पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३४

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मुद्रातत्त्व (पाश्चात्य) यूनी नगरके प्रीक-राजकी मोहरमें एक ओर एक वैल-1 टलेमीकी स्मृतिसम्बन्धीय वतलाया है। ५. फिलिप- गाड़ी और दूसरी ओर त्रिकोणाकार चिह्न है। की मुद्राके एक भागमें पार्सियसका मस्तक और दूसरे माकिदनकी जो मुद्रा पाई गई हैं वह ४६८ वर्ष ई०- भागमे जियसके वज्रके ऊपर ईग्लपक्षीको प्रतिकृति है। सनके पहलेकी है और जरकसिसकी समसामयिक हैं। ___उत्तर-योसके कुछ नगरोंमें भी जो सोने और चांदी- ये सव मुद्राएं फिनिकीय आदर्श पर बनी हैं। इसके | के टुकड़े मिले हैं वे आश्चर्यजनक है । प्राथमिक एक ओर घोड़े की पीठ पर सवार एक वीरकी मूर्ति है। अवस्थामें घोड़े और घुड़सवारकी विविध गति दिखलाई अलेकसन्दरके समयमें मुद्राशिल्पकी बहुत उन्नति हुई| गई है। ये सव मुद्रा ई०सन् १९६ वर्ष पहलेकी बनी थी। द्वितीय फिलिपके शासनकालमें ही मुद्राशिलप- हैं। बहुतोंमें ओक वृक्षके पल्लवोंसे अलंकृत जियसकी का चरमोत्कर्ष देखा जाता है। प्रसिद्ध कवि होरेसने | प्रतिमूर्ति है। दूसरे भागमें थेमाली वासियोंकी पल्लास- . फिलिपके मुहरोंका उल्लेख किया है। इसके एक ओर | रूपा इतोनिया देवीको रणरङ्गिणी मूर्ति खोदो हुई हैं। जियस और दूसरी ओर तालपन तथा अश्वारूढ़ वीर-/ गम्फि नगरकी मुहरों पर एक अनवद्याङ्गी युवतीमूर्ति मूर्ति अङ्कित है। अलेकसन्दरके शासनकालके प्रारम्भ- है। लेमिया नगरकी मुद्रा पर देमिनियस पोलियोकात- में मुद्राको एक पीठ पर पल्लास और दूसरी पीठ पर की प्रियतमा रानीका उज्ज्वल मुखमण्डल है। उसके जयमालाधारिणी नाइस देवो चितित होती थी। अलेक दाहिनी ओर नवीन युवक हिराक्लिसकी भुवन-मोहिनी सन्दर भारतीय ढंग पर मुद्रामें अपनी मूर्ति अङ्कित | मूर्ति है । इसका शिल्प सौन्दर्यतत्त्वका अपूर्व निदर्शन- करते थे। उनकी मृत्युके बहुत वाद तक वे सव | स्वरूप है । लेरिसा नगरीको मुद्रामें निर्भराधिष्ठात्री आदर्श-मुद्रा समझी गई थीं। एशियाके प्रोक-राजाओं- | देवी लेरिसाको सुन्दर मूर्ति मांकित है । किसी किसी- के मध्य सेल्युकस लिसिसेकस और अन्तिगोनसने | में परिथुसकी अलौकिक लावण्यमयी अङ्गलतिका अपने अपने नाम पर अलेकसन्दकी मुद्रा शोभती है। चलाई थी । जव ई०सन्के १६० वर्ष पहले इल्लिरियाको नहरें शिल्पसौन्दर्यामें प्रथम श्रेणोकी रोमोंने मागसिनियाके युद्धमें जयलाभ किया, तभीसे नहीं होने पर भी उनमें वहुतसे अतीत-रहस्योंका विषय अलेकसन्दरकी मुद्राका प्रचार घट गया । थेस प्रदेश- | झलकता है। इसके एक भागमें नव वसन्तको आगमन- के राजा लिसिमेकसने अलेकसन्दरका मुखमण्डल मुद्रा सूचक कुसुमित तरुवल्लोका अभिनव सौन्दर्य चित्र है तथा में अंकित करनेके लिये उन्हें जियस आमनके पुत्ररूपमें | दूसरे भागमें दूध पीनेके लिये उद्यत गायका बछड़ा अपनी करनेके उद्देशसे शिर पर दो भेड़े के सोंग चित्रित कर माको वगलमें खड़ा है। उसका शिल्पनैपुण्य अतुल- दिये थे। दूसरे भागमें पल्लास देवी कुमारी नाइसको | नीय है। कुछ मुहरोंके एक भागमे वंशीवाद्यपरायण अपने अङ्गमें लिपटाये हुई हैं । प्रथम देमिलियसको अपोलाके चारों ओर तीन नाच करनेवाली विम्वाधरा मुहरें बहुत सुन्दर तथा ऐतिहासिक तत्त्वोंसे परिपूर्ण अप्सरामूर्ति और दूसरे भागमें जलती हुई वत्तीको हाथ- है। इसके सम्मुख भागमें वृपश्रङ्गभूपित देमिवियसका | में लिये देवाङ्गना खड़ी है। . . मस्तक तथा पश्चाद्भागमें पोसिदन अथवा नाइस या एपिरसकी मुद्राएं सौन्दर्य चित्र और ऐतिहासिक- पक्षशालिनी लावण्यमयी अप्सराकी तरह कीर्तिदेवीका तत्त्वका निदर्शन है। एम्बोसिया नगरीके रजतखण्डका उज्ज्वल चित्र है । किसो किसीमें रमणीय मयूरपक्षी शिल्पसौन्दर्य चित्ताकर्षक है। उसके एक.भागमें किसी देखा जाता है। उसके एक प्रान्तमें कीर्त्तिदेवी वंशी | अवगुण्ठनवती शुचिस्मिताकी सलजमुग्ध दृष्टि और दूसरे वजा रही हैं और दूसरे प्रान्तमें त्रिशूलधारिणी पोसिदन भागमें एक ओवेलिस्क वा स्मृतिस्तम्भ है। ये सव नाव खे रही है। इस अपूर्व शिल्प-सौन्दर्यमयी चित्रा- मुद्राएं ई०सन् २४० वर्ष पहलेकी बनी हैं .। कुछ वलीको पण्डितोंने देमिनियस कर्तृक नौयुद्धमें पराजित मुद्राओंकी एक पीठ पर दिदोनियन जियस और दिवनीकी