पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

• परातत्त्व (पाश्चात्य) है। पीछे हिकेतस ( २८७-२७६ ख० पू० ) तथा एपि- कर वाह फैलाती हुई पालकी तरह खड़ी है। हंस रसके राजा परिहास (२७८-२७६ ख० पू० ) के शासन | धीमी चालसे नदीमें तैर रहा है। शिल्पीको कारीगरी कालमें भी बहुत कुछ परिवर्तन हुआ। अलेकसन्दरके अतुलनीय है। गेला नगरोकी मुद्रा पर मनुष्य शिरष्क भारतवर्षसे स्वदेश लौटने पर मोहरोंमें प्राच्य प्रभावका | सश्टङ्ग वृपमूर्ति और दूसरे भागमें आपलो तथा विजय- विस्तार हुआ। जातीय देवताके वदलेमें परिहासने शकटकी प्रतिकृति है। किसी किसी मुद्रा में नरशिरक मोहर और रुपयेमें अपनी मूर्ति अङ्कित की। प्राच्य- वृपके चारों ओर तीन मछलोकी मूर्ति है। दूसरे प्रथानुयायो परिहासने एक भागमें अपनी मूर्ति और | भागमें घोड़े को गाड़ीमें पुष्पमाला हाथमें लिये नाइस- दसरे भागमें अपनी रानी फिलिस्तिसको अनुपम लावण्य देवी दण्डायमान है । हिमेराकी मुद्राए' ख०पू० प्रतिमूर्तिको चित्रित किया। ६ठी शताब्दीके पहलेफी है । उसको एक पीठ सिसलीको अन्यान्य मोहरों में अधिष्ठात्री देवी सिसि. पर मुर्गा और दूसरी पीठ पर एक सुन्दरी लियाका चन्द्रमाके समान मुखमण्डल उल्लेखयोग्य है। अप्सरामूर्ति अङ्कित है। एक ओर झरना वह रहा है किसो किसी में पटना अथवा केटनाको प्रतिमूर्ति है और और दूसरी ओर सिंहके मुखसे जलधारा वह रही हैं। दूसरे भागमें आग्नेय-पर्वताधिष्ठाता देव साइलेनस और किसी मुद्राके एक भागमें आपलो और दूसरे भागमें वज्रपाणि जियसको मूर्ति शोभती है। एग्रिजेएटम नगर । विजयशकटके नीचे सिंहकी प्रतिकृति है। को मुद्रा कार्थेजियों के अधिकार तक प्राचीन प्रथासे बनाई। पानमस नगरकी मुद्राएं बहुत सुन्दर है। इसमें बहुत गई। इन सब मुद्राओंमें ईग्ल पक्षो और सीप अङ्किन कुछ मिस्रका प्रभाव देखा जाता है। सेजेष्टा नगरीकी मुद्रा- है। किसी किसीमें ईगलपक्षी अपनी चोंच फैला कर के एक भागमें नगराधिष्ठात्री सेजेष्टा तथा दूसरे भागमें • एक शशकको निगलने पर प्रस्तुत है। दूसरे भागमें | एक शिकारी कुत्ते की मूर्ति देखी जाती है। किसी मुद्रा- विजयशकटका चित्र चितित है। फिर किसी | के सम्मुख भागमें पार्सिफोन सारथीके वेशमें तथा किसीमें स्वदेशीय नदीके अधिष्ठात्री देवता अग्रागासकी पश्चाद्भागमें दो कुत्तोंके साथ एक शिकारीका चित्र है। मूर्ति और दूसरे भागमें ईगलपक्षी है । पिण्डार, भर्जिल, | ___ कार्थेजियोंने प्रधानतः अफ्रिका, सिसली और स्पेन प्रेमियस आदि सुप्रसिद्ध कवियों ने इस विषयको अच्छी इन तीनों स्थानोंमें मुद्रा प्रस्तुत की थी। कार्थेजीय मुद्राके तरह प्रमाणित किया है। एक भागमें तालवृक्ष और दूसरे भागमें अश्वमुण्ड है। कामारिणा नगरको मुद्रा शिल्प-सौन्दर्या के लिये बहुत मिस्री और ग्रीक मुद्राशिल्पके मेलसे बहुत-सी मुद्रायें प्रसिद्ध है । पिण्डारको ओलिम्पिक कवितावलोकी अङ्कित हैं। सिसलोके पान्तिकेपियम नगरको मुद्राके ५वों कवितामें इसका यथेष्ट प्रमाण मिलता है । इन |. एक भागमें पान ( Pan ) देवताका मस्तक तथा दूसरे सव मोहरों के एक भागमें वर्मके ऊपर रखा हुआ मुकुट भागमें इंग्लपक्षीको मस्तकयुक्त सिंहकी आकृति है। भूपण और दूसरे भागमें दो पदताण तथा उसके धीचमें मिसिया नगरको मुद्राके सम्मुख भागमें नरमुण्ड हस्ततलकी छोटी प्रतिकृति है। किसीमें सिंहचर्मावृत | और पश्चाद्भागमें मछली खाने पर तैयार ईगलपक्षी है। हिराक्लिसकी और दूसरी तरफ विजयो अश्वारोहीको | थेस नगरमें ईसाजन्मसे पहले ५वीं शताब्दीकी बहुत-सी प्रतिमूर्ति है। जलदेवताको दो सींगवाले एक युवकको मुद्रायें पाई जाती हैं। इन सब मोहरों में पारसिक मुद्रा- तरह अङ्कित किया गया है। उनके वालों से जल टपक | शिल्पका प्रभाव दिखाई देता है। थे सकी अधिकांश मोहर रहा है। प्रवारिणी हिपारिस स्वाभाविक शोभामें माकिदनको तरह है। फिनिकीय शिल्पका अनुकरण कई चितित है। मुद्राके दूसरे भाग पर बड़े बड़े पंखवाले | जगह देखा जाता है। बहुत-सी मुहरों और रुपयोंये हार्मिस कलहसकी पीठ पर चढ़ कामारिणा देवी तरङ्गसंकुला ( Hermes )का विराटवदन तथा दूसरे भागमे ईगल- हिपारिस पार कर रही हैं । कामारिणा घूघटको अलग | सी मुंहवाली सिहमूर्ति हैं। किन्तु प्रायः सभी मुद्राओंके Vol, XVIII,8