पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३३८ मैदान-मैनसिल उसे छान कर मैदा वनानेको उपाय जानते थे। किन्तु | मैधातिथ (सं०पु०) १ मेधातिथि सम्बन्धीय । २ सामभेद । कहीं ऐसा कोई सुदृढ़ प्रमाण नहीं मिलता, कि यह मेधाव (सं० पु.) मेधावीका पुत्र । लोग मैदा तयार कर किसी दूसरे देशोंमें भेज वाणिज्य | मैधावक (स० पु०) मेधा, धृतिशक्ति । करते थे। फिर भी इङ्गलैण्ड आदि युरोपके सुदूर मेध्यातिथ (स० क्ली०) सामभेद । देशोंमें गेहूं की रफ्तनी की जाती थी। इसके प्रमाण- | मैन (हि० पु०) १ कामदेव । २ मोम | ३ रालमें मिलाया हुआ की भी आवश्यकता नहीं। इस गेहूं की वाणिज्य- मोम | इससे पीतल वा तांवकी मूर्ति बनानेवाले पहले रक्षाके लिये इङ्गलैण्डमें सर्व प्रथम तृतीय एडवर्डने | उसका नमूना बनाते हैं और तब उस नमूने परसे उसका सन् १३६० ६१ई में ( 34th Edir, ille, २०) कानून | सांचा तैयार करते हैं। बनाया। इसके बाद भी इस कानूनको आदर होता | मैनफल (हि पु०) १ मझोले आकारका एक प्रकारका आया है। यह यूरोपमे Corn-law and Corn Tade | झाड़दार और कंटीला वृक्ष । इसकी छाल खाकी रंगकी, कहा जाता है। लकड़ी सफेद अथवा हलके भूरे रंगकी, पत्ते एकसे दो मैदान ( फा० पु० ) १ धरतोका वह लंबा चौड़ा विभाग | ईञ्च तक लम्बे और अण्डाकार तथा देखनेमें चिड़चिड़े के जो समतल हो और जिसमें पहाड़ी या घाटा आदि न | पत्तोंके समान, फूल पीलापन लिये सफेद रंगके, पांच हो, दूर तक फैली हुई सपाटभूमि। २ वह लंबो चौड़ो | पंखड़ियों वाले और दो या तीन एक साथ मिले होते हैं। भूमि जिसमे कोई खेल खेला जाय अथवा इसी प्रकार- इसमें अखरोटको तरहके एक प्रकारके फल होते है फा और कोई प्रतियोगिता या प्रतिद्वन्द्विताका काम हो। जो पकने पर कुछ पीलापन लिये सफेद रंगके होते हैं। ३ वह स्थान जहां लड़ाई हो, युद्धक्षेत्र। ४ रत्न आदि-| इसकी छाल और फलका व्यवहार ओपधिमें होता है। का विस्तार, जवाहिरकी लम्वाई चौड़ाई । ५ किसी | २ इस वृक्षका फल । इसमें दो दल होते हैं और इसके वोज पदार्थका विस्तार। विहीदानेके समान चिपटे होते हैं। इसका गूदा पीला- मैदानी-पंजावप्रदेशके वान्नु जिलान्तर्गत एक पर्वतश्रेणी पन लिये लाल रंगका और स्वाद कडू आ होता है। इस इसका दूसरा नाम सिनगढ़ या चिचाली भी है। वान्नु फलको प्रायः मछुए लोग पीस कर पानीमें डाल देते हैं, उपत्यकासे पूरवमें अवस्थित रह कर कुरम और गंभोला- जिससे सब मछलियां एकत्र हो कर एक ही जगह आ जाती को सिन्धुसे अलग करती है । इसका सबसे ऊंचा है और तव वे उन्हें सहजमें पकड़ लेते हैं। यदि ये शिखर कालाबागसे १६ मील पश्चिम समुद्रपृष्ठसे | फल वर्षा ऋतु में अन्नकी राशिमें रख दिये जाय तो उसमें ४७४५ फुट ऊंचा है। इस शैलमालासे आध कोस | कीड़े नहीं लगते। वमन करानेके लिये मैनफल बहुत दक्षिण मैदान नामक एक गिरि है जो समुद्रकी तहसे | अच्छा समझा जाता है। वैद्यकमें इसे मधुर, कड़ आ, ४२५६ फुट ऊंचा है। यहां मैदान नगर ( लौहगढ़ )| हलका, गरम, वमन कारक, रूखा, भेदक, चरपरा, तथा है। यह अक्षा० ३२५१ उ० तथा देशा०७१ ११४५ विद्रधि, जुकाम, घाव, कफ, आनाह, सूजन, त्वचा रोग, पूछके वीच पड़ता है। मियांवालीसे एक रास्ता निकला | विषविकार, बवासीर और ज्वरका नाशक माना है। है जो तङ्गदेरा गिरिसङ्कट हो कर वान्न उपत्यका तधा | मैनशिल (हिपु०) मैनसिल देखो। वहांसे मैदानी शिखरके दक्षिण तक चला गया है। मैनसिल (हि०पू०)एक प्रकारको धातु । यह मिट्टीको तरह मैदालकड़ी (हिं० स्त्री०) औपधके काममे आनेवाली | पोली होती है और यह नेपालके पहाड़ोंमें बहुतायतसे एक प्रकारको जड़ी। यह सफेद रंगकी और वहुत होती है। चैद्यकमें इसे शोध कर अनेक प्रकारके रोगों पर काममें लाते हैं और इसे गुरु, वर्णकर, सारक, मुलायम होती है। वैद्यकामें इसे मधुर, शीतल, भारी, धातुवर्द्धक और पित्त, दाह, ज्वर, तथा खांसी आदिको उष्णवोर्य , कटु, तिक्त, स्निग्ध, और विष, श्वास, कुष्ठ दर करनेवालो माना है। ज्वर, पाण्डु, कफ तथा रक्त दोष नाशक मानते ।