पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२९७ । मेदिनीपुर वालेश्वर ; पश्चिममें मयूरभञ्ज सामन्त राज्य और सिंह | पहाड़ी अनार्य जाति आर्यसभ्यतामें आ कर जंगल काट भूम तथा उत्तर-पश्चिममें मानभूमं जिला है। मेदिनीपुर । कर वहां वस गई। पीछे दक्षिण वङ्गसे वहुतसे लोग नगर इसका विचार सदर है। वाणिज्यके उद्देशसे यहां आने लगे जिससे यह जिला जिला बहुत बड़ा और प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण सभ्यजातिका वासस्थान समझा जाने लगा। है। प्रधानतः इस स्थानको तीन भागोंमें विभक्त किया ____समुद्रोपकूलवत्ती गाङ्गय मुहाने पर अवस्थित जा सकता है, १ला समुद्र तरवत्ती स्थान, २रा डेल्टाभूमि तमलुक नगरी अपना प्राचीन कीर्ति-गौरव दिखा रही है। और ३रा समतल और उच्चभूमि। पश्चिम-भूभागकी गहाड़ प्राचीन बौद्धोंने ५वीं सदीमें यहां आ कर उपनिवेश भूमिको छोड़ कर और सभी स्थानों में खेती वारी होती वसाया। समुद्रपथसे वैदेशिक वाणिज्यमें सुविधा देख कर है। हिंस्त्र जन्तुओंसे भरा हुआ यह पहाड़ी भूभाग 'जङ्गल यहां एक बन्दर भी खोला गया था। इसी स्थानसे, जहां महाल' कहलाता है। पूर्व और दक्षिण पूर्वके जलमय तक सम्भव है, भारतीय वौद्धगण ब्रह्मराज्यमें तथा जावा भूभागमें तथा रुपनारायण नदीके मुहानेसे ले कर वाले आदि भारत-महासागरस्थ द्वीपोंमें पाणिज्यके उद्देशसे श्वरके उत्तर तक फैले हुए हिजली विभागमें भी धान आते जाते होंगे। ७वीं सदीके आरम्भमें प्रसिद्ध चीन- आदि फसल उत्पन्न होती है। यहां जलका कभी अभाव परिव्राजक युएनचुवंग इस स्थानको देखने आये थे। नहीं होता। इस जिले हो कर हुगली तथा उसकी वे ताम्रलिप्त नगरका एक महासमृद्धिशाली बन्दररूपमें . सहायक नदियां रूपनारायण, हल्दी और रसूलपुर वहती वर्णन कर गये हैं। उन्होंने यहां १० बौद्ध संघाराम, हैं। रूपनारायण नदी शिलाई नदीके जलसे परिवर्द्धित २०० फुट ऊंचा एक अशोकलाट ( स्तम्भ ) और हजारसे हो हुगली-पायेएटके समीप भागीरथीमें मिलती है। ऊपर श्रमणोंका वास देखा था। हल्दी नदी तमसुक उपविभागके नन्दीग्रामके समीप ताम्रलिप्त और तमलुक देखो। गङ्गामें मिली है। कलियाघाई और कसाई नामक इस प्राचीन हिन्दू उपाख्यानमाला पढ़नेसे मालूम होता की दो शाखा-नदियां वक गतिसे जिलेमें वहती है। है, कि यह नगर पहले समुद्रोपकूलसे ८ मीलकी दूरी पर मेदिनीपुर नगर कसाई नदीके किनारे वसा है। रसूलपुर अवस्थित था। नदी कौखालीके समीप भागोरथोमें गिरी है। __.यहांके मयूरवंशीय राजे क्षत्रिय थे। उस वंशके

उपरोक्त नदी और शाखा नदियोंको छोड़ कर खेती अन्तिम राणा निःशङ्कनारायणके कोई सन्तान न थी, इस

वारी तथा वाणिज्यकी सुविधाके लिये इस जिले में कुछ कारण उनके मरने पर कालू भूइया नामक एक पहाड़ी नहर काटी गई हैं। इनमें उलुवेड़ियासे पूर्व-पश्चिममें सरदार राज्याधिकारी हुआ। कालू सरदारसे तमलुकमें मेदिनीपुर तक विस्तृत 'हाईलेभल कनाल' तथा रूप कैवर्त राजवंशकी प्रतिष्ठा हुई। पहले वे लोग भूइया नारायण मुहानेके गेयोखालोसे हिजली विभागके रसूल- नामक अनार्य-जाति समझ जाते थे, पीछे हिन्दूधर्मग्रहण पुर नदी तक विस्तृत दो लंबी चौड़ी नहर ही उल्लेख कर हिन्दूसमाजमें मिल गये। इस वंशके वर्तमान राजा नीय हैं। पश्चिमदिग्वती जगल विभागमें लाख, टसर, कालूसे २७ पीढ़ी नीचे हैं। मोम, धूना, काष्ठ आदि वाणिज्यद्रष्य पाये जाते हैं। धन्य वङ्गालमें पठान आधिपत्य विस्तारके साथ साथ यह भूभागमें नाना प्रकारके जीवजन्तु रहते हैं। समुद्र और स्थान भी पठानराजके दखलमें आ गया। परन्तु जो सब पहाड़ी भूमिके मध्यवत्ती होनेके कारण यहां बहुतसे सर्प राजा-उपाधिधारी हिन्दू जमींदार थे उनका अधिकार देखे जाते हैं। .. नहीं छीना गया । उदासी और विलासी मुसल- . समूचे जिलेका पुराना इतिहास नहीं मिलता। प्राक मानोंको कावूमें करके देशी सामन्तगण एक समय तिक दृश्य देखनेसे मालूम होता है, कि बहुत पहले मेदिनीपुर में अपनी अपनी प्रधानताका परिचय दे गये हैं। पश्चिम देशभाग घने जंगलमें परिणत था। धीरे धीरे मेदिनीपुर जिलेका पश्चिम और दक्षिण हिजली भाग Vol. XVII 75