पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३१०

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• मेनाङ्कनु ३०७ वर्गमील है तथा यह ६० मोल लम्बी और ५० मील) होता है, कि पालेमवङ्गसे जावा वासियोंने यहां आ कर चौड़ी एक विस्तीर्ण पहाड़ी उपत्यका भूमि पर अवस्थित उपनिवेश वसाया। पीछे उन्हीं के द्वारा यहांकी समृद्धि है। इसके दक्षिणमैं १०७५० फुट ऊंचा तलंग पर्वत तथा और श्रीवृद्धि हुई। ६८०० फुट ऊ'चा सिङ्गालड् और मारपी पर्वत हैं। ____ सङ्गनील उतम, शूरवय, इन्द्रगिरि, इन्द्र, भूमि, आगुङ्ग तलङ्ग और मारपीसे कभी कभी आग निकलती है। और गुणराज आदि संस्कृत-मिश्रित तथा मारपी, उत्तरमें ५००० फुट ऊंची सगो पर्वतमाला देखी रिन्धित्, जम्बि, पालिमवगन, वणु-आसिन, रेजङ्ग, सारवी जाती है। आदि देश वा स्थानवाचक यव (जावा ) शब्द देख कर यह उपत्यकाभूमि बहुत कुछ उर्वरा है। जलका जावावासीका संस्रव अपरिहार्य प्रतीत होता है। फिर अभाव न रहने के कारण कभी भी फसल नहीं मरती। मेनात्रुती स्तम्भगालखोदित शिलालिपिकी भाषामें भी मध्यभागमें १५ मील लंबा और ५ मोल चौड़ा एक यव-संसब देखा जाता है। मछलीसे भरा हुआ तालाव है। इसका तथा समग्र पुर्तगीजोंके अभ्युदयके पहले यहां जो यव-प्रभाव उपत्यकाभूमिका प्राकृतिक दृश्य देखते वनता है। भू. फैला था, वह डिनरोके ग्रन्धप्रमाणसे स्पष्ट मालूम होता तत्त्वकी आलोचना करनेसे मालूम हुआ है, कि यहां है। उन्होंने लिखा है, यहांके अधिवासी बहुत बलिष्ठ स्थान भालकेनिक, प्लुटोनिक और सेडिमेण्टरो-स्तर हैं, उनके शरीरका वर्ण तपाये सोनेके जैसा है, शरीरको • से भरा पड़ा है। भाकृति देखनेसे ही ये लोग शान्त प्रकृतिके मालूम होते इस बहु जनपूर्ण प्राचीन देशका प्रकृत इतिहास आज हैं। जावा-द्वीपके समीप रहते हुए भी दोनों देशवासियों- तक भी मालूम नहीं। फिर यह भी न मालूम, कि की नाकृतिमें जो अन्तर दिखाई देता है, उससे सच- किस समय यहांके अधिवासियोंने इस्लामधर्मको अप, मुच आश्चर्य होता है। इस प्रकार जातिगत विकृति नाया था। रहने पर भी यहां यावाधियत्यका प्रमाण सुमालाबासीके ___De Barros का भ्रमण वृत्तान्त पढ़नेसे जाना जाता जोजो (यवी) शब्दसे ही सूचित होता है । ( Decade 3, है, कि पुर्तगीज लोग सुमाला उपकूलमें आ कर इस देश- Bk 5, Chapt. 1) मलय भाषामें इस यवी शब्दसे के जिन सामन्तराज्योंका उल्लेख्न कर गये हैं उनमें इस देशीय और वैदेशिकके संस्रवोत्पन्न अर्थ समझा प्राचीन समृद्धि राज्यका नाम नहीं मिलता। दूसरे, जाता है। दूसरे राज्य प्रायः मलयसरदारों द्वारा परिचालित होते १८०७ ईमें यहां एक अभिनव और संस्कृत थे। उस समय मेनाबु सोनेको खान और अत्रव्यवसाय इस्लाम धर्ममतकी प्रतिष्ठा हुई। मक्कासे लौटे हुए एक के लिये प्रसिद्ध था। । मलयवासो साधुने उस धर्ममतका पाद्रि वा रिञ्चि नाम ऐतिहासिकॉका अनुमान है, कि यहांके मलय लोग रखा। वह पुर्तगीज धर्मयाजक 'पादरी' के अनुकरण जावा-वासियोंके साथ मिल कर हिन्दूकी धर्मनोति और पर अथवा कोरिश्चि ( Korinchi ) जिलेमें पहले पहल सामाजिक सभ्यताको सोख कर बहुत कुछ उन्नत हो प्रवर्तित होनेके कारण उस शब्दके अपभ्रंश पर कहा गये हैं। आज भी उस संस्रवका परिचय उनको भाषा: जाता है। जो इस नवीन मतमें दीक्षित हुए उनका में जो संस्कृत शब्द मिला है, उसीसे साफ साफ मालुम | मलयवासी द्वारा ओराङपूतिः (श्वेत मनुष्य ) नाम रखा होता है। गया। सफेद कपड़े को छोड़ कर और किसी प्रकारका राजोपाख्यानमें लिखा है, कि पपति-सि वतङ्ग और रंगा हुआ कपड़ा पहनना इस धर्मके विरुद्ध है । रिचिवा कयितुमाङ्ग ङ्ग नामक दो भाइयोंने मेनाङ्कनु राज्यकी धर्माध्यक्षोंने १८२२ ई०के मध्य मेनाबु प्रदेशमें जो स्थापना की। प्रयाङ्गन नगरमें इनको राजवानो थो। धर्मशक्ति और राजशक्ति फैलाई थी उसकी आलोचना सन्ध सुपूर्व नामक मलयका इतिहास पढ़नेसे मालूम करनेसे चमत्कृत होना पड़ता है। इसमें माद वस्तुका