पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३२८

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मेसूरण-मेहकुलान्तकरस ३२५ हितकर। घोका गुण-वृद्धिनाशक, वलावह, शरीरक, नगरके वाहर एक टूटा फूटा मकान देखा जाता है। विनगन्धिकारक। यह धी अतिशय गुरु होता है इस लोगोंका कहना है, कि वह प्रायः २ हजार वर्ष पहले लिये सुकुमार शरीरवालोंको इसका वर्जन करना हेमाडपन्थी द्वारा बनाया गया था। १७६० ई०में रघु. चाहिये । ( राजनि० ) मांसका गुण वातनाशक, दोएन. रावके विद्रोहमें मदद पहुंचानेवाले नानपुरके भोंसले सर- कफ-पित्तवर्द्धक, पाकमें मधुर, वृहण और वलवद्धक । दारोंको दण्ड देनेके लिये पेशवा बाजीरावने सिन्धेराज (भावप्र.) और निजाम-मन्त्री रुकनउद्दौलाके साथ यहां छावनी मेसूरण (सं० क्लो०) फलितज्योतिषमें दशम लग्न जो डाली। १८७१ ई०में देवगावकी संधि तोड़ देनेके कारण कर्म-स्थान कहो जाता है। नागपुरपति अप्पा साहव भोंसलेको दण्ड, देनेके लिये मेहंदी ( हि स्त्री० ) पत्तो भाड़नेवाली एक झाड़ी। यह अंगरेज सेनापति जेनरल डवटन यहां छावनी डालनेको वलोचिस्तानके अंगलोंमें आपसे आप होती है और सारे वाध्य हुए। हिन्दुस्तानमें लगाई जाती है । इसमें मजरोके रूपमें | यहांके हिन्दू और मुसलमान तांती अपने अपने व्यव- सफेद फूल लगते हैं जिनमें भीनी भीनी सुगंध होतो है।। सायसे वहुत उन्नत हो गये थे। मुसलमान तांतियोंने गत फल गोलमिर्चको तरहके होते हैं और गुच्छोंमें लगते हैं। ४ सदोके भीतर ऐसा धन कमाया, कि पिडारियोंके इसकी पत्तीको पीस कर चढ़ानेसे लाल रंग आता है। अत्याचारसे आत्मरक्षा करनेके लिये अपने अपने खर्चसे इसोसे स्त्रियां इसे हाथ पैर में लगाती हैं । वगीचे आदिके नगरके बाहरकी टूटी फूटो दीवारकी फिरसे मरम्मत कर किनारे भी लोग शोभाके लिये एक पंक्तिमें इसकी टट्टी लगाते हैं। नगरको सुदृढ़ कर लिया। मोमिनके प्रवेशद्वार में जो मेह (सं० पु०) महति क्षरति शुक्रादिरनेनेति, मिह-घम् ।। शिलालिपि उत्कीर्ण है उसमें यह बात स्पष्ट लिखी है। १ प्रमेह रोग। विशेष विवरण प्रमेह शब्दमें देखो। । पिण्डारी डकैतोंके अत्याचार और उपद्रवसे नगर धीरे मेहतीति मिह-अच् । २ मेष, भेड़ा। ३ प्रस्ताव, मूत। घोरे श्रोहीन हो गया। १८०३ ई में दुर्भिक्ष और महा- अग्नि, सूर्य, चन्द्र, जल, ब्राह्मण, गो और वायु इनके मारोसे जनशून्य नगर दुर्दशाकी चरम सीमा पर पहुंच सामने पेशाव नहीं करना चाहिये, करनेसे प्रज्ञा नष्ट गया। अभी भी यहांके तांतो अच्छी अच्छो धोती होती है। तैयार कर पैत्रिक वाणिज्य-गरिमाको अक्षुण्ण रखे हुए "प्रत्यनि प्रति सर्यञ्च प्रति सोमोदकद्विजान् । हैं। किन्तु मैनचेष्टरके बने कपड़े कम मोलमें विकनेके प्रति गां प्रति बातञ्च प्रज्ञा नश्यति मेहतः ॥" (मनु ४१५२) कारण देशी महंगे कपड़े का आदर दिनों-दिन घटता जा मेह (हिं० पु० ) १ मेघ, वादल ।२ वां, मेंह । रहा है। . मेहकर-१ वरारराज्यके वुलदाना जिलान्तर्गत एक तालुक। यह अक्षा० १९५२ से २०' २५ उ० तथा देशा ७६२ मेहकुलान्तकरस (सं० पु०) प्रमेहरोगका एक औषध । से ७६ ५२ पू०के मध्य अवस्थित है । भूपरिमाण १००८ प्रस्तुत प्रणाली-रांगा, अवरख, पारा, गंधक, चिरायता, वर्गमील और जनसंख्या लाखसे ऊपर है ।. इसमें मेहकुर पिपरामूल, त्रिकटु, त्रिफला, निसोथ, रसाञ्जन, विडङ्गा नामक १ शहर और ३१३ ग्राम लगते हैं। मोथा, वेलसोंठ, गोखरूका वीया, अनारका बोया, प्रत्येक २ उक्त तालुकका प्रधान नगर। यह अक्षा० २० एक तोला, शिलाजित १ पल, इन सब वस्तुओंको वन- १०3० तथा देशा० ८६ ३७ पू०के मध्य अवस्थित है। ककड़ीके रसमें घोंट कर एक रत्तीको गोलो वनावे। जनसंख्या ५३३० है। प्रवाद है, कि यहां मेघकर नामक अनुपान वकरीका दूध, जल, आंवलेका रस वा कुलथी- एक राक्षस रहता था। विष्णुने शाइधर मूर्ति धारण | का क्वाथ, है। इसका सेवन करनेसे २० प्रकारका कर उसका विनाश किया। उसी मेधकरके नामसे इस प्रमेह, मूत्रकृच्छ, पाण्डुरोग आरोग्य होता है । स्थानका मेहकर नाम हुआ है। (मेषन्यरत्ना०) Vol, xvil 82