पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३०५

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३०२ येदुरा-पेदोरोग १८७३ ई०से वह कर हरपक हंडरचेटमें ४,१० नियत हुम, काय हो नितान्त अकर्मण्य, कास, शुद्रश्वास, तृष्णां और था। नाव आदिको छोड़ व्यापार करनेका दूसरा उपोय | मोहयुक्त, स्निग्धांग, सोनेके समय खर्राटे मारनेवाले, न था। अव वी० एन डवल्यू रेलबेके यहां आने पर अवसन, क्षुधा, स्वेद और दुर्गन्धयुक्त, क्षीणवल और व्यापारमें विशेष सुविधा हुई है। | अल्पमैथुन होते हैं। मेदके द्वारा स्रोतोंके बंद हो जाने बाढ़ और अनावृष्टिके कारण यहां समय समय पर पर वायु कोष्ठस्थ अग्निको प्रदीप्त कर आहारको अत्यन्त दुर्भिक्ष होता रहा है। १८२३,३१,३२.-३३, ३४, १८४८, शीघ्र पचा कर उसे सोख लेती है इससे फिर भूख लग १८५०, १८६४, १८६६, १८८१, १८६१ आदि वर्षीमें यहां जाती है। ऐसी हालतमें यदि भोजनमें देर हो जाय, तो अकाल पड़ा था। साथ साथ लोगोंकी मृत्यु भी वेशुमार वायु और पित्त प्रकुपित हो दाहादि नाना प्रकार शारी- हुई थी। यहांका जलवायु २४ परगनेके जैसा है। हैजा, रिक पीड़ा उत्पन्न करते हैं। शीतला आदिका प्रकोप हमेशा रहता है। १८६६ ई०में "मेदसावृतमागेत्वात् वायुः कोष्ठे विशेषतः। 'वर्तमानका ज्वर' यहां संकामक रूपमें फैला था। चरन सन्धुक्षयत्यमिमाहारं शोषयत्यपि, ___ यहां स्कूलों, संस्कृत टोलों आदिकी खासी संख्या तस्मात् शीघ्रन्तु जरयत्याहारश्चापि कांक्षति । है। करीव १५.२० अस्पताल हैं। विकारान् सोऽश्नुते घोरान कांचित् कालव्यतिक्रमात् ।" २ उक्त जिलेका एक उपविभाग। यह अक्षा० २१ "एतावुपद्रवकरौ विशेषात् पित्तमारतौ। ४६ और २२ ५७ ३० और देशा० ८६ ३३ और ८७ एतौ हि दहतः स्थूलं वनं दावानलो यथा ॥" ४३ पू०के वीच अवस्थित है। इसका रकवा ३२७१ शरीरस्थ मेदकी अत्यन्त वृद्धि होने पर सहसा वर्गमील है। इसके अन्दर मेदिनीपुर, नारायणगढ़, चातादि प्रकोपित हो वातव्याधि, प्रमेहपीड़का, ज्वर, भग. दांतन, गोपीवल्लभपुर, झाड़ गांव, भीमपुर, शालवानि, | न्दर, विद्रधि आदि.घोर विकार समूह उत्पन्न कर जीवन- केशपुर, देवगिढ़, घेता और सरंग थाना हैं। को नष्ट कर देते हैं। ३ उक्त जिलेका प्रधान नगर और विचारसदर । यह "मेदस्यतीव संवृद्ध सहसैवानिलादयः। अक्षा० २२२५'उ० और देशा० ८७ १६ पू०के मध्य विकारान् दारुणान् कृत्वा नाशयन्त्याशु जीवित ॥" वसा हुआ है। इसकी आवादी प्रायः ३४ हजार है।। यह भी देखा जाता है, कि नपुंसक और कृत्रिम नपु- यहां एक माटं कालेज है। यहांसे मेदिनीपुर हाई | सक वकरे चवींके अत्यन्त बढ़ने पर उसको यन्त्रणा न लिभेल कैनेल (ficinappre High Level canai) दल- | सह सकते और छटपटा कर प्राणत्याग करते हैं। बेड़िया तक चला गया है। ___ शास्त्रकार अत्यन्त स्थूल और कृश व्यक्तिको सभी मेदुर (सं० त्रि०) चिकना, स्निग्ध । विषयमें अकर्मण्य समझ उनकी घृणा करते हैं। फिर मेदोज (सं० पु०) अस्थि, हड्डी। भी इन दोनोंमें वे कृश व्यक्ति हो को अच्छा समझते हैं। मेदोधरा ( स० स्त्री०) शरीरको तोसरी कला या झिल्ली | ___"स्थूलादपि कृशो वर। . जिसमें मेद या चरवी रहती है। मेदोरोग (सं० पु०) मोटाई या चरवी वढ़नेका रोग । व्यायाम- इसकी चिकित्सा-मेदोरोगाकान्त व्यक्ति नियम- रहित, दिवानिद्रांशोल, अधिक घृतादि और कफकारक पूर्वक वमनविरेचन द्वारा शरीर-संशोधन कर शालि और पदार्थ खानेवालोंके भुक्त अन्नरससे मेदोधातुको अत्यन्त काउनके पुराने चावलका भात तथा कुल्थी और मूगका वृद्धि होती है जिससे शरीरके सारे स्रोत आवृत हो जाते जूस सेवन करे। परिश्रमी, चिन्ताशोल, स्त्रीसेवी, हैं। स्रोतके आवृत होनेसे अस्थि आदि अन्यान्य धातकी । मद्य पीनेवाला, रातको जागनेवाला, जौ और श्यामक चावल खानेवाला इस रोगसे शीघ्र ही मुक्त हो जाता • सम्यक् पुष्टि नहीं होने पाती और उसी कारण नितम्ब, पावं, उदर और स्तनादिमें उत्तरोत्तर केवल है। मेदोवृद्धिको रोकनेके लिये भातके मांडके 'मेद हो सञ्चित होने लगता है। इससे लोग अत्यन्त स्थूल- साथ हींग और अंडी पत्तेकी राख खानी चाहिये।