पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३१७

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मेवाड़ लोत राजवंशधरके बाद अपने समाजका नेतृत्व ग्रहण | कर राणा कुम्भ राजसिंहासन पर बैठे थे । इन्होंने मैरता कर वीरताको पराकाष्ठा दिखा गये हैं। की राठोर-राजकन्या मीराबाईने विवाह किया था। बोगदादके खलीफावंशीय वालीद, ओमार, हासम, | मीराका रूप और कृष्णप्रेमकहानी राजपून-इतिहासमें अलमनसूर, हारुण-अलरसीद और अलमामुनके शासन अतुलनीय है। कुम्भ और मीराबाई देखो। कालमें मुसलमान सेनाने भारत जीतनेके लिये प्रस्थान कुम्भके बाद राणा राजमल्ल और पीछे उनके लड़के किया। उन लोगोंकी भेजी हुई सेनाने समुद्रके किनारे । राणा सङ्ग (संग्रामसिंह) ने राजसिंहासन सुशोभित पहुंचते ही चित्तोर-नगरी जीतनेके उद्देशसे मेवाड़राज्य किया। आप मुगल-सम्राट् वावरशाहके साथ युद्ध कर पर आक्रमण कर दिया। गजनीके राजा आलप्तगीन, राजपूतगौरवको अक्षण्ण रख गये हैं। सवुक्तगीन और महमूदके शासनकालमें उनके भारत सड़के वाद यथाक्रम रत्न, विक्रमजित और राणा आक्रमणके प्रतिद्वन्द्वि स्वरूप शक्तिकुमार, नरवर्मा, यशो | उदयसिंहने राज्य किया। उदयसिंह कापुरुष थे। वे वर्मा आदि चोरोंने जन्मग्रहण किया था। मुगल-सम्राटसे अपनी हार कबूल कर चित्तोरको छोड़ ___ इसके बाद समरसिंहके अभ्युदयकालमें राजपूतकुल- उदयपुरमें अपना राजपाट उठा लाये । उदयसिंहको मृत्यु गौरव जग उठा। पीछे इस वंशके कर्ण, राहुप आदि होने पर राजपूत-कुलकेशरी राणा प्रतापसिंहका अभ्युदय वीरोंने चित्तोर पर दखल जमाया। राहुप मन्दोरके। हुआ। राणा प्रतागके असाधारण अध्यवसाय, कष्ट परिहार राजपुत्र राणा मोकलको परास्त कर शिशो | महिष्णुता और राजपूतोचित पोरत्व प्रभाव तथा अक. दिया आये। उन्हें मुसलमान-आततायी शमसुद्दीनके वरशाहके पराभवकी ओर ध्यान देनेसे शरीर सिहर साथ युद्ध करना पड़ा था। कर्ण और राहुपके नाम उठता है। प्रतापसिंह देखो। शिलालिपिमें नहीं है, इस कारण दोनोंके अधिकार-संबंध- प्रतापके बाद धीरे धोरे राजपूत प्रतिभाका अवसान में बहुतेरे विश्वास नहीं करते। होता चला। प्रतापके मरने पर उनके लड़के अमरसिंह लक्ष्मणसिंहके राज्यकालमें पठान-राज अलाउद्दीनने और मेवाड़ के अन्तिम खाधीन राजा राणा कर्ण उदयपुर- चित्तोर पर आक्रमण किया। राजाके चचा राणा भीम के सिंहासन पर अमिषित हुए थे। राणा कर्णके सिंह उनके विरुद्ध युद्ध करके मारे गये और उनकी स्त्री | अन्तिम समयमें मेवाड़प्रदेशमें मुगलसम्राट जहांगीरका पद्मिनी सती हो गई। इस युद्ध में गोरा और बादल प्रभाव फैला। कर्णके बाद जगत्सिंह और पोछे राज- नाम दो राजपूतवीरोंने पठान-सम्राटको नाकोदम कर सिंहने राजपूतजातिको लुप्तकीत्तिका पुनरुद्धार किया। दिया था। इसके बाद अजयसिंह और राणा हम्मीरने ये लोग मुगलको अधोनता स्वीकार करनेको वाध्य हुए चित्तोरको सम्मान रक्षा की थी। हम्मीरके अधीनस्थ | थे। इसके बाद राणा जयसिंह शौर श्य. अमरसिंहक नायक मालदेव के पुत्र वनवीरकी चोरता कहानी राजपूत- शासनकालमें औरङ्गजेबके प्रभावसे राजपूत शक्तिका के इतिहास में प्रसिद्ध है। हास हो गया था। हम्मीरके मरने पर क्षेत्रसिंह मेवाड़ के सिंहासन पर मुगलशक्तिके अवसानके बाद राणा संग्रामसिंह बैठे। उन्होंने अजमेर, जहाजपुर, मण्डलगढ़, छप्पल मेवाड़के सिंहासन पर बैठे। इनके शासनकालमे मार- आदि स्थान फतह किये। उन्हें गुप्तभावसे मार कर वाड़ और अम्बरके साथ संधि हुई। नादिरशाहका लक्षराणा चित्तोरके सिंहासन पर अभिषिक्त हुए। दिल्लो लूटना और महाराष्ट्र सेनाका मालव और गुर्जर- लक्षराणाके वाद चण्डके खार्थ त्याग करने पर बालक आक्रमण इन्होंके समय हुआ। मालवमे चौथा संग्रहके मोकलजी सिंहासन पर बैठे। किन्तु इस समय राठोर- बाद बाजीराव मेवाड़ जीतनेको अग्रसर हुए। राणाने राजकर दे कर उनसे पिंड छुड़ाया। की प्रतिपत्ति बढती देख चएडने बड़ी बीरतासे चित्तोरके राठोरप्रभावका दमन किया। मोकलजीका काम तमाम इसके बाद वे अपने भांजे मधुसिंहके अम्बर सिंहा-