पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३१६

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मेवाड़ ३१३ मेवाटी (फा० स्त्रो०) एक पकवान । इसके अन्दर मेवे । ब्राह्मणीके हाथ सौंप कर ब्राह्मणोचित शिक्षा देने और भरे रहते हैं। राजपूतकन्याके साथ विवाह करनेका हुकुम दिया और मेवाड़-दक्षिण राजपूतानेके अन्तर्गत एक विस्तीर्ण भू- आप सती हो गई। पुरोहितकन्या कमलावती माताको भाग। यह अक्षा०२३३ से २५२८ उ० तथा देशा० तरह उस पुनका लालन पालन करने लगी। गुहामें ७३.१ से ७५ ४६ पू०के मध्य अवस्थित है। इसके जन्म होनेके कारण उसका नाम 'गुह' वा 'गुहिल' रखा उत्तरमें वृटिश-सरकारका अजमेर-मेरवाड़ और शाहपुर; गया । ब्राह्मणके घरमें प्रतिपालित वह राजकुमार धीरे उत्तरपूर्व में जयपुर और बूंदी, पूरवमें कोटा और टोंक, धीरे क्षत्रोचित हिंसादिवृत्तिका पक्षपाती होने लगा। दक्षिणमें मध्यप्रदेश या वम्बई प्रदेशके बहुतसे राज्य | ग्यारहवें वर्ष में यह एक तरह स्वाधीन हो गया, कमला और पश्चिममें अरावलो पहाड़ है। जनसंख्या १५/ वतीके मातहतमें न रहा। लाखके करीव है। यहांके उदयपुर, चित्तोर और कमल- ___ इस समय वन्यप्रदेशमें घूम घूम कर वह राजकुमार मेरु आदि नगरोंमें वीरप्राण राजपूत हिन्दूवोर अप्रति- भीलजातिका प्रेमभाजन हो गया। इदर राज्यके दुर्द्धर्ष हत प्रभावले जो राज्यशासन कर गये हैं, उसे भाटकवि ! भीलसरदार माण्डलिवाने वालकके वीरोचित व्यवहार राजपूताने भरमें अपने गोतके साथ गाया करते हैं। वे पर संतुष्ट हो उसे अपना राज्य तथा अधीनस्थ वीरवन राजपूत राजगण इतिहासमें मेवाड़के राणा नामसे प्रसिद्ध पत्रोंको समर्पण किया। कहते हैं, कि इस समय एक भील हैं। बहुतेरे इस राजपूत वंशमें शकसंसवकी कल्पना ने अपनी अंगुली काट कर उसी रक्तसे गुहके कपालमें करते हैं। जो कुछ हो, राजोपाख्यानमें अयोध्याधिपति राजटीका दिया था। इस इदरराज्यमें गुहके वंशधरोंने सूर्यवंशावतंस रामचन्द्रसे ही इस राजवंशकी वंशलता, ८ पीढ़ी तक राज्य किया। पोछे भीलोंने उद्धत हो कर प्रथित हुई है। राजा नागादित्यको गुप्तभावसं मार डाला। नागादित्य- भाटोंके गोतसे मालूम होता है, कि मेवाड़-राज- का तीन वर्षको छोटा लड़का वप्पा भण्डेरा दुर्गमें लाया वंशके प्रतिष्ठाता राजा कनकसेन लोहकोटका परित्याग गया और यदुवंशीय एक भील-सरदारके अधीन उसका कर द्वारका आये। सौरराष्ट्रभूममें हूणोंसे खदेडे, जानेके : लालन पालन हुआ। बालकके जीवनको विपदसंकुल वाद उनको संज्ञा 'गुहिलोत' हुई। सूर्यवंशोय उपनिवे- देख भील-सरदारने उसे पराशर बनके मध्य नगेन्द्र- शिक राजा कनकसेन पोछे दलवलके साथ उदयपुर नगरमें छिपा रखा। यहीं पर उसका वाल्यजीवन व्यतीत उपत्यकाके आहर नामक स्थानमें आये । इसीसे उक्त हुआ। सम्भदायका 'अहेरिया' नाम हुआ। पीछे उनकी एक शाखा शिशोदा नामक स्थान जीतने वाद शिशोदीय कह. ___ वप्पाका वीरजीवन धीरे धीरे विकशित होने लगा। लाई। उसने अपने प्रतिभावलसे चित्तोर नगरको जीत लिया। . होंने सौराष्ट्रके वाद वलभीपुरको लूटा । उस युद्ध- इस्पाहन, तुरान, इरान, कफ्रिस्तान, इराक, कन्धहार, में केवल चन्द्रावतीपुरोके परमारराजकन्या शिलादित्यकी काश्मीर आदि देशोंको जीत कर वहांकी राजकन्याओंसे स्त्री पुष्पवती ही की जान दची थी। प्रवाद है, कि दैव- विवाह किया। उन सब स्त्रियोंसे जो पुत्र उत्पन्न संयोगसे उस समय वे अपनी जन्मभूमिके अम्बा भवानी हुए उनका नाम नौशेरा अफगान रखा गया। तीर्थदर्शनको गई हुई थी। जव वहांसे लौटी तव उन्हें बप्पाराव देखो। अपने स्वामीको मृत्युका संवाद मिला। अब वे शोक वप्पा चित्तोर-अधिकार, मेवार-शासन और चित्तोर- सन्तप्त हृदयसे पहाड़की गुफामें छिप रही। वे गर्भ त्यागके वाद उस वंशमें यथाक्रम अपराजित, कालभोज, वती थी, वहीं पर उन्हें एक पुत्र उत्पन हुआ। उस खुमान, भत्र्तृ भट्ट, सिंहजो, उल्लन्, नरवाहन, शालिवाहन, पुत्रको उन्होंने वीरनगरनिवासिनो कमलावतो नाम्नी एक | शक्तिकुमार, अम्बाप्रसाद, नरवर्मा, यशोवर्मा आदि गुहि- Vol. XVIi 79