पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३०४ मेधा-मेधातिथि साथ सेवन करे । औषध पच जाने पर भल्लातकके युक्त रस तथा घीको एक साथ पाक कर कलसोमें साल विधानानुसार दोपहरको शीतल जलसे स्नान कर शालि मुंह बंद कर दे। उसके बाद पूर्वोक्त विधानानुसार वा साठी धानका चावल, दूध और मधुके साथ भोजन यथासाध्य परिमाणमें सेवन करे । इसके पुराना होने पर करे । छामास तक इस प्रकार नियम रखनेसे मेधाको दूधके साथ अन्न खावे। ऐसा करनेसे दारिद्रा दूर होता अतिशय वृद्धि होतो तथा दीर्घायुःलाभ होता है। कुष्ठ, है और वह श्रुतिधर हो जाता है। हिमालयमें उत्पन्न वच पाण्डु और उदररोगो प्रातःकाल सूर्यको लालिमाके दूर और आंवला वरावर हिस्सेमें पिंडाकार बना कर दूधके होने पर इस औषधके अद्ध पलको गोलो वना कर काली साथ तथा पुराना होने पर दूधके साथ अन्न भोजन गौके दूधके साथ खावे । जीर्ण होने पर अपराह| करना चाहिये। १२ रात तक इसका सेवन करनेसे स्मृति- कालमें विना नमकके आंवलेके जुसके साथ घृतयुक्त शक्तिका विकाश होता है और दो वार अभ्यास करने अन्न भोजन करना चाहिये। एक महीने तक यह नियम पर कोई भी विषय याद हो जाता है। दूसरी विधान- पालन करनेसे मेधा खूब बढ़ जाती है और शरीर नीरोग वच दो पल ले कर क्वाथ तैयार करे और उसे दूधके हो जाता है। चित्रक मूलके सेवनका भी यही नियम | साथ पी जावो। (सुश्रुत मेधा और आयुष्कामीय रसायन) है, तब विशेषता यही है, कि हल्दी और चित्रकमूलके दो २ दक्ष प्रजापतिकी एक कन्या। पलको गोलीका सेवन चाहिये और और नियम पहले "कीनिलक्ष्मीधृतिमधा पुष्टिः श्रद्धाक्रिया मतिः" . जैसे हैं। (अमिपु० गयाभेदनामाध्याय) प्रथमतः-अन्नको छोड़ कर मण्डूकपणींका रस जहां ३ सोलह मातृकाओंमें एक मातृका। नान्दोमुख- तक पच सके उस परिमाणमें ले कर उसे दूधमें अच्छी श्राद्धमें इनकी पूजा की जाती है। तरह मिला कर या दूधके साथ पोवे । यह पुराना हो "गौरी पद्मा शची मेधा सावित्री विजया जया।" ( भवदेवभट्ट ) जाय ,तो यवान्न दूध या तिलके साथ सावे और दूध ४ धन, सम्पत्ति। पोवे । तीन महीने तक यह नियम पालन करनेसे ब्रह्म- मेधाकरी (सं० ) स्त्री०) १ शंखपुष्पी, सफेद अपराजिता । तेजविशिष्ट और अत्यन्त मेधावी होता है। ब्राह्मोक्षप। द्वितीयतः-भोजनके पहले ब्राह्मीरस यथाशक्ति पी मेधाकवि--एक भाषा-कवि। इनका जन्म सं० १८६०- कर औषध पुराना होने पर नमक रहित यवागू पोनी में हुआ था। इन्होंने चित्रभूषण नामक ग्रन्थ चित्र चाहिये। यह नियम सात रात पालन करनेसे ब्रह्मतेजो-1 काव्यका बड़ा ही सुन्दर बनाया। विशिष्ट और मेधावी होता है। तृतीयतः; सात रात यह मेधाकार (सं० वि० ) प्रक्षाकर्ता, मेधाजनक । · नियम रखनेसे इच्छित पुस्तकमें व्युत्पत्ति होती है और मेधाकृत (स क्लो०) मेध करोतीति-क-क्विप् तुक्च । नष्टस्मृति फिर प्राप्त हो जाती है। यदि फिर सात रात १सितावरशाक । २ (नि.) मेधाजनक । तक यह नियम.पालन किया जाय तो दो बार उच्चारण | मेघाचक्र ( स० पु० ) राजपुत्रभेद । ( राजत०.६१४०५) करनेसे एक सौ तक कही गई बातें याद रह जाती हैं। मेधाजनन ( संलि०) १ ज्ञानवर्धक, जिसमें मेधाको इस प्रकार २१ रात तक नियमपालन करनेसे दारिद्रय वृद्धि हो। (क्ली०) कृष्ण सर्षप, काली सरसों। दूर होता है, वागदेवो मूर्तिमती हो कर उसके शरीर में मेधाजित् (सं० पु.) मेधां जितवानिति-जि-पिवप् । प्रवेश करती है, श्रुति आदि शास्त्र समूह उसके आयत्त कात्यायन मुनि। हो जाते हैं और वह श्रुतिधर १०५ वर्ष तक जीवित रहता| मेघातिथि ( स० पु० ) मेधयाः धारण-वद्युद्धरतिथिरिव । है। ब्राह्मीरस २ प्रस्थ, घी १ प्रस्थ, विड़ग, १ मनुसंहिताके प्रसिद्ध भाष्यकार। ये भट्ट वीरस्वामी के पुत्र थे। २ प्रियव्रतके पुत्र और शाकद्वीपके अधिपति । तण्डुल १ कुड़व, वव २ पल, निवृत् २ पल, हरे, आंवला, वहरे प्रत्येक १२ पल इन सबके चूर्ण और उप-' (भाग० ५।२०।२४) ३ सत्तरहवें वापर युगके व्यास ।