पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३२२

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सञ्चारभूमि, गुहा पर्गत और चोर लोगोंको वासभूमि, खनाका वचन है, कि मेषमें यदि सूर्य रहें तो घर अग्नि, धातु और रत्नकी खान समझी जाती है। सोने चांदीसे भर जाय। मेषको जैसी आकृतिके कारण इस राशिका नाम | मेषस्थ रवि चन्द्रमासे दृष्ट हों तो मनुष्य दानरत, मेष हुआ है। इसकी अधिष्ठात्री देवीका आकार बहुभृत्ययुक्त, युवतीप्रिय तथा कोमलशरीर होता है । मेषके जैसा है। राशिगणको ओज, युग्म, विषम मंगलसे द्रष्ट हों तो, संग्राममें अत्यन्त वीर्यसम्पन्न, कर, आदि संज्ञा है उनमें इस राशिको संज्ञा ओजराशि है। रक्तचक्ष और केशवाला, तेज और वलयुक्त होता है। इसका विशेष नाम क्रिय है। यह चरराशि है। मेष- बुधसे देखे जाय, तो भृत्यका काम करनेवाला, अन्यधन, राशिमें सूर्यका उच्चस्थान रहता है अर्थात् मेषमें सूर्य रहे। सत्रहीन, बहुदुःखयुक्त और मलिनदेह ; वृहस्पतिसे देखे तो अत्यन्त वलवान होते हैं। वैशाखका महीना हो । जाय तो विपुलधनी, दाता, राजमन्त्री या दण्डनायक; मेषराशिका भाग्यकाल है। मेष रविका उच्चस्थान है। शुक्रके देखने पर कुत्सित स्त्रीका पति, अनेक शलवाला, लेकिन उच्चांशका भोगत्ताल थोड़ा है। मेपके केवल । बन्धुहोन, दोन और कुष्ठरोगो ; शनिके देखनेसे १० दिन अर्थात् १ वैशाखसे १० वैशाख तक दुःखभागी, कार्यमें उत्साहो, जड़बुद्धि और मूर्ख उच्चांश भोगनेका समय है, उसके बाद सूरयंके ! होता है। उच्चस्थानमें रहने पर भी वे उयांशच्युत हो जाती हैं। । भेषराशिमें चन्द्र रहे, तो मनुष्य सेवाकर्मकारी इस उच्चांशमें भी फिर सूच्चांश अर्थात् उत्तम उच्चांश ' स्थिरधनयुक्त, भ्रातृहोन, साहसी, कामुक, कुनखी; चंचल, भोगनेका समय है और वह एक दिन है। मेष जैसे । सूर्यका उच्चस्थान है वैसे ही यह शनिका नीचस्थान है। . सम्मानित, अनेक पुत्रोंसे युक्त, जलभीरु और स्त्रैण होता है। ये मेषस्थ चन्द्र सूर्य से दूष्ट हों, तो अतिशय शनि इस राशिमें रहे तो दुर्बल हो जाता है। मेषका । "। उग्रकर्मकर, धनो, आश्रितपालक, वीर और संग्रामरुचि शनि बडामनिष्टकर होता है। मेषराशि मंगलका मूल त्रिकोण तथा स्वगृह है। है। होता है। मंगल देखे, तो नेत्र और दांतरोगयुक्त, अति- | शय तापित, मंडलाध्यक्ष और वहुमूत्ररोगपीड़ित: बुध देखे मंगल मेषराशिमें रहे नो मध्यवली होता है। यह राशि तो नाना विद्यासम्पन्न आचार्य, सद्वक्ता, साधुओंसे ६ भार्गोंमें विभक्त की जा सकती है उसे पड़वर्ग कहते सम्मानित, सत्कवि और विपुल कोर्तिमान् ; बृहस्पति है। क्षेत्र, होरा, देककाण, नवांश, द्वादशांग और विंशांश ये ही षड्वर्ग हैं। प्रत्येक राशिको बड़वर्ग देखे तो वहुधन, भृत्य और समृद्धिसम्पन्न, राजमन्त्री करके प्रहगण किस वर्गमें किस प्रकार हैं यह स्थिर करना या राजा : शुक्र देखे तो श्रेष्ठयुवतीयुक्त और विलासी तथा शनिके देखने पर विद्वेष्टा, वहुदुःखभोगो, दरिद्र, होता है। मेषराशिमें जन्म होनेसे मनुष्य विमलकेशयुक्त, मलिन देइविशिष्ट और मिथ्यावादी होता है। चञ्चल, त्यागशील, दीप्तिविशिष्ट, शुचि, विलासप्रिय, मेषमें मंगल रहे तो तेजस्वी, सत्ययुक्त, शूप क्षिति- अतिशय वक्ता. दान्त. ग्रहवासहोन, कर, अल्पलोचन, पति या रणप्रिय, साहस कर्माभिरत, उग्रस्वभाद, तथा वीर अल्पमेधा, धनपति और दाता होता है। अनेक पत्नी और पुत्रयुक्त होता है। इस मंगलको मेषराशिमें रवि आदि ग्रह रहे तो मनुष्य शास्त्रोक्त | यदि सूर्य देखे, तो राजा और उदार, मातृरहित, क्षतांग, उचित काँका करनेवाला, दुष्टप्रिय, क्रोधी, उद्योगी, स्वजनद्वषी और मित्रहोन ; चन्द्रमा देखे तो ईर्षायुक्त, रमणेच्छु, कृपण और श्रेष्ठ क्रिया करनेवाला होता है। परधनापहारी और देवभक ; बुध देखे तो द्वेष्टा और यह रवि यदि अपने तुगांशमें रहे तो वह साहसकर्मरत, वेश्यापति ; बृहस्पति देखे तो अतिशय गुणवान्, प्रभु रक्तपित्त व्याधियुक्त, कान्ति और सत्त्व-सम्पन्न तथा और धनवान् ; शुक्र देखें तो स्त्रोके लिये बन्धनभोगी, मानवश्रेष्ठ होता है। | मित्रहीन तथा वीच बीचमें स्त्रीके लिये धनक्षय और