पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३०४

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मेदिनीपुर ३०९ . उनके लड़के वलभद्रासहने पूरा किया। यहां जो दो, चक प्रभृति गांवों के भूमिगभ (१६।१७ फीट नीचे)-से अश्वारोही पारसिक वा शक-प्रतिमूर्ति पाई गई है वह | जो सब वस्तुएं मिली हैं' उनसे अनुमान होता है कि बहुत कुछ अरवको प्राचीन विध्वस्त निनिभ नगरीके | प्राचीन कालमें यह वन्दर वा समुद्रकूलस्थित नगर रहा होगा। . स्तूपमें प्राप्त मूर्तिकी जैसी है। .: . वलभद्रकी मृत्युके वाद राजा चन्द्रशेखरसिंह राजपद | तमलुक जनपदका प्राचीनत्व और प्रत्नतत्त्व यथा- पर अधिष्ठित हुए। उन्होंने १६वीं सदीमें चन्द्ररेखागढ़ और स्थान वर्णित हो चुका है। वगंभीमाके मन्दिरका गठन ..प्रासाद धनवाया। यह दक्षिणमें निविड़ जङ्गलसे परि | वौद्ध शिल्पके जैसा है। इससे अनुमान किया जाता पूर्ण है। चन्द्ररेखागढ़से १ मील पूरव देउल नामक शिव- है कि इस स्थानमें वौद्ध-प्रधानताके समय यह मन्दिर मन्दिर है। नयग्राम राजवंशके खर्च वर्चसे मन्दिरको | उठाया गया था। द्वितीय तमलुक राजवंशकै प्रतिष्ठाता देवसेवा निर्वाह होती है। राजा ताम्रध्वजने नरनारायणके महिमाकीर्तनके लिये कयारचांद नामक विस्तीर्ण प्रस्तरोंकी स्तम्भावली कृष्णार्जुन मन्दिरको स्थापना की थी। प्रवाद है, कि भी उल्लेखनीय हैं। जहरसिंह नामक एक हिन्दू-सरदार महाराज युधिष्ठिरका अश्वमेधीय घोड़ा कृष्ण और ११७० वङ्गान्दमें वे सव स्तम्भ स्थापन कर गये हैं। अर्जुन द्वारा रक्षित हो जव ताम्रलिप्त आया तव धार्मिक प्रवाद है, कि विपक्षसैन्यको डर दिखानेके लिये ही सेना राजा ताम्रध्वजने उसे रोका था। युद्धमें जय न बलवृद्धिसूचक वे सव स्तम्भ खड़ा किये गये थे। पा सकने पर अर्जुन और कृष्ण वैष्णव-श्रेष्ठ ताम्र. .. उडिसा-साई नामक पत्थरका मन्दिर राजा चौहान ध्वजके अतिथि हुए। भक्तप्रधान ताम्रध्वजने श्रीकृष्ण- सिंहने ६६ वङ्गाव्दमें वनावाया था। बगड़ी राजवंशका के चरणोंकी नित्य पूजाके लिये कृष्णार्जुन-मूर्तिकी यह ऐतिहासिकतत्त्व शिलालिपिसे निकाला गया है। स्थापना की थी। मैनागढ़-राजवंशकी कोचि मैनागढ़ दुर्ग और राज नारायणगढ़ राजवंशका राजप्रासाद हो उनकी उल्लेख प्रासाद कसाई नदीके पश्चिमी किनारे बनाया गया था। नीय कीर्ति है। उसकी बनावटमें विशेष निपुणता न पहले चारों ओर खाई खुदवा कर उस स्थानको द्वीपा रहने पर भी उसके तोलाव देखनेयोग्य हैं। . . . कारमें परिणत कर दिया था। मट्टीका धुस्स दीवारके तौर| इस जिलेमें मेदिनीपुर, घाटाल, चन्द्रकोणा, राम- . पर द्वीपसीमा पर खड़ा है। वह धुस्स अभी वांसके जंगल जीवनपुर, क्षीरपाल और तमलुकनगर ही प्रधान हैं। से ढक गया है जिससे लोग वहां नहीं जा सकते । द्वीपके | परन्तु सम्प्रति कराटाइ सव-डीवोजनकी बड़ी उन्नति मध्य भागमें चारों ओर खाई खुदवा कर वहां राजभवन | और दुर्ग बनाया गया था। ____अत्यन्त प्राचीनकालसे यह ध्यापारके लिये प्रसिद्ध ___ मैनागढ़का राज-इतिहास पढ़नेसे मालूम होता है, है। जङ्गलमहालमें नीलका कारवार होता था। चावल, कि राजा लाऊसेनने यह दुर्ग बनाया है। वे गौड़ेश्वर- चीनी, रेशम एवं तांबे और पीतलके वरतनोंकी खूव के सामन्त थे। महाराष्ट्रपतिके अभ्युदय पर जव लाउ रफत्नी होती है । सुना जाता है, कि यहांके पुराने सनके वंशधर 'चौथ' न दे सके, तव महाराष्ट्रोयदलने वाहु, कारीगर तीन चार सौ रु०की एक एक चटाई वलेन्द्र नामक एक व्यक्तिको मैनागढ़ सिंहासन प्रदान | तैयार करते थे। उसकी कारीगरी आश्चर्यजनक है। किया। मैनागढ़ देखो। ढाकेके मसलिन्की जैसी यहांकी चटाईकी भी ख्याति मैनाके दक्षिणमें प्रायः नौ मीलका एक बड़ा गड़ा है। थो। पहले इस स्थानमें समुद्रकी खाड़ी थी । मैनाके राजाओ पहले वृटिश सरकार यहां नमकका खास कारवार करती ने वाच उठवा कर इस स्थानको कृषि और वास करने | थी। उसके छोड़ देने पर जनसाधारणने नमक बनाना लायक बना दिया। इस खातके वगलमें तिल्दा, जल- | शुरू किया। सरकार तव केवल कर उगाहने लगी। Vol. XVIII 16