पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३०१

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२६९ मेदिनीपुर मुसलमानी अमलमें जलेश्वर सरकारमें मिला लिया और एक एक दुर्गप्रासाद भी वनवाया था। उन दुर्ग- गया। मुगल बादशाह अकवर शाहके समय यहांसे १२॥ प्रासादोंमें वे कभी कभी उन लुटेरोंसे बचने के लिये छिप लाख रुपया कर वसूल होता था। जलेश्वर नगरमें ही रहते थे। इसका विचार सदर प्रतिष्ठित था। अभी यह बालेश्वर के ____ जङ्गलमहालक इन सरदारोंमे मयूरभञ्जके राजाको अन्तभुक है। जलेश्वर और वालेश्वर देखो। भी गिनती को जा सकती है। क्योंकि उनके अधिकृत १७६० ई०से अगरेज कम्पनी के साथ मेदिनीपुरका परगनोंसे उनके अधीन सेनादल बाहर निकलता और संत्रव आरम्भ हुआ। उसी साल इष्ट इण्डिया कम्पनीने लूट मार कर प्रजाको तंग तंग करता था । अंगरेज मोरजाफर खाँको राज्यच्युत पार मोरकासिम खाँको गवर्मेण्टको पुरानो नत्थियोंसे इस वातका पताका लगता वङ्गालकी मसनद पर विठाया। मीरकासिम अपनी पदो- है। १७८३ ईमें गवर्नर जनरलने जव मयूरभञ्जके राजाका नतिके वदलेमें कम्पनीको मेदिनीपुर, चट्टग्राम और बद्ध अधिकार छीनना चाहा, तब वे एक दूसरे विरोधी मर- मान जिला देनेको वाध्य हुए। दारकी सहायतासे अंगरेजों के विरुद्ध खड़े हुए और पूर्व और दक्षिण में समुद्र तथा पश्चिममें पर्वतमाला एक दल सेना ले कर अंगरेजोंके अधिकृत जिलेको जीतने विस्तीर्ण रहने के कारण यहां वैदेशिक शत्रु नहीं घुस चले। इस समय सुचतुर अंगरेज राजने उड़ीसांके सकता। दक्षिण उड़ीसासे मरहठे लोग दल बांध बांध महाराष्ट्रीय शासनकर्ताको सहायतासे मयूरभाराजको कर यहां आते और मेदिनीपुरको लूट जाते थे। एक परास्त किया था। उसी समयसे मयूरभञ्जराज मेदिनी- समय मरहठोंने सारे मेदिनीपुरमें अपना आधिपत्य फैल पुरके अन्तर्गत अपनो सम्पत्तिके लिये वृटिश सरकारको लिया था, किन्तु लूटमारकी ओर उनका विशेष मुकाव था. वार्षिक ३२००) रुपया कर दे रहे हैं। इस कारण वे अपनी शक्तिको वहुत दिन तक अक्षुण्ण न ___अंगरेजों के अधिकारमें आनेके बाद मेदिनीपुर- रख सके। घर्गी देखो। विभागके आकारमें बहुत कुछ परिवर्तन हुआ है। १८३६ जिलेके पश्चिममें अवस्थित जङ्गल भूमिके जमीदार ई० तक हिजली एक स्वतन्त्र कलेकृरीके अन्दर रहा, पोछे भी दल बांध कर यहां आने और समतलक्षेत्रमें शस्यादि - वह मेदिनीपुरमें मिला लिया गया। तभीसे ले कर आज को लूट ले जाते थे। जंगलमहालके दस्युपालक ये । तक वह मेदिनीपुर जिलेके शासनाधीन है। १८७२ ई०. सरदार वा जमोदार अपनेको राजा बतलाते हैं। १७७८ में हुगली जिलेके अन्तर्गत चन्द्रकोण और धर्धा परगना ईमें चे ऐसे दुई हो उठे थे, कि अंगरेज कर्मचारियोंके : म "। इसके अन्तर्भुत हुआ। १८७६ ईमें विचार कार्यको .प्रति भो अत्याचार करनेसे वाज नहीं आये। यहां तक । सुविधाके लिये सिंहभूमिसे ४५ ग्राम ले कर इसमें शामिल कि वे आपसमें अपनीय अत्याचार भी कर डालते थे, ' किये गये। जिसके लिये उन्हें जरा भी घृणा नहीं होती थी। उन इस जिलेके राजाको उपाधि धारण करनेवाले प्राचीन लोगोंके अत्याचारसे छुटकारा पानेके लिये स्थानीय जमीदारोंको सशस्त्र सिपाही रखने पड़े थे। शरत्काल जमो दारवंशमें बागड़ीराजवंश, नयनामवंश, मैनाराजवंश, में कटनीके समय वे लोग शस्त्रधारी सेनादलसे अपनी तमलुक राजवंश, नारायणगढ़वंश और वलरामपुर राज प्रजाको मदद पहुंचाते थे। वंश उल्लेखनीय हैं । मैना, तमलुक, वागड़ी आदि राज- वंशका विवरण यथास्थानमें दिया गया है। उड़ीसा और वर्गियों तथा इन जंगलदासी लुटेरों के आक्रमणसे वङ्गालके मध्यवत्तीं प्राचीन समृद्ध नगरों में जो बौद्ध, देशकी रक्षाके लिये जलेश्वर में बहुत पहलेसे हो एक सोमान्त दुर्ग प्रतिषित था। अलावा इस जिलेमे जहां हिन्दू, महाराष्ट्रीय और मुसलमानों की स्थापित कीर्ति ज भी अपनी तथा देशीय जमीदारोके प्रतिष्ठित देवमन्दिर गढ़ और कहाँ सभ्य धनिया। रक्षाके लिये प्रासादकं चार आर. साई खुद्वा रखी थी' जलाशय हैं उनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जायगा