पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३२७

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.३२४ मेषक-पेपी हिमालयके उच्चशिखर पर बङ्गदेशीय मेष ले जानेसे | मेषश्यङ्गी (सं० स्त्री० ) मेषश्टङ्ग गौरादित्वात् डोष । अज- उसका ऊन शालके लायक नहीं रह जाता| शृङ्गो वृक्ष, मेढ़ासिंगी। पर्याय-नन्दीवृक्ष, मेषत्रिपाणिका, और शाललोमका बकरा अगर हुगली जिलेमें ला| चक्ष, चक्षुर्गहन, मेदश्टङ्गो, गृहद् मा। इसका गुण- कर रखा जाय, तो वह अश्व-कम्वलोपयोगी लोम | तिक्त, वातवद्धक, श्वास और कासवर्द्धक, पाकमें रुक्ष, नहीं देगा। गम देशके अच्छे मेषोंमें भी अधिक कोमल कटु, तिक्त, व्रण, श्लेष्मा और अक्षिशूल-नाशक । इसके लोम होता है। मेष जातिके मध्य मरिणो सबसे अच्छा फलका गुण-तिक्त, कुष्ठ, मेह और कफनाशक, दीपन, है। उसके कोमल लोमसे मरिणो नामक प्रसिद्ध कास, कृमि, व्रण और विषनाशक। वस्त्र प्रस्तुत होता है। मेषसंक्रान्ति (सं० स्त्री०) मेष राशि पर सूर्याके आनेका मेषक (सं० पु० ) मिषतीति मिष-अच, संज्ञायां कन् । १ योग वा फल। इस दिन हिन्दू लोग सूत दान करते हैं जीवशाक, सुसना। २ मेढ़ा। ३ नैगमेषग्रह। इससे इसे 'सतुआ संक्रान्ति' भी कहते हैं । मेषकम्बल (सं० पु० ) मेषलोमनिर्मितः कम्बलः मध्य- | मेषहृत् ( स० पुरु) गरुड़के एक पुत्रका नाम । . पदलोपि कर्मधा । मेषलोमनिर्मित वस्त्र, भेड़े के ऊनसे मेषा (स स्त्री० ) मिष्यतेऽसौ मिष कर्मणि घञ्-टाप । बनाया हुआ कपड़ा। पर्याय-ऊर्णायू । १ त्रुटि, गुजराती इलायची। २ चमड़े का एक भेद जो मेषकुसुम (सं० पु०) चक्रमद, चकवंड नामक पौधा। लाल भेडको खालसे बनता है। (वैद्यनि० ) | मेषाक्षिकुसुम (स पु०) मेषाणां अक्षिवत् कुसुमान्यस्य । मेषपाल (सं० पु० ) मेषपालक, गड़रिया। चक्रमद, चकवंड। मेषपुष्पा (सं० स्त्री० ) मेषश्ङ्गी, मेढ़ासिंगी। मेषाख्य (संपु०) वालग्रहविशेष, नैगमेषग्रह । मेषमांस (सं० क्ली०) मेषस्य मांसं। मेषका मांस. भेड- मेषाण्ड ( स० पु०) मेषस्य अण्डमिव अण्डमस्य । इन्द्र । - मेषान्त्री (सं० स्त्री०) मेषस्य अन्तमिव अन्त्र सूक्ष्मत्व- का मांस। इसका गुण-हण, पित्त और श्लेष्मकर मस्याः। १ वस्तान्त्री वृक्ष । २ अजान्त्री लतो।। तथा गुरुपाक माना गया है। | मेषालु (स'० पु० ) मेषाप्रियं आलुः। वनरावृक्ष, वन- मेषलोचन (सं० पु० ) मेषस्य लोचनमिव पुष्पमस्य। १ | तुलसी। . . चक्रमर्द, चकवंड। (त्रि०) २ वह जिसकी आंखें भेड़-: | मेषाय (सं० पु०) मेषस्य आह्वयः आह्वास्य । चक्रमर्द, सी हों। चकवंड। .. . . मेषवल्ली (सं० स्त्री०) मेषप्रिया वल्लो। अजश्ङ्गी, मेढ़ा- षिका (सं.स्त्री०.). मेषो-खार्थे कन् टाप हस्खः । मेपो, सिंगी। भेडी।। . . . . . मेषवाहिन् (सं० त्रि०) १.मेषारोही, भेड़ पर चढ़नेवाला। मेषी ( स० स्रो०) मिष्यते गृह्यतेऽसौ इति विष-घञ् स्त्रियां ङीष् । २ स्कन्दानुचर मातृभेद । ङीप । १ तिनिशवृक्ष, सीसमको जातिका एक पेड़ ।२ मेषविषाणिका (सं०. स्त्री०) मेषस्य विषाणं शृङ्गमिव जटामांसी । ३ मेष स्त्रीजाति, भेड़ी। पर्याय-जालकिनी, प्रतिकृतिरस्याः, विषाण-प्रतिकृतौ कन टापि अत इत्वं । अवि, एड़का, मेषिका, कररी, रुजा, अविला, वेणी। मेषशृङ्गी, मेढासिंगो। इसके दूधका गुण-मधुर, गाढ़ा, स्निग्ध, कफापह, मेषङ्ग (सं० पु०) मेषस्य शृङ्गमिव तदाकृतित्वात्। १ वातवृद्धि तथा स्थौल्यकारक । (राजनि० ) दधिका गुण- सुस्निग्ध, कफपित्त कर, गुरु, वात और वातरक्तमें पथ्य, स्थावर विषभेद, सिगिया नामक स्थावर विष । शोफ और वणनाशक 1. मह का गुण-क्लिष्टगन्ध, ___"मेषशृङ्गस्य पुष्पाणि शिरीषधवयोरपि ।" ( सुश्रुत उ० १७ अ०). शीतल, मेधाहर, पुष्टिज़, स्थौल्यकर, मन्दाग्निदीपन, सारक पाकमें शीतल, लघु, योनिशूल, कफ और वातरोगमें बड़ा (क्ली०) २ भेड़ का सींग।