पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३१३

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मेरुशिखरकुमारभूत-मलक माने हुए मस्तकके छः चर्कोले सवसे ऊपरका चक्र।। का नाम गणमेलक है। अलावा इसके मेलकमें राज. इसका स्थान ब्रह्मरन्ध्र, रंग अवर्णनीय और देवता चिन्मय योटक, द्विद्वादश, नवपञ्चम, भरिद्विद्वादश, मितद्विद्वादश, शक्ति है। इसके दलोंकी संख्या १०० और दलोंका मित्रपड़एक, अरिपड़एक आदि विचार कर मेलक स्थिर अक्षर ओंकार है। करना होता है। मेरुशिखरकुमारभूत (सं० पु०) वोधिसत्त्वभेद । द्विद्वादश और नवपञ्चम-वरको राशिसे कन्या- मेरुश्रीगर्भ (सं० पु० ) वोधिसत्त्वसेद । की राशि, द्वितीय होनेसे कन्या दुःखभागिनी, द्वादश मेरुसावर्ण (सं० पु०) ग्यारहवें मनुका नाम । होनेसे धनविशिष्टा और पतिमिया, पञ्चम होनेसे पुन- "ततस्तु मेरुसावर्णा ब्रहास्नुर्मनुः स्मृतः । नाशिनी और नवम होनेले प्रतिप्रिया और पुत्रवती ऋतुध भृतुधामा च विश्वकसेनी मनुस्तथा ॥" होती है। (मनुपु० अ०), अरिद्विद्वादश-धनु और मकर, कुम्भ और मोन, मेप मेरुसुन्दर-भक्तामरकालावरोध नामक जैन-ग्रन्थके। और वृप, मिथुन और कर्कट, सिंह और कन्या, तुला और रचयिता। वृश्चिक, वर और कन्याकी राशि होनेसे अरिद्विद्वादश मेरुसुसम्भव (सं० पु० ) कुम्भाण्डवंशीय राजभेद। होता है। इसम विवाह होनेसे मृत्यु और धनकी हानि मेरे (हिं० सर्व०) १ मेरा' का वहुवचन । २ 'मेरा' का होतो है। वह रूप जो उसे संबंधवान् शब्दके आगे विभक्ति लगानेके मित्रद्विद्वादश-धनु और वृश्चिक, कुम्भ और कारण प्राप्त होता है। । सकर, मेप और मोन, सिंह और कर्कट, मिथुन और मेल (सं० पु०) मिल्-घन्। १ मिलानेको क्रिया या । वृप, तुला और कन्या, वर और कन्याकी राशि होने पर भाव, संयोग। २ पारस्परिक घनिष्ट व्यवहार, मित्रता, मी मितद्विद्वादश होता है। इसमें विवाह होनेसे दोस्ती। ३ एक साथ प्रीतिपूर्वक रहनेका भाव, अन शुभ है। वनका न रहना। ४ अनुकूलता, अनुरूपता । ५ मिश्रण, मित्रपडटक-मकर और मिथुन, कन्या और कुम्भ, मिलावट। ६ ढंग, प्रकार । ७ समता, जोड़। सिंह और मीन, गृप और तुला पृश्चिक और मेलक (सं० पु०) मिल भाव घम् स्वार्थे कन् । १ सहवास, | मप, ककेट और धनु, कन्या और वरकी राशि होनेसे संग: २ मेला। ३ समूह, जमावड़ा। ४ समागम, मिलन । मित्रपड़ष्टक होता है। इसमें विवाह मध्यम माना ५ घर और कन्याको राशि, नक्षत्र आदिका विवाहके लिये | जाता है। किया जानेवाला मिलान । ____ अरिपड़ष्टक-मकर और सिंह, कन्या और मेष, मोन विवाहके पहले चर और कन्याको राशिका मिलान | और तुला, कर्कट और कुम्भ, वृष और धनु, वृश्चिक करना जरूरी है। यदि दोनोंकी राशिमें अच्छी तरह और मिथुन, कन्या और घरको राशि होनेसे अरिपडएक मेल खाय जाय, तो दम्पतिके सुख ऐश्वर्यादिकी वृद्धि | होता है। यदि कन्याके आठवेमें वर और वरके और यदि मेल न खाय, तो कलह, दुःख आदि विविध छठेमें कन्याकी राशि पड़े तो उसे अरिपड़एक कहते प्रकारके अशुभ होते हैं। है । यह भरिपडप्टक अत्यन्त निन्दित है। इसमें विवाह ज्योतिपमें लिखा है, कि पहले आपसकी राशि स्थिर नहीं करना चाहिये। कर गणका निरूपण करे। क्योंकि, अपनी अपनी जाति राजयोटक-वर और कन्याको एक राशि वा में अर्थात् अपने अपने गणमें जो विवाह होता है वही | समसप्तम, चतुर्थदशम अथवा तृतीय एकादश होनेसे शुभदायक है। देवगण और नरगणमें विवाह | राजयोटक होता है। यह राजयोटक मेलक सबसे श्रेष्ठ है। (ज्योतिस्तत्त्व ) मध्यम, देवगण और राक्षसगणमें अधम, नरगण और इस प्रकार मेलक देख कर हिन्दूमात्रको विवाह राक्षसगणमें विवाह होनेसे अशुभ होता है। ऐसे मेलक-