पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३४३

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३४० मैनागढ-मैनपुरो. मैनागढ़-मेदिनीपुर जिलान्तर्गत एक प्राचीन वड़ा गांव। नाम विशेष प्रसिद्ध है । १८८५ ई०में राजा राधाश्याम 'यह तमलुकके पश्चिम सुवर्णरेखा नदीके किनारे अव बाहुबलीन्टके मैनागढ़ और तमलुक भूसम्पत्तिको आय स्थित है। मनराजवंशके अधिकार-कालमें इस स्थानने २० हजार रुपये थी। वृद्ध राजा बड़े दयालु थे, इस गढ़ और नाना देव-मन्दिरोंसे परिशोभित हो कर कारण सभी प्रजा उन्हें श्रद्धाकी दृष्टिसे देखती थी। उन- 'अपूर्व श्रीको धारण किया था। घनरामकृत धर्ममङ्गल | के तीनों कुमार 'छत्रपतिराज' कहलाते थे। एढनेसे इस राजवंशके प्रताप और प्रतिपत्तिका विषय मैनामतो-त्रिपुरा राज्यके अन्तर्गत एक गिरिमाला। यह मालूम हो जाता है। । पहले त्रिपुराराज्यकी सम्पत्ति समझो जाती थी। राजा गोवद्धन वाहुवलीन्द्र इस प्राचीन राजवंशके मैनामती-बराज माणिकचांदको महिषी । इनकी प्रतिष्ठाता थे। पहले वे उक्त जिलेके सवङ्ग परगनेके जमी•| धर्मचर्याको विशेष ख्याति है। दार थे। युद्ध और सङ्गीत-विद्यामें विशेष पारदर्शिता | मैनाल (सं० पु०) जालिक, धोवर। देख कर उस समयके स्वाधीन महाराष्ट्र-सरदार महा- मनावली (सं० स्त्री०) एक वर्णवृत्त। इसका प्रत्येक राजदेव राजा वहादुरने इन्हें राजा और वाइवलीन्द्रको चरण चार तगनका होता है। उपाधि दो तथा मैना (मैना चौंगरा) परगना पारिमनिक ( सं० पु०) मोनं हन्तीति मीन ( पक्षिमत्स्य मृगान् तोषिक देकर सम्मानित किया। हन्ति पा ४४१३५) इति ठक । जालिक, जो मछली पकड़ . गोवद्धनके मरने पर उनके पुत्र राजा परमानन्द कर अपनी जीविका चलाता हो। वाहुवलीन्द्र सिंहासन पर बैठे। वे सवङ्गका परित्याग मैनो-वयईप्रदेशके सतारा जिलान्तर्गत एक नगर । .कर मैनामें आ कर बस गये। यहां उनका बनाया हुआ यह अक्षा० १७१६ उ० तथा देशा०७४३४ पू०के मध्य मनागढ प्रासाद आज भी विद्यमान है। राजा परमा- एक छोटो नदीके किनारे अवस्थित है। नन्दके वाद यथाक्रम माधवानन्द, गोकुलानन्द, कृपानन्द, मैनेय (सं० पु० ) जातिभेद । जगदानन्द, वजानन्द, आनन्दानन्द और राधा श्यामा. मन्द (संपु०)१ एक असुर, कंसका अनुचर । भगवान् नन्द बाहुवलीन्द्र आदि मैनागढ़के राजपदको अलंकृत ने कृष्णरूपमें इसका संहार किया था। (हरिवंश ४१ अ०) कर गये हैं। २एक प्रकारका बन्दर। राजा राधाश्यामानन्दके पितामह व्रजानन्द वाहु- मन्दहन (स'० पु०) मन्द हन्तीति हन् क्षिप् । विष्णु। वलीन्द्रसे मैनाराजवंशको समृद्धिका ह्रास हुआ। उनके मैनपुरी-युक्तप्रदेशके छोटे लाटके शासनाधीन एक शासनकालमें मेदिनीपुर जिलेमें भीषण बाढ़ और दुर्भिक्ष जिला। यह आगरा विभागके अन्तर्गत है। भूपरि- उपस्थित हुआ था जिससे मै नागढ़में हाहाकार मच माण १६६७ वर्ग मील है। इसके उत्तरमें एटा जिला, गया था। राजा दुर्भिक्षप्रपीड़ित प्रजाओंके प्राण बचाने-/ पूरव फळं खावाद, दक्षिणमें एटावा जिला और जमुना में ऋणजालमें फस गये थे। इधर प्रजा भी जीविका- नदी तथा पश्चिममें ओगरा और मथुरा जिला है। मैन- जनमें अकृतकार्य हो राज्यसे भाग रही थी। इस दुर्मिक्ष पुरी नगर जिलेका विचार-सदर और वाणिज्यकेन्द्र है। के समय अर्थाभावके कारण उन्होंने सवङ्ग और मैना ____ गङ्गा और जमुनाके दोआबमें रहनेके कारण समूचे सम्पत्तिका कुछ अंश वेच डाला । किन्तु उनके पूर्व- जिलेको भूमि ऊँची है। अगरेजी-राज्यमें खेतो वारीकी वती राजे देवमन्दिर-स्थापन, पुष्करिणी खनन और सुविधाके लिये जङ्गल काट कर समतलक्षेत्र बनाया गया है। ब्रह्मोत्तर दात करके मैनागढ़ राजवंशको ख्याति अर्जन दोआवके अन्यान्य जिलोंकी तरह यहांकी मिट्टोकी कर गये हैं। इन पूर्वपुरुषों में से किसी एक व्यक्तिने तान लिप्तरराजको युद्ध में परास्त कर उनसे श्रीरामपुर आदि तह चार भागोंमें विभक्त है, जैसे–मटियार (कीचड़), नौ ग्राम छीन लिये थे। पूर्वतन राजाओंमें लाइसेनका | भूर ( वलुई ), दुमत् ( दलदल ) और पिलिया ( थाड़ा