पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३३५

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३३२ मैत्र यक-मैथिलब्राह्मण ७ वोधिसत्त्वभेद । मृच्छकटिकके विदूपकका मैथिलकायस्थ-१ मिथिलावासो एक कायस्थ कवि। नाम । स्त्रियां ङोष। ८ मैत्रेयी, मैत्रेय द्वारा उच्चारित फवोन्द्र चन्द्रोदयमें इनका उल्लेख देखने में आता है । २ उपनिषद् । कायस्थको एक श्रेणो। कायस्थ देखो। मैत्रेयक (सपु०) एक वर्णसंकर जाति। (मनु० १०॥३४) | मैथिलवाचस्पति ( स० पु० ) एक प्रसिद्ध पण्डित । मैले यरक्षित (स० पु.) एक वैयाकरण । इन्होंने तन्त्र- | मैथिलब्राह्मण-मिथिलावासी-ब्राह्मण सम्प्रदाय । सीताके प्रदीप या अनुन्यास नामक जिनेन्द्रबुद्धिकृत काशिका- पिता जनक या मिथिको राजधानी मिथिलासे इसका नाम- विवरण पश्चिकाकी टोका लिग्यो । अलावा इसके इन्होंने करण हुआ है। मिथिला देखो। ये लोग पञ्चगौड़के अन्तर्गत अपने बनाये धातुप्रदीपमें न्यासकार धातुपारायण और हैं। आजकल तिरहुत, सारण, मुजफ्फरपुर, दरभङ्गा, रूपावतार आदि ग्रन्थोंका उल्लेख किया है। भागलपुर, मुङ्गर, पूर्णिया और नेपालके किसी किसी मैत्रेयवन । सं० पु०) एक प्रानीन वन । अंशमें इस श्रेणीके ब्राह्मणोंका प्रधान वास देखा जाता मलेयिकी (सं० स्त्री०) १ दोस्तोंमे परस्पर विवाद, मित्र- | है। अलावा इसके युक्त प्रदेश और बङ्गालमे भी कही युद्ध । २ वह जो मित्रयुसे उत्पन्न हुई हो। कहीं ये लोग आ कर बस गये हैं। जिनका वङ्गालमे मैत्रेयी (सं० स्त्री० ) १ उपनिषद् भेद । २ अहल्याका | वास है वे वैदिकश्रेणोके साथ मिल गये हैं। एक नाम । ३ सुलभा। ( आश्वलायन गृह्यसू० ४।४ ) 8 मैथिल ब्राह्मणोंके मध्य वात्स्य, शाण्डिल्य, भरद्वाज, योगिराज याज्ञवल्क्यको स्त्रो । ज्ञान और विद्या | काश्यप, कात्यायन, गौतम, सावणे, पराशर, कौशिक, मैन यो याज्ञवल्क्यके समान हो थी । याज्ञवल्क्यने गर्ग और कृष्णात य गोत्र हैं। फिर इन ग्यारह गोत्रोंमे- संन्यास ग्रहण करनेको इच्छासे एक दिन मैले यीसे कहा १७७ 'डीह' वा 'मूल' हैं । इनमेसे वात्स्यगोलमे ४६, कि मैं अव संन्यास ग्रहण करने जाता हूं। अतः मैं | शाण्डिल्यगोतमे ५५, भरद्वाजगोतमें १३, काश्यपगोत्रमे चाहता है, कि जो कुछ धन है वह तुमको और कात्या ७, पराशरगोत्रमें ४, कौशिकमे २, गर्गगोत्रमें १ और कृष्णा. यनीको आधा आधा वांर दूं। नहीं तो हमारे न रहने | लेय गोत्रमें १ मूल पाया जाता है। पर सम्भव है तुम लोगोंमे झगडा हो । मैले योने कहा मैथिलश्रेणीके मध्य प्रधानतः पांच कुल देखे जाते इन नश्वर पदार्थीको ले कर मै क्या करूंगी। मुझे इन हैं, १श्रोत्रिय, २ योग, ३ पक्षिवद्ध. ४ नागर और ५ पदार्थोसे कुछ भी प्रयोजन नहीं, आप उस ब्रह्मज्ञानका | जैवार। इन पांच कुलोंमें पूर्वोक्त कुल यथाक्रम परवत्तों उपदेश मुझे दें जिससे यथार्थ कल्याण हो । मैत्रेयोके कुलोंसे श्रेष्ठ समझे जाते हैं। कहने पर याज्ञवल्क्यने ब्रह्मज्ञानका उपदेश दिया। मैत्रेय श्रोत्रिय जव नीच घरमें विवाह करते हैं, तब उन्हें पतिके संन्यास ग्रहण करने पर यह वहां हो रह कर काफी रुपये मिलते हैं। किन्तु इसमें जो सन्तान अध्यात्मतत्त्वका अनुशीलन करने लगी। उत्पन्न होती है वह मातृकुलसे श्रेष्ठ होने पर भो पितृ मैत्य (सं० क्ली०) मित्र-प्यञ्। मित्रता, दोस्ती। | कुलके दूसरे दूसरे व्यक्तियोंके निकट समान आदर नहीं "प्राहुः साप्तपदं मैत्र यौं जनाः शास्त्रविचक्षणाः । पा सकती। जो श्रोत्रिय निम्न घरमे विवाह करता, मित्रताञ्च पुरस्कृत्य किञ्चिद्वक्ष्यामि तच्छृणु ॥" उसका तो अपनी श्रेणीमें मान अवश्य घटता, पर कन्या- (पञ्चतन्त्र,३५॥३६) के पिताका यह कार्य सम्मानजनक और उत्तम समझा मैथिल (सं० पु०) मिथिला निवासोऽस्येति मिथिला जाता है। ऐसा कुलनियम रहने पर भी वङ्गाल देशकी तरह छानवीन नहीं है। बिहार-वासियोका कहना है, कि इस ( सोऽ स्यानिवास: । पा ४३८९ ) इति अण | १ मिथिला देशर्म वल्लालसेनका आधिपत्य स्थायी न रहनेके कारण देशवासी। २ मिथिलाधिपति, मिथिलादेशका राजा । ३ राजर्षि जनक । ( त्रि०) ४ मिथिलादेशका । ५ * "सारस्वताः कान्यकुब्जा गौड़ोत्कल मैथिलाः । पञ्चगोड़ाः समाख्याता विन्ध्यस्योत्तरवासिनः॥" मथिलासम्बन्धी।