निषाद स्त्रीसे कही गई है । मेदा (सं० स्त्री० ) मेदोऽस्याः अस्तीति मेद-अच-टाप। वन जन्तु मारना ही इनकी जालीय बृत्ति है । । अष्टवर्गमेसे एक प्रसिद्ध ओषधि। यह ज्वर और राज- (मनु १०॥३६॥४८) यक्ष्मामे अत्यन्त उपकारी कही गई है। कहते हैं, कि मेदक (सं० पु०) मिद्ण्वु ल । जगल सुरा, पीठोसे बनी इसको जड़ अदरककी तरह, पर सफेद होती है और हुई एक प्रकारकी शराब । । नाखून गडानेसे उसमेसे मेदके सामान दूध निकलता मेदज ( स० पु०) मे दात् जायते इति जन ड। १ भूमिज, है। वैद्यकमें यह मधुर, शीतल तथा पित्त, दाह, खांसी गुग्गुल। (नि.)२ मेदोभव, जो चरबीसे उत्पन्न हो। ज्वर और राजयक्ष्माको दूर करनेवाली कही गई है। यह मेदन ( स० क्ली० ) स्नेहन, चरवी लगाना। मोरङ्गकी ओर पाई जाती है। संस्कृत पर्याय-मेदो- मेदपाट (स० पु०) राजपूतानेके मेवाड़ राज्यका. संस्कृत द्भवा, जोवनी, श्रेष्ठा, मणिश्छिद्रा, विभावरी, वसा, नाम । मवार देखो। स्वल्पणिका, मेदःसारा, स्नेहवती, मेदिनी, मधुरा, मेदपाठ ( स० क्लो०) वत्स गोत्रीयका एक ग्रन्थ । स्निग्धा, मेधा, द्रवा, साध्वी, शल्यदा, वहुरन्ध्रिका, पुरुप- भेदपुच्छ ( स० पु०) एड़क, दुबा मेढा । दन्तिका। मेदस् (सं० लो०) मेधति स्निातोति मिद् ( सर्वघातुभ्यो:- मेदा ( अ० पु० ) पाकाशय, पेट। ऽसुन् । उण ४॥१८८) इति असुन्। शरीरस्थ मांस मेदिनी (सं० स्त्री० ) मेदोऽस्या अस्तीति भेद-इनि-डीपः। प्रभव ४र्थ धातु, चरबी। इसका गुण-वातनाशक, १ मेदा । २ काश्मरी । ३ पृथिवी । मधुकैटभके मेद द्वारा बल. पित्त और कफदायक माना गया है। इसका। पृथिवोकी उत्पत्ति हुई है, इसीसे इसका नाम मेदिनी स्वरूप-- पड़ा है। "धन्मासं स्वाग्निना पक्वं तन्मेद इति कथ्यते। 'गतप्राणौ तदा जातौ दानवी मधुकैटभौ। तदतीव गुरु स्निग्धं बलकार्यतिवृहितम् ॥" ( भावप्र.) सागरः सकलो व्याप्तस्तदा वै मेदसी तयोः॥ अपनो अग्निके द्वारा शरीरके अन्दर जो मांस परि- मेदिनीति ततो जातं नाम पृथ्य्वाः समन्ततः।। पाक होता है, उसे मेद कहते हैं। यह अतिशय गुरु, अभक्ष्या मृत्तिका तेन कारण न मुनीश्वराः ॥" स्निग्ध, बलकारी और अति वृहित होता है। ( देवीभागवत ३११३८) यह प्राणियोंके उदर और अस्थिमें रहता है। जिसके यह मेदिनी मेदसे उत्पन्न है, इसीसे मिट्टीको अभक्ष्य शरीरमें अधिक मेद रहता है, उसे तोंद निकल आता है। वतलाया गया है। "मे दो हि सर्वभूतानामुदरेष्व स्थषु स्थितम् । | मेदिनोकर:-मेदिनीकोष वा नानार्थकोष नामक अभिधान- अतएवोदरे वृद्धिः प्रायो मेखिनो भवेत् ॥" ( भावप्र०) के प्रणेता। इनके पिताका नाम प्राणधर है। "मांसात्त मंदसो जन्म मे दसोऽस्थि समुद्भवः।" (सुश्रुत) | मेदिनीज (सं० पु०) १ भूमिज, मङ्गलग्रह । २ मेदिनीपुत्र । २रोगविशेष, मेद रोग। ३ स्नेहविशेष । वसा देखो। (त्रि.)३ पृथिवीजातमात्र । मेदःसार (सं०नि०) मेदस्वी, मेदप्रधान। मेदिनीद्रव (सं०नि०) मेदिन्याः द्रवः। धूलि, धूल। भेदस्कृत् (सं० क्ली० ) मेदः करोतीति मेदस्-कृ-क्विप् । मेदिनोपति (सं०.पु० ) मेदिन्याः पतिः। पृथिवीपति ।। मांस। मेदिनोपुर-बङ्गालका एक जिला । यह अक्षा०-२१ ३६ से मेदस्तेजस् (सं० लो०) अस्थि, हड्डी। २२.५७ उ० तथा देशा० ८६ ३३ से ८८१७ पू०के मेदस्पिण्ड (सं० पु०) चौंका गोला। मध्य अवस्थित है। भू-परिमाण ५१८६ वर्गमील है। मेदस्वत् (सं० त्रि०) मेदयुक्त, जिसे चरबो हो। . मेदस्विन (सं०नि०) १ मेदोमय, जिसमें बहुत चरवी हो। यह जिला वर्धमान विभागके सबसे दक्षिणमें अवस्थित (क्ली०) २ मेदजन्य स्थूलदेह, चरवीके कारण जिसका है। इसके उत्तर में वर्तमान और वांकुड़ा; पूर्व में हुगली | और हवड़ा; दक्षिणमे वङ्गोपसागर ; दक्षिण-पश्चिममें शरीर मोटा गया हो