चलाते हैं। मैनपुरी दलदल)। जमुना तथा शर्शा, अनङ्गा, सेनगार, रिन्द, यार्यसभ्यता थी। आर्य हिन्दूगण यहां जो नगरकी कालीनदी और ईशान नदके सिवा यहां और भी हदके | स्थापना कर राजत्व कर गये हैं, वर्तमान वंसावशेष आकारकी कितनी झीलें हैं। इन्हीं मोलोंसे दोनों ही उनका अन्यतम निदर्शन है। किनारोंकी जमीन पटाई जाती है जिससे खेतमें पंक पड़| कन्नौज-राज्यको महासमृद्धिके समय यह स्थान जाता है। स्थानीय ग्वाले कृपिजीवी होने पर भी गाय हिन्दू-राजाओंके अधीन था। इस कन्नौज-राजवंशके भेड़ आदि पालते और दस्युवृत्ति द्वारा अपनी जीविका | सौभाग्यसूर्य जव डूब गये तव कन्नौजराज्य राप्री और भोनगांवके दो सामन्तोंके शासनाधीन हुआ। उस प्राचीन- ___ गङ्गासे दो नहर काट कर इस जिलेमें लाई गई है। कालमें यहां मेव, भर और चिराड़ आदि आदिम जातियों- एटावा-ब्रांच नहर सेनगार और रिन्द नामक दो नदी का वास और प्रभाव विस्तृत था। वादमें १५वीं सदीमें तथा कानपुर-ब्रांच रिन्द और ईशान नदीके मध्य देश हो चौहान राजपूतोंने उन्हें परास्त कर अपना प्रभुत्व कर दह गई है। अलावा इसके निम्न गङ्गा-नहर फैलाया। चौहान कुलके अभ्युदय होनेके पइले हीसे ( Lorrer Ganges Canal ) जिलेके उत्तर पूर्व कोन हो | इस जिलेके पश्चिम प्रांतके वन-प्रदेशमें युद्धप्रिय अहीर कर बहतो है, इसलिये काली-नदीकी वहतसी शाखाओंसे जाति रहती थो। आज भो यहां इस जातिका वास वहांका प्रदेश पटता है। इस प्रकार प्रचुर जलकी सुविधा | देखा जाता है। होनेसे खरीफ और रवी वहुतायतसे उपजती है। मुसलमान प्रभाव विस्तृत होनेके वादसे ही इस एतद्भिन ईख और रुईको खेती भी काफी होतो है । कृपि जिलेका धारावाहिक प्रकृत ऐतिहासिक उपाख्यान संग्रह जात सब प्रकारके शस्य, रुई, नील और घीको यहांसे बहुत किया जाता है। १९६४ ई में राप्रोमें मुसलमान जगहोंमें रफ्तनी होती है। यहां यूरोपियोंकी देख-रेखमें | शासनकर्ता नियुक्त हुए । उसके बाद दिल्लीके मुसल- नील और सोरा तैयार हो कर विकता है। अलावा | मान राजाओंके अधीनस्थ शासनकर्त्ताभोंने इसका इसके रुईसे सूता, चूड़ी, हुक्का, गडगडा और काठको शासनकार्य परिचालित किया । सुलतान वहलोललोदी- वनी वहुत-सी वस्तु विक्रोके लिये तैयार होती है। मैन के राजत्वकालमें (१४५०-१४८८ ई०में ! यह जिला दिल्ली पुरी, सरिसागञ्ज, सिकोहावाद, कड़हाल और फरहा | और जौनपुर राजसरकारोंको अधीनता स्वीकार कर नामक नगर यहांका वाणिज्यभाण्डार है। सरिसागंज दोनोंको हो सेनासे मदद पहुंचाता था । लोदो राजवंश- की हाट गवादि पशु, स्फटिककी माला, चीनी, नमक, | का प्रभाव फैलनेके वाद मुगलोंके भारत-आक्रमण पर्यन्त रुई और चमड़े की विक्रीके लिये प्रसिद्ध है। यह सव राप्री नगर उक्त लोदीवंशके अधोन रहा । १५२६ ईमें पण्यद्रध्य नाव द्वारा नाना स्थानों में भेजा जाता हैं। इष्ट-| मुगल सम्राट् वावरशाहने इस स्थान पर अधिकार किया। इण्डियन रेलवे कम्पनीका सिकोहावाद और भदान तदनन्तर कुछ समयके लिये शेरशाहके पुत्र कुतव खाँ नगरमें दो स्टेशन है जिसम् वाणिज्य द्रव्य भेजने में बड़ी अफगानने इस जिलेको मुगलोंके हाथसे छीन लिया। सुविधा होती है। . कुतव खां द्वारा मैनपुरो नगरो नाना सौधमालासे विभू- इस जिलेका प्रानीन इतिहास नहीं मिलता। कहते | पित हुई थी। आज भी उसका टूटा फूटा खंड पड़ा हैं, कि पाण्डवोंका यहां आधिपत्य था। प्राचीन है। शेरशाह द्वारा सताये जाने पर हुमायू भारत लौटे नगरके निदर्शन-स्वरूप जो सव टूटे फूटे स्तूप दिखाई और मैनपुरी पर अधिकार कर बैठे। सम्राट अकवरशाह- पड़ते हैं उनमें से किसी किसीमें उस भारतीय युद्धकी ने इसे आगरा और कन्नोज सरकारमें मिला लिया। कीर्ति उल्लिखित है। इन सब खण्डहरोंसे वहुत स्मृति- बाद उसके उन्होंने यहांके लुटेरोंका दमन करनेके लिये तिदर्शन आविष्कृत हुए हैं जिनसे अनुमान होता है, कि बहुत-सी सेना भेजी। वावरवंशधरोंका शासन-प्रभाव ..इन सब स्थानोंमें वौद्ध-प्राधान्य युगके बहुत पहले भी | औरङ्गजेवके समयले अधिक बढ़ा चढ़ा तो था पर इस- Vol. XVIII, 86,