पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३३

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मुद्रातत्त्व (पाश्चात्य) पश्चाद्भाग; एक एक वकरेका वचा अङ्कित देखा। है। एकन्थस नगरकी मुद्राए' फिनिकीय आदर्श पर जाता है। वाइजण्टियमकी मुद्रामें डलफिन मछलीके | बनी है और उसको कारोगरी देखने लायक हैं। सम्मुख ऊपर वृष मूर्ति है । दूसरे भागमें चतुष्कोण सुन्दर | भागमें एक वैल पर चढ़ाई करनेके लिये उद्यत भयङ्कर शिल्पचातुर्यायुक्त सरोवर है। किसीमें फिनिकीय ढंग | सिंहकी प्रतिमूर्ति है। चित्रकारने उसमें अपनी अनुपम पर अश्वमुण्ड और दोखका खेत देखा जाता है। किसीमें | निपुणता दिखलाई है। इनाइया नगरकी मोहर और आइभीलतासे अलंकृत मूंछ-दाढ़ीरहित दियोनिसियस रुपयेमें वीर इनियसका मस्तक अङ्कित है। इनियस की मूर्ति है। पटालस और पेरिन्थस नगरकी मुद्राको | | द्रेय नगरीसे आनकाइसको ढोते आ रहे है तथा पश्चा- वनावट अतुलनीय है। इस श्रेणीके मध्य आन्तोनियस भागमें क्रिउसा आस्कानियसको कंधे पर लिये आ रहा है। पायस, सेभारस और काराकला आदि रोमक-सम्राटों- ये सव मुद्राए ५०० वर्ष ई०सन पहलेको वनी हैं। इनका का कीर्तिकलाप स्पष्टभावसे चित्रित है। प्रथम शिल्पनैपुण्य अद्भुत है। वार्लिन म्युजियममें ये सव न्युथिसके शासकाल (ख० पू० ४२४ )में जो सव; मुद्रा रखी हुई हैं। आस्फिपालिम नगरकी मुद्रामें फिनि- मुद्राएं ढाली गई थीं उनमें वहुत-सी लिपियां उत्कीर्ण कीय प्रभाव दिखाई देता है। एक भागमें आपलोको देखी जाती हैं। इन लिपियों में एशियाखण्डको शैविली प्रतिमूर्ति और दूसरे भागमें भीषणाकृति नारीमूर्ति हैं। पूजाका निदर्शन पाया जाता है। शिल्पनैपुण्यमें ये : दृटिश म्युजियममें ये सव मुद्राएं रक्षित हैं। किसी मुद्राए श्रेष्ठ स्थान पानेके योग्य है। पारसिक शिल्प- किसोमें चौकोन खेतमें जलते हुए मशालका चित्र है। के अनुकरण पर एक केएटर अर्थात् अद्ध पुरुष और "कालकिदीय लोग" द्वारा ३८० ख० पू०में ओलि. अई अश्वपृष्ठ पर एक लावण्यमयो ललना खड़ी है। न्थस नगरके टकसाल-घर में जो रुपये और मोहर ढाली परवत्ती फिनिकोय भारयुक्त मुद्रामें दियोनिसिका । गई थी उनमें हूबहू फिनिकीय शिल्पका अनुकरण देखा मस्तक देखा जाता है । दियोनिसियसके घुघराले । जाता है। सम्मुखमें आपलोको शान्तिमूर्ति और पश्चा- वालों को देखनेसे विस्मित होना पड़ता है। दूसरे भाग-। द्भागमें उनकी वंशीका चित्र है। लिट नगरकी मुद्राए' में घुटना टेके हुए धनुपमें तीर चढ़ाए हिराक्लिसकी। अत्यन्त चित्ताकर्षक है। सामनेमें उपदेवता साटीर एक मूर्ति है। इन सब मुद्राओं को निर्माणकाल ३५६ २८६ । युवतीके साथ बैठे हुए हैं और पीछेमें ज्यामितिक कौशल- ख० पू० वताया जाता है। शिल्पनैपुण्य और सौन्दर्य में | सम्पन्न एक भूलभुलैया है। किसीमें गदहेकी पीठ पर ये सब अद्वितीय हैं। इस समयकी सोने, चांदी और बैठा हुआ शरावका वोतल हाथमें लिये साइलनसको पीतल तीनों प्रकारको मुद्रा पाई जाती है। मूर्ति अङ्कित है। दूसरे भागमें सुपक्क दाखोंसे सुशो- माकिदन-प्रदेशको प्राचीन नागरिक और परवत्ती मित खेत है । न्युपोलिसको मुद्राके एक भागमें गर्गनका कालकी राजकीय मुद्राएं ऐतिहासिक रहस्यसे पूर्ण हैं। मस्तक और एक ज्यामितिक खेत है तथा दूसरे भागने वैसव मुद्रा ख० पू० ६ठो सदीके आरम्भकी बनी हुई हैं।| ओलिभपल्लवसे अलंकृत नाइसदेवोकी सुरम्य मूर्ति है । पहले चांदी और पीतलकी मुद्राका, पीछे खु० पू० ४थी आरिटटलको जन्मभूमि अर्थागोरिया नगरीको मोहर और शताब्दीमें मोहरका प्रचार हुआ। ये सव मुद्राएं बहुत रुपये देखनेमें बहुत सुन्दर हैं। फिलिपके रुपये और कुछ थेससे मिलती जुलती हैं। रुपयेमें फिनिकिया मोहरमें सिंहचर्मावृत मूर्ति तथा दूसरी तरफ एक और वाविलनका विशेष प्रभाव दिखाई देता है। अलेक- | त्रिपदासन है। पीतलकी मुद्रा पर गदहेकी मूर्ति सन्दरके शासनकालकी सुरम्य मोहर देखनेसे मुग्ध अङ्कित है। होना पड़ता है। द्वितीय फिलिपने सबसे पहले मोहर ___इसके बाद राजमूर्तियुक्त रुपये और मोहरका प्रचार का प्रचार किया। ई०सन् १५६-१४६के पहलेके रुपये | हुआ। राजकीय मुद्रामें अश्वारोही वीरकी मूर्ति और दूसरी तरफ हल जोतनेके तैयार कृषकका चित्र है। और मोहरमें यहां रोमकाधिपतिका अधिकार देखा जाता