पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३०२

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२६६ मेदिनीपुर

उपरोक्त जमीन्दार-वंशमैं : वलरामपुर राजवंशकी | श्यामसुन्दरजी और सिंहवाहिनीकी मूर्ति स्थापित कर

अनेक कोति-कहानियां सुनी जाती है। खड़गपुर, केदार- वे अपने नामको उज्ज्वल कर गये हैं। कुण्ड और बलरामपुर परगने ले कर इस वंशकी प्रति- ११७५-११९२ वङ्गाव्द राजा नरहरि चौधरीका . 'पत्ति है। पहले जिन सब जमींदारोंने अपने पराक्रमसे | राज्यकाल है। इस समय चुयाइविद्रोह, वीके हंगामा, जङ्गलमहालको कटवा कर उसका जो कुछ भाग दखल | घड़ई विद्रोह आदिले मेदिनीपुर उत्पन्नप्राय हो गया था। कर लिया था उनके वंशधर आज भी उन भागों पर दखल वे नृशंस, क्रोधी और महाप्रतापी थे। १०६० ई०में रखते हैं। अगरेजोंके निकट वे लोग सामान्य जमींदार मेदिनीपुरका शासन-भार अंगरेजोंके हाथ आने पर भी गिने जाने पर भी एक समय वे अपने अपने अधिकृत प्रदेशमें | राजा नरहरिने अगरेजोंका प्रतिनिधित्व स्वीकार नहीं खाधीनभावसे राज्य कर गये हैं। वलरामपुर परगना इसी | किया। उनके समसामयिक नारायणगढके राजा परी- • जंगलमहालके अन्तर्गत है। .. . क्षित् वहुत उदार थे। १५८२ ई० में राजा टोडरमल वङ्गाल और उड़ीसाके ११९२ से १२३५ वङ्गाब्द राजा वीरप्रसादका राज्य- राज्यसंक्रान्त वन्दोवस्तके लिये यहां आये और राजकीय काल है। उनकी मृत्युके वाद उनकी स्त्री मुञ्जराने इंद्र- कार्यकी सुविधाके लिये सदर-चौधरी पदकी सृष्टिं कर नारायण चौधरोको गोद लिया। राज्यभ्रष्ट और श्रीभ्रष्ट ‘गये। वहो चौधरोवंश यहाँके सत्त्वाधिकारी है । १७६३ हो इनकी अवस्था बहुय शोचनीय हो गई। .. ईमें लार्ड कार्नवालिसके दशशाला वन्दोवस्तके समय बलरामपुर राजवंशके वासस्थानका नाम आड़ी- राजा वीरप्रसाद चौधरो उक्त तीनों परगोंके अधिकारी | सिनिरगढ़ है। इनके और भी १२ महल थे। कालपरि- थे।१८३८ ई०में वाकी खजाना न दे सकनेके कारण उनकी परिवर्तनसे राजवंशकी अवनतिके साथ वे सब भी विलुप्त 'राजसम्पत्तिको गवर्मेण्टने नीलाममें खरीद लिया। पीछे हो गये । अयोध्यागढ़के समीप जोड़वंगला और पञ्चरत्न- 'वह खासमहाल नामसे प्रसिद्ध हुआ। - - मन्दिर विद्यमान है। . ____ इस राजवंशके आदि राजाका नाम भीम महापात्र कंसावतीतीरवत्ती धरेन्दा परगनेमें धरेन्दार राज- है। वे इस प्रदेशके खैराराजके गढ़ सरदार वा सेना वंशकी प्रतिपत्ति है । हुगली जिलेके दशधरा नामक स्थान- • ध्यक्ष थे । सेनापति तथा राजदीवान लक्ष्मणसिंह (कर्ण में इन लोगों का आदि वास था। इस वंशका कोई एक गढ़राजवंशके आदिपुरुष )-ने षड्यन्त्र करके राजाको व्यक्ति नवावकी कोपदृष्टि में पड़ कर सवंश यमपुर मार डाला। खैराराजवंश-निम्न श्रेणीके हिन्दू हैं और | सिधारा। सिर्फ उसकी एक गर्भवती स्त्रीने देवरके एक प्रकारको जगली जातिसे इनकी उत्पत्ति बतलाई | साथ भाग कर जान बचाई थी। धारेन्दाके घने जंगल- जातो है। में आने पर उसे एक पुत्र उत्पन हुआ। चचा नारायण- राजा भोम महापात्र ६७५ वङ्गाब्दमें राजसिंहासन पर | पालने उस लड़केका नाम महेश्वर 'पाल' रखा। वे पाल चैठे। भीमसागर' नामक दिग्गी आज भी उनकी कोतिः | उपाधिधारी और कायस्थ कुलके थे। घोषणा करती है। उनके लड़के हरिचन्दनके शासनकाल ___नारायण पालने स्थानीय जमीदार मांझी राजाको 'मैं कोई उल्लेखनीय घटना नहीं हुई। हरिचन्दनके मरने | परास्त कर धरेन्दा प्रदेशमें अपनी गोटी जमायी और पर उनके पुत्र राणा मुकुन्दराम महापात्र 'मुकुन्दसागर' जहां उनकी भौजाई और भतीजा आ कर बस गया था रूप सत्कोर्ति स्थापन कर गये हैं। मुकुन्दरामके पुत्रं उस स्थानका नारायणपुर नाम रखा। उन्होंने वाघा- ४र्थ राजा पोताम्वरके स्वर्गवासी होने पर ११६० वङ्गाब्दमें सिनो नामक सिंहवाहिनी मूर्ति और दामोदरचन्द्रजी उनके पुत्र शत्रुघ्न महापात्र राजाको उपाधि धारण कर | नामक शालग्रामकी मूर्ति प्रतिष्ठा कर पूजाका वंदोवस्त राजसिहासन पर अधिरूढ़ हुए। घड़ई. डकैतोंका कर दिया। मांझी राजाओं के तालपत्रके बने हुए छन विद्रोह दमन तथा पञ्चरत्न और जोड़वङ्गला मन्दिरमें ! वा राजचिह्न धारण करनेकी प्रथा इस वंशमें राजा नारा-