पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३०३

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मेदिनीपुर . यणपालने ही चलाई थी। इसके अतिरिक्त इन्द्रद्वादशी | और मन्दिरको चौहानके समय (१५५५-१६१०ई०) का तिथिमें आज भी उन लोगों के ईद पोत्सवका अनुष्ठान हुआ अनुमान करते हैं। होता है। । दांतनके निकटवती सातदौल्ला और मुगलमारी इस वंशमें राजा नारायणपालके वाद शिवनारायण, प्राममें बहुत बड़े बड़े महलोंका खंडहर देखने में आता खड़गसिंह, बाबूराम, शिवराम, प्रतापनारायण, उदय नारा है। उन्हें देखनेसे मालूम होता है, कि एक समय वहां यण, कार्तिकराम, रामनारायण, मथुरामोहन, कृष्णमोहन, महासमृद्धिसम्पन्न राजा राज्य करते थे। कालक्रमसे अक्षय नारायण और श्रीनारायणने यथाक्रम राज्य वे सभी तहस नहस हो गये हैं। मुगल लोग जिस स्थान- किया। राजा खड़ गसिंहपालने कलाई कुण्डा नामक में मराठी सेनासे परास्त हुए थे, वही स्थान मुगलमारो स्थानमें गढ़ वनवाया। राजा कात्तिक रायने अपनी कहलाता है। इस युद्धमें दातनगढ़के राजाने वीरता वोरताके कारण 'हारावल' की उपाधि पाई थी। दिखा कर 'वीरवर' की उपाधि पाई थी। वह ग्राम • गढ़वेताके चारों ओर आज भी वगड़ी राजवंशकी दांतनसे दो मोल उत्तर पड़ता है। . . • कीर्तिके निदर्शन देखने में आते हैं। समस्त वगड़ी ____ दांतन नगरमें विद्याधर नामक तथा वहांसे २ मील परगना देवी सर्वमङ्गलाको देवोत्तर-सम्पत्ति कहलाती है।। पूरव शशांक नामक दो बड़ी दिग्गी हैं। उत्कलराज प्रवाद है, कि उज्जयिनीराज विक्रमादित्यने इस मुकुन्ददेवके प्रधान मन्त्री विद्याधरके आदेशसे विद्याधर देवीप्रतिमाको प्रतिष्ठा को थी ।थानीय कसेश्वर शिव- पुष्करिणी खोदी गई थी। उसको लम्बाई १६०० और मन्दिर और सर्वमङ्गला देवोमन्दिरकी वनावट देखने- चौड़ाई १२०० फुट है। पाण्डघवंशीय राजा शशाङ्क देव जब जगन्नाथ देवके दर्शन करने आये थे उस समय से मालूम होता है, कि वे दोनों मन्दिर एक ही समयके धने हैं। उन्होंने यहां अपने नाम पर एक पुष्करिणी खुवाई थी। उस पुष्करिणीकी लम्बाई ५ हजार और चौड़ाई २५०० गढ़वेताका प्राचीन भग्नावशेष दुर्ग देखनेसे इस फुट है । प्रवाद है, कि दोनों पुष्करणियोंमें सम्बन्ध राजवंशके प्रभाव और समृद्धिका विषय जाना जाता रखनेके लिये जमीनके अन्दर ॥ फुट ऊंचा और है। आज भी लाल दरवाजा, हनुमान दरवाजा, पेशा-|फुट चौड़ा एक पत्थरका नाला चला गया है। दरवाजा और राउत दरवाजा नामक प्रवेश-द्वार इष्टक- दांतनका श्यामलेश्वर मन्दिर देखने लायक है। कहते स्तृपमें परिणत हो कर अतीत कीर्तिका परिचय देते है कि विक्रमादित्यके श्वशुर भोजराजने यह मन्दिर वन- हैं। रायकोट नामक स्थानमें जिन सब पत्थरों और माया कालापहाडने मन्दिर के सामने जो पत्थरकी ईटीका स्तूप पड़ा है, वह राजा तेजश्चन्द्रका प्रासाद ) वृपमूर्ति है उसके अगले दोनों पैरोंको तोड़ दिया है। कहलाता है। यहांके दुर्गमें जो सब कमान थी उन्हें । प्रायः आध सदी पहले राजा यदुचरण सिंहने ग्वाल वृटिश सरकार उठा ले गई है। मालदा ग्रामके समीप | तोरमै पश्चरत्न मन्दिर बनवाया। इसका शिल्पनेपुण्य नयावसत् ग्राममें राजा गणपति औउचका बनाया हुआ देखने योग्य है। राजाने इस मन्दिरमें वालचन्द्र नामक एक छोटा किला है। राजा यादवचन्द्रसिंह द्वारा प्रति- शालग्राममूर्तिको स्थापित करना चाहा था, किन्तु स्थापित ठित झालदा दुर्ग अभी खंडहरमें पड़ा है। करनेके पहले ही उसमें एक गायका बछड़ा मर गया था ___ गढ़वेता दुर्गके उत्तरी द्वारके सामने जलटुङ्गी, इन्द्र- जिससे अपवित्र समझ कर उसे छोड़ दिया गया। पुष्करिणी, पाथरी-हादुआ, मङ्गला, कवेशदिग्गो, आम ____ नयाग्राम राजवंशका कीर्तिकलाप उनकी राजधानी खेलरगढ़ नामक स्थानके आसपास प्रदेशों में दृष्टिगोचर पुष्करिणी और हदुओ नामक सात तालाव हैं। प्रत्येक होता है। उस वंशके द्वितीय राजा प्रतापचन्द्रसिंहने तालावके ठीक दीचमें एक एक पत्थरला वना मन्दिर है। दुर्गके समीप रहनेके कारण बहुतेरे इस पुष्करिणी । १४६० ई०में यहां जिस गढ़की नोव डाली थी उसे