पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३१९

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३१६ मेवाड़ शाली राजवंशका कोर्तिकलाप भी उन्हीं शब्दोंमें मिलेगा।। उत्सव, अशोकाष्टमीव्रत, रामजन्मोत्सव, दशहरा, मदन अलावा इसके पार्श्ववत्ती मारवाड़, अम्बर आदि राज्य- त्रयोदशो आदि उत्सव मनाये जाते हैं। प्रसङ्गम भो मेवाड़का भानुषङ्गिक इतिवृत्त और गौगो- वैशाखमें नकाड़ा-का आशयरी, छोटी गङ्गागौरी, चान्द्र लिक संस्थान दिया गया है। वैशाख चतुर्दशोमें सावित्रीव्रत, जेठ, आरण्यषष्ठी, मेवाड़के राणा और राजपूत क्षत्रिय कहलाये जाने ? आपादमें रथयात्रा ; सावनमें नोज, नागपञ्चमी और पर भो वे लोग हिन्दूशक सस्रवसे उत्पन्न हुए हैं, ऐसी | राखी ; भादोमे जन्माष्टमी ; आश्विनमें आयुधशालासे कर्नेल टाड आदि ऐतिहासिकोंको धारणा है। बहुत । खड़ग निकाल कर उसकी पूजा, भिखारोनाथ और माता- पहले हीसे उत्तरभारतमें शक आदि चैदेशिक जातियोंका वलसन्दर्शन, दशहरा, रामलीला आदि उत्सव ; कातिक- समागम होनेके कारण इस प्रकार एक संस्त्रव होना . में अकोट, भूलनयात्रा और मकरसंक्रान्तिका उत्सव असम्भव प्रतीत नहीं होता। राजपूत देखो। होते देखा जाता है। अगहन में भाष्करसप्तमो और गङ्गा- ___जो कुछ हो, राजपूत लोग कट्टर हिन्दू हैं। हिन्दू का जन्मोत्सव होता है। पृसके महीने में किसी प्रकारका पद्धतिके अनुसार ही वे क्रिया कलापका अनुष्ठान करते पोत्सव नहीं होता। हैं। शक राजाओंने जब पंजावप्रदेश में अपना आधिपत्य ऊपर कहे गये मासानुक्रमिक उत्सवोंमे स्वयं राणासे फैलाया था उस समय पड़ोसी राजपूत जातिन भी भिन्न ले कर साधारण प्रजा सभी शामिल होते हैं। विस्तार हो देशीय राजकुलकी कुछ पद्धियोंका अनुकरण किया होगा, ; जानकं भयसे उन सब उत्सवोंका आनुपूर्विक विवरण ऐसी आशा नहीं की जाती। नहीं दिया गया। हिन्दूशास्त्रको रोति के अनुसार वे सब मेवाड. राजगण जिन सव उत्सवोंका अनुष्ठान उत्सव किये जाने पर भी उनमें राजपूतजातिका कुछ करते हैं, वे शक जातिसे लिये गये हैं ऐसा बहुतों- लौकिक आचार भी घुस गया है। का विश्वास है। माघको श्रीपञ्चमी वा वासन्ती. पञ्चमी उत्सवके दो दिन बाद भान्सप्तमो वा __मेवाड़मे शैव, शाक्त और वैष्णव धर्मकी प्रधानता भाष्करसप्तमी, किसी राजकुमारके राज्याभिषेक । देखी जाती है। मेवार-राजमहिषी धर्म परायणा मीरा- वाद सूर्यमूत्तिको रथ पर रख कर यह रथयात्रा उत्सव | बाईका उन्मादकर कृष्णकीर्तन-प्रवाह एक समय सारे मनाया जाता है। यह भी प्राचीन शकजातके मध्य ! राजपूतानेमे बह गया था। व्रजके दुलाल श्रीकृष्णचन्द्र प्रचलित था। फागुनमे अहेरिया, शिवरात्र और हाली । मेवाड़में सभी जगह पूजित होते हैं। देवपूजामे राज- पर्व । अहेरिया और होलीपर्वको भी कोई कोई आदि ! पूतोंकी अटल भक्ति है। पूजा वा उत्सबके समय ये शक जातिका उत्सव बतलाते हैं। लोग दत्तचित्तसे देवताको पूजा करते और उन्हें बलि चढ़ाते हैं । राजपूत रमणियोंकी सतीत्व-कीर्ति इतिहास- ___ चैत महीनेके आरम्भमे ही सम्वत्सर। अर्थात् मे चिरस्मरणीय है। भीमसिंहकी.स्त्री पद्मिनीको सतीत्व. राणाका वार्पिक पितृश्राद्ध होता है। राजप्रासादमे और कहानी चांद कविको सुधामयी कवितासे आज भी सारे महासती नामक समाधि-मन्दिरमे वड़ो धूमधामके साथ भारतवासीके कण्ठसे प्रतिध्वनित होतो है। पठान या यह उत्पन्न होता है । चैत सप्तमीमें शीतलादेवीकी पूजा होती है। ये शीतला प्रोक वा फ्रिजियन और रोभकों- मुगल राजाओंके साथ युद्ध में पराजय होनेके वाद असंख्य की साइविल-देवीकी तरह सन्तान सन्ततिको रक्षा: हिन्दूवीर रमणियां आत्मरक्षाके लिये चितारोहण कर करनेवाली मानी जाती हैं। चैत्र शुक्लपक्षमें वासन्ती सतीत्वका उज्ज्वल दृष्टान्त दिखा गई है। इस राज्यमें कुल मिला कर ८३५६ प्राम और १७ पूजा वा नवरात और उसके बाद गौरी पूजाके उपलक्ष- में पुष्पमेला लगता है। यह मेला बहुत कुछ रोमकी | शहर लगते हैं। जनसंख्या १५ लाखके करीब है। अधि- Cerealia के जैसा है। इसके बाद गोरे वा गङ्गा गौरी । वासियोंमे मैर, मीना, कोली वा भीलगण प्रधान है। ये